कलिसन्तरणोपनिषद्
द्वापर-युग के अन्त मेँ नारद ऋषि ब्रह्मा जी के पास गये तथा बोले___"हे प्रभु ! मैँ कलियुग का सुगमता कैसे सन्तरण करूँ ?" ब्रह्मा ने कहा___"तुमने अच्छा प्रश्न किया । उसे सुनो जो सभी वेदोँ मेँ गुप्त है, जिससे मनुष्य संसार को पार कर सकता है । 'नारायण' के नाम के उच्चारण से ही भगवान् कलि के सारे बुरे प्रभावोँ को नष्ट कर देते हैँ ।"
नारद ऋषि ने पूछा___"हे भगवन् ! नाम क्या है ? " ब्रह्मा जी ने कहा___"नाम ये हैँ :
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ॥
"ये सोलह नाम कलि के बुरे प्रभावोँ को नष्ट कर देते है । सारे वेदोँ मेँ इससे बढ़ कय अन्य कोई साधन नहीँ है । ये सोलह नाम उन आवरणोँ को दूर करते है जिन्होँने जीवोँ को आवृत कर रखा है । बादलोँ के हट जाने पर जिस तरह सूर्य विभासित हो जाता है, उसी तरह आवरण के दूर हो जाने पर परमात्मा अपनी महिमा मेँ चमक उठता है ।"
नारद जी ने कहा___"हे प्रभु, इस नाम-जप के साथ कौन-कौन-से नियमोँ का पालन करना चाहिए ?" ब्रह्मा जी ने कहा___"हे नारद, इसके लिए कोई नियम नहीँ है । जो भी व्यक्ति इन मन्त्रोँ का साढ़े तीन करोड़ (तीन सौ पचास लाख) बार जप करेगा, वह सारे पापोँ से मुक्त हो जायेगा ; वह सभी बन्धनोँ से स्वतन्त्र हो जायेगा ; वह भगवान् मेँ विलीन हो जायेगा तथा नित्य सुख एवं अमृतत्व को प्राप्त कर लेगा ।"
जीव की सोलह कलाएँ है, उनके अनुसार ही इस महामन्त्र मेँ सोलह नाम हैँ । आखण्ड-कीर्त्तन के लिए यह उत्तम है । यदि प्रतिदिन आप बीस हजार बार इस मन्त्र का जप करेँ तो आप पाँच वर्षोँ मेँ साढ़े तीन करोड़ जप पूरा कर लेगे । आप इस मन्त्र का कीर्त्तन तथा जप भी कर सकते हैँ । आप नोट-पुस्तिका मेँ इसका लिखित जप भी कर सकते हैँ ।
परमात्मा का भजन किसी भी अवस्था मेँ, किसी भी शुद्ध अथवा अशुद्ध, जाने अथवा अनजाने मेँ, सावधानीपूर्वक अथवा असावधानीपूर्वक, किसी भी तरह किया जाये, वह अवश्य ही वाञ्छित फल प्रदान करता है । परमात्मा के नाम की महिमा तर्क-वितर्क अथवा बुद्धि से स्थापित नहीँ की जा सकती । इसे केवल भक्ति, श्रद्धा तथा जप से ही अनुभव किया जा सकता है । प्रत्येक नाम मेँ अनगिनत शक्तियाँ निहित हैँ । नाम की शक्ति अमोघ है । इसकी महिमा अवर्णनीय है । भगवन्नाम का प्रभाव तथा इसकी गुप्त शक्ति अथाह है ।
उपर्युक्त विधि से ईश्वर के नामोँ के जप द्वारा आप ईश्वर-चैतन्य प्राप्त करेँ ! ईश्वर के नामोँ के लिए आपमेँ सच्ची प्रीति उत्पन्न हो !
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