नादयोग
पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन मेँ बैठ जाइए । कानोँ को अँगूठोँ से बन्द कर लीजिए । इसे षण्मुखी या वैष्णवीमुद्रा कहते हैँ । अनाहत-ध्वनि के सङ्गीत को सुनिए । आप ध्यानमग्न हो जायेँगे ।
श्वास के साथ सोऽहम् (अजपाजप) अथवा अन्य किसी मन्त्र का जप कीजिए । एक या दो महीने के लिए प्राणायाम का अभ्यास कीजिए । आप दशोँ नादोँ को ठीक-ठीक सुनेँगे तथा आत्म-सङ्गीत के सुख का उपभोग करेगे । इस नाद के श्रवण से आप अन्य सभी ध्वनियोँ को भूल जायेँगे ।
सारे सांसारिक विचारोँ को त्याग दीजिए । अपने आवेग को वश मेँ कीजिए । सभी विषयोँ के प्रति उदासीन बनिए । यम अथवा सदाचार का अभ्यास कीजिए । मन को नाद पर एकाग्र कीजिए । इससे मनोनाश हो जाता है ।
नाद ऐन्द्रिक विषयोँ मेँ विचरण करने वाले मन-रूपी हाथी को वश मेँ करने के लिए अंकुश का काम करता है । यह चित्त-मृग को बाँधने के लिए जाल का काम करता है । जिस तरह मधु का पान करने वाली मधुमक्खी गन्ध की परवाह नहीँ करती, उसी तरह नाद मेँ विलीन मन विषय-वस्तुओँ की कामना नहीँ करता ।
प्रथम ध्वनि है चिनि । दूसरी ध्वनि है चिनिचिनि । तीसरी ध्वनि है घण्टी के समान, चौथी है शङ्ख-ध्वनि, पाँचवीँ है एक सितार की ध्वनि, छठी है ताल की ध्वनि, सातवीँ है बाँसुरी की ध्वनि, आठवीँ है ढोल की ध्वनि, नवीँ है मृदङ्ग की तथा दशवीँ दशवीँ है घनघोष की ध्वनि । दाहिने कान से आन्तरिक ध्वनि का श्रवण कीजिए । स्थूल ध्वनि से मन को सूक्ष्म ध्वनि पर लगाइए । मन शीघ्र ही ध्वनि मेँ विलीन हो जायेगा ।
सातवीँ ध्वनि के श्रवण करने पर आप गुप्त वस्तुओँ का ज्ञान प्राप्त कर लेँगे । आठवीँ मेँ आप परा-वाक् सुनेँगे । नवीँ मेँ आपको दिव्य चक्षु प्राप्त होँगे तथा दशवीँ मेँ आप परब्रह्म को प्राप्त कर लेँगे ।
ध्वनि मन को मोहित कर लेती है । मन ध्वनि के साथ दुध-पानी की तरह एक बन जाता है । यह ब्रह्म मेँ विलीन हो जाता है । तब आप नित्य-सुख के धाम को प्राप्त करेँगे ।
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