ॐ का दर्शन तथा ध्यान
ब्रह्म अथवा परमात्मा ही सर्वोपरि है । ॐ उसका नाम है; अतः ॐ की ही उपासना करनी चाहिए । हर वस्तु ॐ ही है । ॐ ब्रह्म का प्रतीक है । यह शक्ति का शब्द है । यह पवित्र एकाक्षर-मन्त्र है । यह वेदोँ का सार है । यह वह नौका है जो आपको अभय एवं अमृतत्व के तट पर पहुँचा देगी ।
प्रणव अथवा ॐ सभी मन्त्रोँ मेँ महान् है । यह साक्षात् मुक्ति प्रदान करता है । सारे मन्त्र ॐ से प्रारम्भ होते हैँ । हर स्तोत्र ॐ से प्रारम्भ होता है । हर उपनिषद् ॐ से ही प्रारम्भ होती है । गायत्री का भी आरम्भ ॐ से ही होता है । ॐ का उच्चारण करते हुए ही विविध देवोँ को आहुतियाँ अर्पित की जाती हैँ । ॐ की महत्त किसी भी व्यक्ति से पूर्णतः वर्णित नहीँ हो सकती ।
जहाँ सारी वाणी शान्त हो जाती है, वृत्तियाँ निरुद्ध हो जाती हैँ, जहाँ पर कि बुद्धि कार्य-व्यापार बन्द हो जाता तथा इन्द्रियाँ रुक जाती हैँ, वह स्थान ॐ ही है । वह लक्ष्य अथवा शब्द जिसकी स्तुति सारे वेद करते हैँ, जिसकी घोषणा सारे ग्रन्थ करते हैँ तथा जिसकी कामना से साधकगण ब्रह्मचर्य-जीवन का पालन करते हैँ वह ॐ ही है । ॐ सर्वोच्च अथवा श्रेष्ठ है । ॐ परम आलम्बन है । यस परम सत्य है । जो ॐ को जानता है, उसकी पूजा ब्रह्मलोक मेँ होती है । वह जोकुछ भी चाहता है, प्राप्त कर लेता है ।
अ, उ तथा म् __ इन तीनोँ के मेल से ही ॐ का निर्माण हुआ । अ शब्द का प्रारम्भ है, उ उसकाका मध्य है तथा म् अन्त है । इस प्रकार ॐ शब्दोँ तथा ध्वनियोँ की समस्त परिधि को अपने मेँ निहित करता है ।
ब्रह्मा, विष्णु, शिव, विराट्, हिरण्यगर्भ, ईश्वर, सत्त्व, रजस्, तमस्, जाग्रति, स्वप्न, सुषुप्ति, सृष्टि, स्थिति तथा लय इत्यादि जितने भी तृक हैँ, उनका प्रतीक ॐ ही है ।
ॐ का कीर्त्तन, ॐ का मानसिक जप, ॐ का गायन तथा ॐ का ध्यान मन को शुद्ध बनाते तथा उसके विक्षेप को दूर करते, अज्ञान के आवरण को नष्ट करते तथा साधक को परमात्मा मेँ विलीन बना तेते हैँ ।
प्रणव धनुष है, मन शर है, ब्रह्म उसका लक्ष्य है । उस (ब्रह्म) का सावधानीपूर्वक वेधन करना चाहिए और बाण के समान तन्मय हो जाना चाहिए ।
इस एकक्षर ॐ को ही जान लीजिए, तब आप सब-कुछ जान जायेँगे । आप परम ज्ञान को प्राप्त कर लेँगे ।
पद्म, सिद्ध अथवाकिसी भी सुखासन मेँ बैँठ जाइए । त्रिकूट पर ध्यान कीजिए । निम्नाङ्कित सूत्रोँ के अर्थ पर ध्यान कीजिए और उनका मानसिक जप भी कीजिए ।
सच्चिदानन्द स्वरूपोऽहम्__मैँ सच्चिदानन्दस्वरूप हूँ__ॐ ॐ ॐ ।
अहं ब्रह्मास्मि__मेँ ब्रह्म हूँ__ॐ ॐ ॐ ।
मैँ सर्वव्यापक चैतन्य हूँ__ॐ ॐ ॐ ।
मैँ साक्षी हूँ__ॐ ॐ ॐ ।
सोऽहम्, शिवोऽहम्__ॐ ॐ ॐ ।
मैँ शरीर तथा मन से पृथक् हूँ__ॐ ॐ ॐ ।
मैँ अमर सर्वव्यापक आत्मा हूँ__ॐ ॐ ॐ ।
आप शिघ्र ही परमात्मा से अपनी एकता का साक्षात्कार करेँगे तथा अपनी मूल ब्राह्मी महिमा मेँ विभासित हो उठेँगे ।
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