कर्म क्या है ?
कर्म का अर्थ कार्य करना है । जैमिनि के अनुसार आग्निहोत्र, यज्ञ आदि कर्मकाण्ड कर्म कहलाते । कर्म मेँ एक गुप्त शक्ति है जीसे अदृष्ट कहते हैँ । यही जीव को कर्म-फल प्राप्त कराता है । जैमिनि के लिए कर्म ही सब-कुछ है । मीमांसा-दर्शन की विचार-धारा के मानने वालेँ के लिए कर्म ही सब-कुछ है । जैमनि पूर्वमीमांसा-दर्शन के प्रवर्तक हैँ । वे उत्तर मीमांसा अथवा वेदान्त के संस्थापक महर्षि व्यास के शिष्य थे । मीमांसा-दर्शन मेँ कर्म-फर-दाता ईश्वर के अस्तित्व का निषेध किया जाता है ।
गीता के अनुसार कोई भी कार्य कर्म है । दान, त्याग, तप___ये सब कर्म हैँ । श्वास लेना, देखना, सुनना, स्वाद लेना, अनुभव करना, सूँघना, टहलना, बोलना आदि दार्शनिक रूप से कर्म ही हैँ । विचारना या सोचना वास्तविक कर्म है । राग-द्वेष ही वास्तविक कर्म हैँ ।
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