मंगलवार, 17 मई 2022

प्रजापति-इन्द्र-संवाद [ जान्दोग्योपनिषद्‌ ]

 प्रजापति-इन्द्र-संवाद 


[ जान्दोग्योपनिषद्‌ ] 


 प्रजापति ने कहा__"मनुष्य को उस आत्मा को खोजना जाहिए तथा उसी को जानना चाहिए जो पाप, जरावस्था, मृत्यु, शोक, क्षुधा तथा पिपासा से मुक्त है तथा जो सत्यकाम और सत्सङ्कल्प है । तभी वह नित्य सुख एवं अमरत्व को प्राप्त करेगा । "


 इन्द्र ने कहा :-"भगवन्‌ ! मैँ आत्मा को जानना चाहता हूँ । कृपया मुझे शिक्षा दीजिए ।"


 प्रजापति ने कहा :-"अच्छी तरह अलंकृक हो कर, आभूषित हो कर और परिष्कृत हो कर जल-पात्र मेँ अपने को देखो ।"


 इन्द्र ने वैसा हि किया ।


 प्रजापति ने पूछा :-"हे इन्द्र ! तुम क्या देखते हो ?"


 उसने कहा :-मैँ स्वयं को पात्र के जल मेँ :-अत्यलंकृत, अत्याभूषित तथा स्वच्छ पाता हूँ ।"


 प्रजापति ने कहा :-"वही आत्मा है जो अमर तथा अभय है __वही ब्रह्म है ।"


 इन्द्र इस उपदेश से सन्तुष्ट न हुआ । मन-ही-मन उसने चिन्तन किया :-"यदि शरीर अन्धा हो तो यह आत्मा भी अन्धा ; यदि शरीर लँगड़ा हो तो लँगड़ा ; यदि शरीर काना हो तो काना ; यदि शरीर पंगु हो तो पंगु तथा शरीर के नष्ट होने पर नष्ट हो जाता है । इस उपदेश मेँ तो मैँ कोई कल्याण नहीँ देखता ।"


 वह पुनः प्रजापति के पास गया ।


 प्रजापति ने कहा :-"जो व्यक्ति स्वप्न देखता है, वही अमर, अभय ब्रह्म है ।"


 इन्द्र इस उपदेश से भी सन्तुष्ट न हुआ । उसने चिन्तन किया : 


 "यद्यपि स्वप्न का आत्मा इस शरीर के अन्धे होने पर अन्धा नहीँ होता, काना होने पर काना नहीँ होता, नष्ट होने पर नष्ट नहीँ होता ; परन्तु यह दुःखी होता है, स्वप्न मेँ ही रुदन करता है ; अतः मैँ इसमेँ कोई कल्याण नहीँ देखता ।"


 इन्द्र पुनः प्रजापति के पास गया । 


 प्रजापति ने कहा :-"जो व्यक्ति गम्भीर सुषुप्ति का आनन्द भोगता है वह आत्मा है, वह अमर और अभय है । वही ब्रह्म है ।"


 इन्द्र ने मनन किया :-"सुषुप्ति मेँ तो पूर्ण अभाव रहता है । इसमेँ अपरोक्ष ज्ञान भी नहीँ होता । इसमेँ भी मुझे कोई कल्याण दिखायी नहीँ देता ।"


 इन्द्र पुनः प्रजापति के पास गया । 


 प्रजापति ने कहा :-"हे इन्द्र ! यह शरीर नश्वर है । जीव दुःख-सुख से आक्रान्त रहता है । आँख दृष्टि के लिए करण है । नासिका सूँघने के लिए साधन है । श्रोत्र सुनने का साधन है ; परन्तु आत्मा या ब्रह्म मौन साक्षी है । वह अमर है, अभय है । वह तीनोँ शरीरोँ, तीनोँ अवस्थाओँ अथवा मन, शरीर एवं इन्द्रियोँ से भिन्न है ।"


 इन्द्र ने ब्रह्म पर ध्यान किया तथा ब्रह्मज्ञान के द्वारा नित्य सुख तथा अमरत्व प्राप्त कर लिया ।


  

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