दिव्य जननी श्री दुर्गा जी को नमस्कार जो सभी भूतोँ मेँ बुद्धि, करुणा तथा सौन्दर्य के रूप मेँ स्थित हैँ, जो भगवान् शिव की अर्द्धाङ्गिनी हैँ, जो विश्व की सृष्टि, पालन तथा संहार का कार्य करती हैँ ।
माता के रूप मेँ ईश्वर की उपासना के लिए दशहरा हिन्दुओँ की सबसे बड़ा त्योहार है । दुर्गा देवी ईश्वरीय माता का प्रतीक हैँ । वे भगवान् की शक्ति हैँ । दुर्गा के बिना शिव मेँ कोई अभिव्यक्ति नहीँ तथा शिव के बिना दुर्गा की कोई सत्त नहीँ । शिव दुर्गा की आत्मा ही हैँ । दुर्गा तथा शिव एक हैँ । भगवान् शिव साक्षीमात्र हैँ, वे निष्क्रिय तथा परम कूटस्थ हैँ । वे विश्व-लीला से प्रभावित नहीँ होते । दुर्गा ही सब-कुछ करती हैँ ।
श्री माता के रूप मेँ ईश्वर की पूजा ही मातृ-पूजा है । शक्ति भगवान् की शक्ति है । दुर्गा के रूप मेँ श्री माता के दश हाथ हैँ तथा दशोँ मेँ विविध आयुध हैँ । उनका वाहन सिंह है । वे सत्त्व, रजस् तथा तमस्__इन तीनोँ गुणोँ के द्वारा ईश्वर की लिला का सञ्चालन करती हैँ । विद्या, शान्ति, काम, क्रोध, लोभ, अहङ्कार, अभिमान ये सब उन्हीँ के रूप हैँ ।
देवी अथवा जगन्माता की उपासना के द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है । यक्ष-प्रश्न के नाम से प्रसिद्ध केनोपनिषद् की कहानी इस सिद्धान्त की पोषक है । उमा ने देवताओँ को सत्य की शिक्षा दी । शक्ति देवी अपने उपासकोँ को ज्ञान प्रदान करती हैँ ।
शिशु पिता की अपेक्षा माता से अधिक हिलमिल कर रहता है ; क्योँकि माता बहुत ही दयालु, प्रिय, कोमल और कारुणिक होती है तथा वह अपने बच्चे की आवश्यकताओँ को पूर्ण करती है । आध्यात्मिक क्षेत्र मेँ भी साधक अथवा भक्त__आध्यात्मिक शिशु__माता दुर्गा से पिता शिव की अपेक्षा अधिक निकट-सम्बन्ध रखता है ; अतः पहले माता के पास जाना ही साधक के लिए उचित है तथा माता अपने आध्यात्मिक शिशु को परम पिता से परिचित करायेँगे । फलतः उसे आत्मसाक्षात्कार की प्राप्ति होगी ।
माता की कृपा असीम है । उनकी करुणा अथाह है । उनका ज्ञान अनन्त है । उनकी शक्ति अपरिमित है । उनकी महिमा अमित है । उनकी ज्योति अवर्णनीय है । वे भुक्ति तथा मुक्ति दोनोँ प्रदान करती हैँ ।
हृदय खोल कर उनके निकट जाइए । सरलता तथा नम्रता के साथ अपने हृदय को खोल कर रख दीजिए । शिशुवत् सरल बनिए । अभिमान, धूर्त्तता, स्वार्थ तथा सङ्कीर्णता को नष्ट कर डालिए । उनके प्रति पूर्ण अशेष आत्मार्पण कीजिए । उनकी स्तुति कीजिए । उनके नाम का जप तीजिए । श्रद्धा तथा अनन्य भक्ति के साथ उनकी उपासना कीजिए । नवरात्रि के दिनोँ मेँ विशेष पूजा का आयोजन कीजिए । उग्र साधना के लिए नवरात्रि अथवा दशहरे का समय बहुत ही उपयुक्त है । ये नौ दिन देवी के लिए बहुत ही पवित्र हैँ । उनकी पूजा मेँ तल्लीन हो जाइए । अनुष्ठान कीजिए । देवी ने भण्डासुर तथा उसकी सेना के साथ नौ दिन तथा नौ रात्रि तक संग्राम किया था । दशवेँ दिन शाम के समय संग्राम की समाप्ति हुई । इसे विजयदशमी कहते हैँ । इस दिन साधकोँ को दीक्षा दी जाती है । विजयदशमी के दिन बच्चोँ को अक्षर-अभ्यास कराया जाता है । इसी शुभ दिवस को किसी भी विज्ञान के अध्ययन का श्रीगणेश करते हैँ । इसी दिन अर्जुन ने कुरुक्षेत्र मेँ कौरवोँ के विरुद्ध संग्राम करने के लिए युद्ध करने से पहले देवी की उपासना की थी ।
वह भगवती दुर्गा अपने बच्चोँ को दिव्य ज्ञान का दृग्ध प्रदान करेँ तथा उन्हेँ ईश्वरीय ज्योति एवं महिमा के अक्षय धाम, कैवल्य की ऊँचाइयोँ की ओर उठ ले जायेँ !
ମହାମାୟା ଜଗଦମ୍ବା ମାଁ ଦୂର୍ଗାଙ୍କ ଆରତୀ
https://youtu.be/VEortGAysCs?feature=shared
दीपावली का सन्देश
https://ashutoshamruta.blogspot.com/2022/05/blog-post_41.html




जय जय श्री जगन्नाथ
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* परमेश्वर हम सब पर अपनी दया दृष्टि, कृपा दृष्टि, करुणा दृष्टि, सदा सदा बनाए रखें और हम सबको बेशुमार दौलत, बेशुमार शोहरत, बेशुमार इज्जत और बेशुमार खुशियां दे।*
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କ୍ଲୀଂ କୃଷ୍ଣାୟ ଗୋବିନ୍ଦାୟ ଗୋପୀଜନ ବହ୍ଲବାୟ ଶ୍ରୀ ଜଗନ୍ନାଥାୟ ନମୋ ନମଃ
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