कौसल्य-पिप्पलाद-संवाद
[ प्रश्नोपनिषद् ]
अश्वल के पुत्र कौसल्य ने पिप्पलाद से पूछा__"हे भगवन् पिप्पलाद ! प्राण की उत्पत्ति कहाँ से हुई ? वह शरीर मेँ कैसे आता है ? स्वयं को विभाजित कर वह किस प्रकार रहता है । कैसे बाहर जाता है ? यह बाह्म पदार्थोँ को किस प्रकार धारण करता है ? यह शरीरान्तर्गत वस्तु को कैसे धारण करता है ?"
पिप्पलाद ने उत्तर दिया__"तुम परमार्थिक विषय के प्रश्न कर रहे हो । तुम ब्रह्म के जिज्ञासु हो । अतः मैँ तुम्हेँ बतलाऊँगा ।
" यह प्राण आत्मा से उत्पन्न है । जिस प्रकार पुरुष मेँ छाया है, उसी तरह आत्मा मेँ प्राण है । मन के कार्य से यह शरीर मेँ प्रवेश कर जाता है ।
"जिस प्रकार सम्राट् अपने अधिकारियोँ को आदेश देता है__'अमुक गाँवोँ मेँ शासन करो', उसी प्रकार यह (मुख्य) प्राण भी अन्य प्राणोँ को अलग-अलग काम बाँट देता है ।
"गुदा तथा उपस्थ मेँ अपान का निवास है ; नेत्र, श्रोत्र, मुख और नासिका मेँ स्वयं प्राण रहता है । शरीर के मध्य भाग मेँ समान रहता है । यह अन्न को समान रूप से वितरित करता है तथा उससे सप्त ज्वालाएँ निकलती हैँ ।
"यह आत्मा हृदय मेँ रहता है । यहाँ एक सौ नाड़ियाँ हैँ । प्रत्येक की एक सौ शाखाएँ हैँ ; इनमेँ से हर एक की बहत्तर हजार उपशाखाएँ हैँ । इनमेँ व्यान सञ्चार करता है ।
"उदान मनुष्य को पुण्य कर्मोँ द्वारा पुण्यलोकोँ को ले जाता है ; वह पापियोँ को पापमय लोकोँ को और पाप और पुण्य दोनोँ प्रकार के कर्मोँ द्वारा मनुष्य-लोक मेँ ले जाता है ।
"सूर्य, निश्चय ही बाह्म प्राण है । वह उदय होता है तथा नेत्रस्थित प्राण को सहायता देता है । पृथ्वी देवी अपान को नीचे खीँचती है । सूर्य तथा पृथ्वी के बीच अन्तरिक्ष समान है । वायु व्यान है ।
"तेज उदान है ; अतः जिसके शरीर का तेज शान्त हो गया, वह मन मेँ लीन इन्द्रियोँ के साथ दूसरे शरीर मेँ प्रवेश करता है ।
"मृत्युकाल मेँ जीव जिस सङ्कल्प वाला होता है, उसके साथ ही वह प्राण को प्राप्त करता है तथा प्राण उदान से युक्त हो कर जीवात्मा को उस विचार के अनुसार किसी लोक मेँ ले जाता है ।
"विद्वान् जो इस प्राण को इस प्रकार ले जाता है, उसकी वंशपरम्परा नष्ट नहीँ होती तथा वह अमर हो जाता है ।
"जो प्राण की उत्पत्ति, शरीर मेँ उसके प्रवेश करने की क्रिया, उसका स्थान, उसके पाँच प्रकारोँ को तथा शरीर मेँ उसकी अन्तःस्थिति को जानता है, वह अमरत्व को प्राप्त कर लेता है, वह अमरत्व को प्राप्त कर लेता है ।"
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