सिद्धियाँ
शक्तिशाली जादूगर सारे दर्शकोँ को अपनी धारणा तथा सङ्कल्प-शक्ति के द्वारा सम्मोहित कर 'रस्सी के जातू का खेल' दिखलाता है । वह लाल रस्सी को वायु मेँ फेँकता है तथा दर्शकोँ को यह सङ्केत देता है कि वह रस्सी के सहारे वायु मेँ जायेगा और पलक मारते ही मञ्च पर से अदृश्य हो जाता है ; परन्तु छायाचित्र (Photograph) लेने पर कुछ भी चित्रित नहीँ होता ।
प्राचीनकाल के योगी जैसे श्री ज्ञानदेव, भर्तृहरि, पतञ्चलि महर्षि आदि मन से दूर-श्रवण (Telepathy) तथा मानसिक संक्रमण के द्वारा सुदूर व्यक्तियोँ को सन्देश भेजते तथा उनसे सन्देश प्राप्त करते थे । दूर-श्रवण (Telepathx) मेँ कुशल हैँ । विचार प्रबल गति के द्वारा आकाश मेँ भ्रमण करता है । विचार गतिशील है । विचार उतना ही ठोस पदार्थ है जितना कि यह पत्थर । इसे फेँक कर किसी व्यक्ति को चोट पहुँचा सकते हैँ ।
मन की शक्तियोँ को समझिए तथा उनका साक्षात्कार कीजिए । छिपी शक्तियोँ अथवा अलौकिक मनःशक्तियोँ को व्यक्त कीजिए । आँखेँ बन्द कर लीजिए । धारणा कीजिए । मन के उन्नत क्षेत्रोँ का अनुभव कीजिए । आप दूर की वस्तुओँ को देख सकते हैँ, दूर के शब्दोँ को सुन सकते हैँ, दूर प्रदेशोँ मेँ सन्देश भेज सकते हैँ, दूर-स्थित व्यक्तियोँ का उपचार कर सकते हैँ और पल-मात्र मेँ दूर-स्थान को जा सकते हैँ । मन की शक्ति मेँ विश्वास रखिए । यदि आपमेँ मनोयोग, अवधान, इच्छाशक्ति तथा श्रद्धा हैँ तो आप निश्चय ही सफल होँगेँ । मन का मूल है आत्मा । मन आत्मा से ही प्रभु की माया के द्वारा उत्पन्न है । हिरण्यगर्भ वैश्व मन है । हिरण्यगर्भ समष्टि मन है । यह ईश्वर अथवा कार्य-ब्रह्म है । मनुष्य का मन समष्टि मन का ही एक क्षुद्र अंश है । राजयोगी समष्टि मन से एक बन जाता है । तथा सभी मनोँ के कार्य-व्यापार को जान लेता है । योगी हिरण्यगर्भ के द्वारा सर्वज्ञाता को प्रात्प कर लेता है । योगी समष्टि मन के द्वारा ही विश्वात्म-चैतन्य का अनुभव करता है ।
विश्वात्म मन से शक्ति प्राप्त कीजिए । आप उन्नत अतीन्द्रिय ज्ञान प्राप्त करेँगे । आप विश्वात्म-चैतन्य का अनुभव करेँगे । आप भूत, वर्त्तमान तथा भविष्य का ज्ञान प्राप्त कर लेँगे । आप तन्मात्रा तथा मानसिक जगत् का ज्ञान प्राप्त कर लेँगे । आप दूर-दृष्टि तथा दूर-श्रुति का अनुभव करेगे । आप दूसरोँ के मन की बात जान लेँगे । आप दिव्य ऐश्वर्य अथवा ईश्वरीय विभूत्तियोँ को प्राप्त कर लेँगे । इस विश्वात्म मन से सिद्धियोँ को प्राप्त करने के लिए वैज्ञानिक साधन हैँ । शुद्धता, धारणा, वैराग्य, सात्त्विक जीवन, सद्विचार, सदाचार, सत्कर्म, भक्ति, भोजन तथा निद्रा मेँ मध्यम पथ, सात्त्विक आहार, सत्य, ब्रह्मचर्य, अहिँसा, तपस्या आदि का दीर्घकाल तक नियमित अभ्यास करना होगा ।
मन के चमत्कारोँ को तो देखिए ! जब मनुष्य किसी सम्मोहित (हिप्नोटाइज़्ड) व्यक्ति को देखता तथा उसकी बातोँ को सुनता है, तब वह आश्चर्यचकित रह जाता है । सम्मोहित व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के जीवन की घटनाओँ का वर्णन करता है जिसे उसने अपने जीवन मेँ कभी नहीँ देखा ।
एक यहूदी परिचारिका किसी हिब्रू पुरोहित की सेवा करती थी । सेवा करते समय वह हिब्रू गीतोँ को सुना करती थी । जब वह अस्पताल मेँ बीमार पड़ी तफ उसमेँ अचानक द्विविध व्यक्तित्व पाया गया । वह हिब्रू गीत गाने लगी । वह हिब्रू भाषा नहीँ जानती थी । सारे संस्कार उसके चित्त मेँ थे तथा वह सङ्गीतोँ को दोहराने लगी । कोई भी संस्कार नष्ट नहीँ होता । सभी संस्कार चित्त-रूपी Computer मेँ अमिट रूप से सेव हो जाते हैँ ।
एक पुरोहित अपने पुराने व्यत्तित्व को भूल कर छः महीने के लिए नया व्यक्तित्व, नया नाम तथा नया व्यवसाय अपना लेता था । द्वितीय व्यक्तित्व के विकसित होने पर वह अपने घर को छोड़ देता तथा अपने पुराने जीवन को पूर्णतः भूल जाता था और छः महीने के बाद अपने स्थान को लौट आता था । तब वह अपने पिछले छः महीने के व्यक्तित्व को पूर्णतः भूल जाता था ।
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