गुरुपूर्णिमा-सन्देश
उग्र योगाभ्यास के लिए तथा आध्यात्मिक साधना का श्रीगणेश करने के लिए भी गुरुपूर्णिमा वहुत ही शुभ दिवस है । यह आषाढ़-पुर्णिमा-दिवस है । इसे व्यास-पूजा-दिवस भी कहते हैँ । इस दिन श्री व्यास तथा अन्य गुरुओँ की पूजा की जाती है ।
श्री व्यास जी ने, जो चिरञ्जीवियोँ मेँ से एक हैँ तथा जो भगवान् विष्णु के अवतार हैँ, इसी चिरस्मरणीय दिवस को वेदान्त-सूत्र एवं महाभारत का लेखन प्रारम्भ किया । इसी दिन से संन्यासियोँ का चातुर्मास प्रारम्भ होता है । वर्षा के दिनोँ मेँ संन्यासीगण चार महिने के लिए एक ही स्थान पर रह कर ब्रह्मसूत्र का अध्ययन तथा निदिध्यासन करते हैँ ।
इस दिन दूध तथा फल का आहार कीजिए, जप एवं ध्यान का गम्भीर अभ्यास कीजिए, अपने गुरु की पूजा कीजिए तथा महात्माओँ, साधुओँ एवं गरीबोँ को भोजन खिलाइए । ब्रह्म-सूत्र का अध्ययन कीजिए तथा गुरुमन्त्र अथवा इष्टमन्त्र का चातुर्मास के दिनोँ मेँ कुछ लाख जप (अनुष्ठान अथवा पुरश्चरण) कीजिए । आप बहुत ही लाभान्वित होँगे ।
गुरु स्वयं ब्रह्म अथवा ईश्वर है । गुरु ही आपका सच्चा पिता, माता, मित्र, पथ-प्रदर्शक तथा संरक्षक है । साधकोँ की आध्यात्मिक उन्नति के लिए गुरु की कृपा अनिवार्य है । श्रुति कहती है, "जिस महात्मा साधक मेँ ईश्वर के प्रति परम भक्ति है तथा गुरु के प्रति उतनी ही भक्ति है जितनी ईश्वर के प्रति, उसी के लिए यह (उपनिषद् के) गुप्त रहस्य प्रकट हो सकते हैँ ।"
ब्रह्म ही एकमेव सत्य है । वह सबकी आत्मा है । वह सर्वोपरि है । वह इस जगत् का सारतत्त्व है । वह 'एकमेवा द्वितीयम्' है तथा सभी नाम-रूपोँ एवं विभेदोँ का अधिष्ठान है । तू ही वह अमर, सर्वव्यापक, सुखमय ब्रह्म है । 'तत्त्व-मसि' :-तू वही है । इसका साक्षात्कार कर मुक्त बन जा ।
ब्रह्म-सूत्र के इन चार मुख्य सूत्रोँ को याद रखिए । (1) 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' :-अथ अतः ब्रह्म के विषय मेँ ही जिज्ञासा की जाती है । (2) 'जन्माद्यस्य यतः' :-जिससे जन्म आदि का प्रारम्भ होता है । (3) 'शास्त्रयोनित्वात्' :-शास्त्र ही ज्ञान के साधन हैँ । (4) 'तत् तु समन्वयात्' :-परन्तु वही, क्योँकि वह सभी ग्रन्थोँ का एकमेव आधार है ।
अब कीर्त्तन कीजिए :
जय गुरु शिव गुरु हरि गुरु राम ।
जगद्गुरु परमगुरु सत्गुरु श्याम ॥
श्री व्यास तथा ब्रह्मविद्या-गुरुओँ का स्मरण कीजिए और उनकी पूजा कीजिए । उनके आशीर्वाद आप सभी को प्राप्त होँ !
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