मंगलवार, 17 मई 2022

मुक्ति क सन्देश

 मुक्ति क सन्देश 


 ॐ, हे अमरत्व की सन्तान ! ईश्वर आपके अन्दर है । बह सभी भूतोँ के हृदय मेँ स्थित है । जो-कुछ भी आप दैखते, सुनते, छूते अथवा अनुभव करते हैँ वह ईश्वर है ; अतः किसी से घृणा न कीजिए, किसी को ठगिट नहीँ, किसी को हानि मत पहुँचाए । सबसे प्रेम कीजिए तथा सबके साथ एक बन जाइए । आप शीघ्र ही नित्य सुख तथा अजस्र आनन्द प्राप्त करेँगे । आत्म-संयमी बनिए । विचार, भावना, आहार तथ वस्त्र मेँ सरल तथा सामञ्जस्यपूर्ण बनिए । सबसे प्रेम कीजिए । किसी का भय न कीजिए । निद्रा, आलस्य तथा भय का परित्याग कीजिए । दिव्य जीवन बिताइए । सत्य के अन्वेषक बनिए । धर्म के नियम को समझिए । सतर्क तथा सावधान बनिए । विचार तथा मनन के द्वारा शोक एवं सङ्घर्ष पर विचय पाइए । प्रत्येक क्षण मुक्ति, पूर्णता तथा नित्य सुख की ओर बढ़ते जाइए । 


 क्या आपमेँ से कोई ऐसा है जो बलपूर्वक कह सके, "मैँ अधिकारी साधक हूँ । मुझमे मुमुक्षुत्व है । मैँने स्वयं को साधन-चतुष्टय से सम्पन्न बनाया है । निष्काम सेवा, कीर्त्तन तथा जप के द्वारा मैँने अपने हृदय को शुद्ध बना लिया है । मैँमेँ श्रद्धा तथा भक्ति के द्वारा गुरु की सेवा की है तथा उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त कर लिया है ।" वह मनुष्य इस जगत्‌ की रक्षा कर सकता है । वह शीघ्र ही जगत्‌ के लिए प्रकाश-स्तम्भ, ज्ञान का अपूर्व पथप्रदर्शक तथा सक्रिय योगी बन जायेगा । हे मानव ! अब स्वयं तैयार हो जा । यह बहुत ही लज्जा की बात है कि अब तक तुमने खाने, पीने, सोने, बात करने तथा व्यर्थ कर्मोँ मेँ जीवन व्यतीत किया है । तुमने कोई भी पुण्य कर्म नहीँ किया । अन्तिम समय निकट आता जा रहा है । अभी भी अधिक विलम्ब नहीँ हुआ है । इसी क्षण से नामस्मरण प्रारम्भ करो । सच्चे तथा अभीप्सु बनो । सबसे प्रेम करो । तुम भगवत्कृपा की प्राप्ति के अधिकारी बन जाओगे । तुम जन्म-मृत्यु के भयङ्कर सागर का सन्तरण कर नित्य सुख तथा अमरत्व को प्राप्त करोगे । एक दिन के लिए भी ध्यान का अभ्यास न छोड़ो । नियमितता परम आवश्यक है । जब मन थका होतो धारणा का अभ्यास न करो । उसे थोड़ा विश्राम दो । रात्रि को भारी आहार न करो । इससे तुम्हारे प्रातःकाल के ध्यान मेँ बाधा पहुँचेगी । जप, कीर्त्तन, प्राणायाम, सत्सङ्ग, शम, दम, यम, सात्त्विक आहार, स्वाध्याय, ध्यान, विचार :-इन सबके अभ्यास से तुम्हेँ मन के निग्रह मेँ सहायता मिलेगी तथा तुम नित्य सुख और अमरत्व को प्राप्त कर लोगे । यदि बुरे विचार तुम्हारे मन मेँ प्रवेश करेँ तो तुम अपनी सङ्कल्प-शक्ति के द्वारा बल-पूर्वक उन्हेँ न भगाओ । इससे तुम अपनी शक्ति की हानि करोगे । ओउम्‌ ।


॥ॐ॥


   

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