प्राणायाम
प्राणायाम वास्तविक विज्ञान है । यह अष्टाङ्गयोग का चौथा अङ्ग है । यह प्राण का निरोध तथा श्वास का नियमन है ।
प्राणायाम मन को स्थिर करता, जठराग्नि को प्रदीप्त करता, पाचन-शक्ति को बढ़ाता, स्नायुओँ को सबल बनाता, रजस् को विनष्ट करता, सभी रोगोँ को दूर करता, सभी प्रकार के आलस्योँ को दूर कर शरीर को हलका तथा स्वस्थ बनाता और कुण्डलिनी को जाग्रत करता है ।
प्रणायाम का अभ्यास उस समय ही करना चाहिए जबति पेट खाली हो । अपने अभ्यास मेँ सदा नियमित रहिए । अभ्यास के तुरन्त बाद ही स्नान न कीजिए । प्रारम्भ मेँ कुम्भक का अभ्यास न कीजिए । हलके पूरक तथा रेचक का धीरे-धीरे अभ्यास करना चाहिए । शक्ति से अधिक अपने स्वास पर तनाव न डालिए । पूरक, कुम्भक तथा रेचा के बीच 1 : 4 : 2 का अनुपात रखिए । बहुत धीरे-धीरे श्वास छोड़िए ।
पद्म, सिद्ध या सुखासन मेँ बैठजाइए । शिर, ग्रीवा तथा धड़ को एक सीध मेँ ही रखिए । बायीँ नासिका से धीरे-धीरे श्वास लीजिए । श्वास को पूर्वोक्त अनुपात के अनुसार रोकिए तथा तब दायीँ नासिका के द्वारा धीरे-धीरे श्वास को छोड़िए । यह प्राणायाम की आधी क्रिया है । तब दायीँ नासिका के द्वारा श्वास खीँचिए, रोकिए तथा बायीँ नासिका के द्वारा धीरे-धीरे श्वास को छोड़िए । एक या दो मिनट से अधिक समय तक श्वास को न रोकिए ।
अपनी शक्ति क अनुसार ही दश या बीस बार प्रणायाम कीजिए । अपने को थका न डालिए । धीरे-धीरे संख्य बढ़ाते जाइए । आप 16 : 64 : 32 तक संख्या को बढ़ा सकते हैँ । यही सुखपूर्वक-प्राणायाम है ।
गरमी मेँ शीतली का अभ्यास किजिए । इसके द्वारा आपका खून साफ होगा तथा शरीर मेँ शीतलता आयेगी । शीतकाल मेँ भस्त्रिका का अभ्यास किजिए । इसके द्वारा दमा तथा यक्ष्मा रोग दूर होँगे । अभ्यास के समय ओउम् (ॐ) अतवा राम का मानसिक जप कीजिए । ब्रह्मचर्य-पालन तथा आहार-संयम कीजिए । आपको अधिकतम लाभ प्राप्त होगा तथा आपकी नाड़ी-शुद्धि भी शीघ्र हो जायेगी ।
प्राण तथा मन एक-दूसरे से निकट-सम्बन्ध रखते हैँ । यदि आप प्राण को वश मेँ कर लेते हैँ तो आपका मन भी नियन्त्रित हो जायेगा और यदि आप मन को वश मेँ कर लेते हैँ तो प्राण स्वतः ही वशीभूत हो जायेगा । प्राण का सम्बन्ध मन से है, मन के द्वारा इसका सम्बन्ध सङ्कल्प से और सङ्कल्प के द्वारा जीवात्मा से तथा जीवात्मा के द्वारा परमात्मा से है ।
इसका अभ्यास अभी से ही आरम्भ कर दीजिए । सच्चाई-पूर्वक अभ्यास किजिए । श्वास को वशीभूत तथा शान्त बनाइए । श्वास को स्थिर कर समाधि मेँ प्रवेश कीजिए । श्वास का दमन कर आयु की वृद्धि कीजिए । प्राणायाम के द्वारा योगी बनिए__शान्ति, शक्ति, आनन्द तथा सुख का अक्षय स्रोत बनिए ।
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