मंगलवार, 17 मई 2022

योग

 योग  


योग आत्म-संस्कृति की पूर्ण व्यावहारिक प्रणाली है । 


 यह वास्तविक विज्ञान ही है । शरीर, मन तथा आत्मा का सन्तुलित विकास ही इसका लक्ष्य है । विषय-जगत्‌ से ईन्द्रियोँ को हटाना तथा मन को अन्दर की ओर एकाग्र करना ही योग है । योग आत्मा मेँ अमर जीवन है । मन तथा इसकी वृत्तियोँ का निरोध ही योग है । योग-मार्ग आन्तरिक पथ है जिसका प्रवेश-द्वार आपका हृदय ही है ।


मन, ईन्द्रिय तथा शरीय का संयम योग है । शरीर मेँ स्थित सुक्ष्म शक्तियोँ का समन्वय तथा उन पर नियन्त्रण करने मेँ योग सहायता देता है । योग पूर्णता, शान्ति तथा नित्य-सुख को प्रदान करता है । योग आपके व्यपार तथा आपके दैनिक जीवन मेँ भी आपकी सहायता कर सकता है । योगाभ्यास के द्वारा आप सदा मन की शान्ति को बनाये रख सकते हैँ । आपको निश्चिन्त नीँद आयेगी । आपको अधिक शक्ति, वीर्य, आयु तथा उन्नत स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी । योग पाशवी प्रकृति को दिव्य प्रकृति मेँ रूपान्तरित करता है तथा आपको दिव्य महिमा और ज्योति की चोटी पर बैठा देता है । 


 योगाभ्यास के द्वारा आप अपने आवेगोँ तथा उत्तेजनाओँ पर नियन्त्रण रख सकते हैँ । इससे प्रलोभनोँ का प्रतिरोध करने तथा मन के रजस्‌ के विनाश के लिए शक्ति प्राप्त होती है । इसके द्वारा आप सदा मन को सन्तुलित बनाये रख सकेँगे तथा तकावट से सदा बचे रहेँगे । यह आपको गाम्भीर्य, शान्ति तथा अनोखी धारण-शक्ति प्रदान करेगा । इससे आप ईश्वर का साक्षात्कार करने मेँ समर्थ बनेँगे । आप जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेंगे ।


 यदि आप योग मेँ सफलता प्राप्त करना चाहते हैँ तो आपको सभी प्रकार के सांसारिक सुखोँ का परित्याग कर तप तथा ब्रह्मचर्य का अभ्यास करना होगा । आपको युक्ति और कुशलता के साथ मन को वशीभुत करना होगा । इसको नियन्त्रित करने के लाए आपको बौद्धिक तथा विवेकपूर्ण साधनोँ का प्रयोग करना होगा । यदि आप बल का प्रयोग करेंगे तो मन ओर भी उपद्रवी तथा विप्लवकारी बन जायेगा । इसको बल के द्वार हम वशीभूत नहीँ कर सकते । यह अधिकाधिक कूदना तथा उछलना आरम्भ कर देगा और दूर भाग जायेगा । जो लोग बलपूर्वक मन को अपने वश मेँ करने का प्रयास करते हैँ, वे उनके समान हैँ जो पतले रेशमी धागे से मदमत्त हाथी को बाँधने का प्रयास कर रहे होँ ।


 योगाभ्यास के लिए गुरु अनिवार्य है । योग-मार्ग के साधक को नम्र, सरल, सुशील, शिष्ट, सहनशील, दयालु तथा कारुणिक होना चाहिए । यदि आपको सिद्धियोँ की प्राप्ति के लिए कुतूहल है तो आप योग मेँ सफलता प्राप्त नहीँ कर सकते । छः घण्टोँ तक पलथी मार कर किसी एक आसन मेँ बैटे रहना, हृदय अथवा नाड़ी की गति को रोके रखना, जमीन के भितर एक सप्ताह अथवा एक महीने ता गड़े रहना__यह योग नहीँ है । 


 अलंबुद्धि, अशिष्टता, अभिमान, विलासिता, नाम, यश, अहङ्कार, स्वेच्छाचारिता, बड़प्पन का भाव, विषय-कामनाएँ, कुसङ्गति, आलस्य, अत्याहार, अति-श्रम, अति-संसर्ग तथ अति-भाषण__ये योग-पथ के कुछ विघ्न हैँ । अपने दोषोँ को बिना किसी सङ्कोच के मान लीजिए । इन दुर्गुणोँ से मुक्त हो जाने पर आपको स्वतः ही समाधि की प्राप्ति हो जायेगी । 


 यम तथा नियम का अभ्यास कीजिए । पद्म या सिद्धासन पर आरम के साथ बैठ जाइए । प्राणायाम कीजिए । अपनी इन्द्रियोँ को समेट लीजिए । वृत्तियोँ का दमन कीजिए । धारणा कीजिए । ध्यान कीजिए तथा असम्प्रज्ञात अथवा निर्विकल्प-समाधि को प्राप्त कर लीजिए । 


 योगाभ्यास के द्वारा आप योगी के रूप मेँ विभासित बनेँ ! आप शाश्वत आनन्द की प्रप्ति करेँ ! 



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