कर्मयोगी की प्रर्थना
=>
इस श्लोक को ध्यान के अन्त मेँ कहिए :
आत्मा त्वं गीरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं,
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः ।
सञ्चारा पदयोः प्रदक्षिण विधिः स्तोत्राणि सर्वा गिरा,
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम् ॥
तु मेरी आत्मा है । बुद्धि तेरी पत्नी पार्वती है । प्राण तेरे सहचर हैँ । यह शरीर तेरा घर है । विषयोपभोग तेरी पूजा है । सुषुप्ति समाधि है । पैरोँ से मेरा चलना ही तेरी प्रदक्षिणा है । मेरी सारी वाणी तेरी स्तुति ही है । जो भी कर्म मैँ करता हूँ ; हे शम्भो ! वह सब तेरी आराधना ही है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें