मनोनिग्रह
मन आत्म-शक्ति है । मन के द्वारा ही ब्रह्म अथवा परमात्मा विभिन्न वस्तुओँ से पूर्ण इस नानात्व जगत् के रूप मेँ व्यक्त होता है ।
मन संस्कारोँ का संग्रह मात्र ही है । यह आदतोँ का गट्ठर मात्र है । मन का सच्चा स्वभाव वासनाओँ से ही निर्मत है । मैँ अथवा अहङ्कार ही मन-रूपी वृक्ष का बीज है । इस बीज से बुद्धि अंकुरित होती है । इस अंकुर से अनेक शाखाओँ के रूप मेँ सङ्कल्प उत्पन्न होते हैँ ।
मन सूक्ष्म सात्त्विक पदार्थ से निर्मित है । छान्दोग्यपनिषद के अनुसार मन अन्न के सूक्ष्मतम भाग से निर्मित है ।
मन दो प्रकार का है__अशुद्ध मन तथ शुद्ध मन । पूर्वक्त बन्धन का कारण है ओर उत्तरोक्त मुक्ति का । ध्येय वस्तु मेँ मनोलय__कुछ समय के लिय मनलय हो जाना__आपकी मुक्ति मेँ सहायक नहीँ हो सकता । मनोनाश से ही मोक्ष-प्राप्ति सम्भव है ।
विषयोँ की तृष्णा न रखिए । अपनी आवश्यकताओँ को कम कीजिए । वैराग्य को बढ़ाइए । वैराग्य से मन सूक्ष्म हो जाता है ।
अधित न मिलिए । अधिक न बोलिए । अधिक न चलिए । अधिक न खाइए । अधिक न सोइए ।
अपने आवेगोँ पर नियन्त्रण रखिए । कामनाओँ तथा वासनाओँ का परित्याग कीजिए । काम तथा क्रोध का दमन कीजिए । शुद्ध मन के द्वारा अशुद्ध मन को नष्ट कर डालिए तथा ध्यान के द्वारा शुद्ध मन का अतिक्रमण कीजिए । पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन कीजाए । आध्यात्मिक मार्ग मेँ अधूरी साधना का कोई स्थान नहीँ है ।
मन के साथ युद्ध न कीजिए । धारणा के लिए बल का प्रयोग न कीजिए । जब मन अधिक उछलता अथरवा भटकता होतो मन के साथ जबरदस्ती न किजिए, उसे कुछ समय के लिए चलने दीजिए जब तक कि वह थक न जाये । पहले तो वह अवसर से लाभ उठा कर उच्छृङ्खल बन्दर की भाँति उछलना शुरू करेगा । तदुपरान्त धीरे-धीरे वह शान्त हो जायेगा एवं आपके आदेशोँ की प्रतीक्षा करने लगेगा ।
जब बुरे विचार मन मेँ आयेँ तो उन्हेँ दूर करने के लिए सङ्कल्प-शक्ति का प्रयोग न कीजिए । आपकी शक्ति का अपव्यय होगा । अन्यथा सङ्कल्प-शक्ति पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा । आप थक जायेँगे । जित7अ अधिक आप बल-प्रयोग करेंगे, उतना ही आधिक बुरे विचार आयेँगे । वे और जल्दी ही लौटेँगे । वृत्ति आधिक बलवती बन जायेगी । उदासीन एवं शान्त बने रहिए । उन विचारोँ के मूक साक्षी बनिए । उनके साथ तादात्म्य-सम्बन्ध स्थापित न कीजिए । वे शीघ्र ही विलुप्त हो जायेँगे । उनके बदले अच्छे विचारोँ को स्थान दीजिए । ईश्वर के नाम का भजन तथा कीर्त्तन कीजिए ।
एक दिन के लिए भी ध्यान को न छोड़िए । नियमबद्धता अत्यन्त आवश्यक है । मन थका हुआ हो तो धारणा का अभ्यास न कीजिए । थोड़ा आराम कर लीजिए । रात्रि मेँ भारी भोजन न कीजिए । इससे प्रातः ध्यान मेँ बाधा पहुँचेगी ।
जप, कीर्त्तन, प्राणायाम, सत्सङ्ग, शम, यम, सात्त्विक आहार, स्वाध्याय, ध्यान, विचार__इन सबसे मनोनिग्रह मेँ सहायता मिलेगी तथा आप नित्य-सुख एवं अमरत्व को प्राप्त तरेँगे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें