प्रार्थना की शक्ति
प्रार्थना मन को उन्नत करती तथा उसे सात्त्विकता से भर देती है । प्रार्थना के साथ ईश्वर की स्तुति भी सम्बन्धित है । यह मन को ईश्वर के साथ सम्बद्ध रखती है । प्रार्थना की पहुँच उस धाम तक है जहाँ तर्क को जाने का साहस नहीँ । प्रार्थना पर्वतोँ को चलायमान कर सकती है । यह चमत्कार कर सकती है । यह भक्त को मृत्यु के भय से मुक्त बनाती, उसे ईश्वर के निकट लाती तथा उसकी सत्ता का सर्वत्र अनुभव कराती है । यह उसमेँ ईश्वरीय चैतन्य को जाग्रत करती तथा उसे उसके अमर सुखमय सत् स्वरूप का ज्ञान कराती है ।
प्रह्लाद की प्रार्थना ने खौलते तेल को भी शीतल बना डाला । भीरा की प्रार्थना ने काँटोँ की शय्या को गुलाब की शय्या मेँ तथा सर्प को पुष्प-माल मेँ बदल डाला ।
प्रार्थना मेँ प्रबल प्रभाव है । महात्मा गान्धी प्रार्थना के बड़े हिमायती थे । यदि प्रार्थना सच्ची है तथा यह आपके हृदय के अन्तरतम से निकलती है तो इससे ईश्वर का हृदय तुरन्त ही पिघल जायेगा । द्रौपदी की आर्त प्रार्थना सुन कर भगवान् कृष्ण को द्वारका से नङ्गे पाँव ही दौड़ना पड़ा था । आप सभी इसे जानते हैँ । प्रह्लाद की प्रार्थना के समय विलम्ब करके आने के लिए इस जगत् के परम शासक भगवान् हरि ने उससे क्षमा-याचना की थी । भगवान् कितने कारूणिक तथा प्रेमी हैँ !
एक बार भी तो अपने हृदय के अन्तरतम से कहिए : "हे प्रभु, मैँ आपका हूँ । आपकी ही इच्छा पूर्ण हो । मेरे ऊपर कृपा कीजिए । मैँ आपका सेवक तथा भक्त हूँ । क्षमा करिए । पथ-प्रदर्शन कीजिए । रक्षा कीजिए । ज्ञान दीजिए । त्राहि माम् । प्रचोदयात् ।" मन की विनम्रता तथा ग्राहकता की स्वाभाविक भावना को वनाये रखिए । अपने हृदय मेँ भाव रखिए । प्रार्थना तत्क्षण सुन ली जाती है तथा उसका प्रत्युत्तर भी मिल जाता है । अपने दैनिक जीवन-संग्राम मेँ ऐसा कीजिए तथा प्रार्थना के उन्नत प्रभाव का श्वयं अनुभव कीजिए । आपमेँ प्रबल आस्तित्य बुद्धि होनी चाहिए ।
ईश्वर से विविध प्रकार के उपहार तथा प्रसाद प्राप्त करने के लिए ईसाइयोँ की प्रार्थनाएँ विभिन्न प्रकार की हैँ । मुसलमान तथा अन्य सभी धर्मावलम्बी दिन मेँ कई बार___सूर्योदय, मध्याह्न, सूर्यास्त, सोने तथा भोजन करने से पूर्व प्रार्थना करते हैँ । प्रार्थना योग का आरम्भ है । प्रार्थना योग का प्रथम आवश्यक अङ्ग है । प्रारम्भिक आध्यात्मिक साधना तो प्रार्थना ही है ।
प्रार्थना करने पर ईश्वर डाकु की भी सहायता करता है । ईश्वर से शुद्धता, भक्ति, ज्योति तथा ज्ञान के लिए प्रार्थना किजिए । आप इन्हेँ प्राप्त करेँगे । प्रातः उठिए तथा मानसिक एवं शारीरिक ब्रह्मचर्य के पालन करने के लिए कुछ प्रार्थना कीजिए । आप अपने इच्छानुसार प्रर्थना कर सकते हैँ । शिशुवत् सरल बनिए । अपने हृदय के प्रकोष्ठोँ को खोल कर रख दीजिए । सच्चे भक्त प्रार्थना की महती शक्ति को भली-भाँति जानते हैँ । नारद मुनि अभी भी प्रार्थना करते हैँ । नामदेव ने प्रार्थना की तथा विट्ठल भगवान् अर्पित किये हुए भोग को श्वीकार करने के लिए प्रकट हो गये । एकनाथ ने प्रार्थना की, भगवान् हरि ने अपना चतुर्भुज-रूप दिखाया । दामा जी प्रार्थना पर श्रीकृष्ण जी उनके सेवक बन गये तथा बादशाह को दामा जी का शुल्क अदा करने के लिए एक नौकर का काम किया । इससे अधिक आप क्या चाहते हैँ ? इसी क्षण से भाव के साथ प्रार्थना कीजिए । हे मित्र ! विलम्ब न कीजिए । वह 'कल' कदापि न आयेगा ।
प्रार्थना की शक्ति अनिर्वचनीय है । इसकी महिमा अमोघ है । सच्चे भक्त ही उसकी उपयोगिता तथा महिमा का अनुभव करते हैँ । आदर, श्रद्धा, निष्काम भाव तथा भक्तिस्नात हृदय से प्रार्थना करनी चाहिए । हे मूढ़मते ! प्रार्थना के प्रभाव के विषय मेँ तर्क-वितर्क न कीजिए । आप भ्रम मेँ पड़ जायेँगे । आध्यात्मिक बातोँ मेँ तर्क-वितर्क से काम नहीँ चलता । बुद्धि सीमित तथा निर्बल साधन है । इस पर निर्भर न रहिए । प्रार्थना की ज्योति से अज्ञानान्धकार को दूर कीजिए ।
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