सङ्कीर्त्तनयोग SANKIRTAN YOG
भाव, प्रेम तथा श्रद्धा के साथ भगवान् के नाम का गायन करना सङ्कीर्त्तन है । सङ्कीर्त्तन मेँ लोग एकसाथ मिल कर सामूहिक रूप से किसी सार्वजनिक स्थान पर ईश्वर के नाम का कीर्त्तन करते है । नवधा-भक्ति मेँ कीर्त्तन भी एक है । आप केल कीर्त्तन के द्वारा भी भगवान् का साक्षात्कार कर सकते हैँ । कलियुग मेँ ईश्वर-चैतन्य की प्राप्ति का यह सबसे सुगम उपाय है__'कलौ केशव-कीर्त्तनात् ।'
जब कई मनुष्य मील कर कीर्त्तन करते हैँ तो प्रबल आध्यात्मिक तरङ्ग अथवा महाशक्ति का निर्माण होता है । इससे साधक का हृदय शुद्ध होता है तथा वह समाधि की ऊँचाई को प्राप्त कर लेता है । शक्तिशाली स्पन्दन सुदूर स्थानोँ को जाते हैँ । वे मन की उन्नति, सान्त्वना तथा बल का सभी लोगोँ मेँ सञ्चार करते हैँ तथा शान्ति, समता ओर एकरसता का सन्देश देते हैँ । वे विबम शक्तियोँ को विनष्ट कर समस्त संसार मेँ अविलम्ब शान्ति तथा सुख लाते हैँ ।
भगवान् हरि नारद से कहते हैँ :--
"नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च ।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद ॥
___हे नारद न तो मैँ वैकुण्ठ मेँ और न योगियोँ के हृदय मेँ ही निवास करता हूँ । मेरे भक्त जहाँ मेरे नाम का गायन करते हैँ, वहाँ मैँ निवास करता हूँ ।"
कीर्त्तन पाप, वासना तथा संस्कारोँ को विनष्ट करता है तथा हृदय को प्रेम तथा भक्ति से परिपूर्ण कर भक्त को ईश्वर-साक्षात्कार प्रदान करता है ।
अखण्ड-कीर्त्तन बड़ा ही प्रभावशाली है । यह हृदय को शुद्ध बनाता है । महामन्त्र___"हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे । हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण , हरे हरे ॥" अथवा 'ॐ नमः शिवाय' का कीर्त्तन तीन घण्टे या चौबीस घण्टे या तीन दिन या एक सप्ताह करते हैँ । आपको इसके लिए दल बनाने पड़ेँगे । एक दल पहले बोलता है, दूसरे उसे दोहराते हैँ ।
रविवार अथवा छुटि्टयोँ मेँ अखण्ड-किर्त्तन कीजिए । प्रातः समय गलियोँ मेँ प्रभातफेरी, कीर्त्तन कीजिए । प्रातः- कालीन किर्त्तन रात्रि-कालीन किर्त्तन से अधिक प्रभावशाली है ।
रात्रि मेँ भगवान् के चित्र के समक्ष अपने बच्चोँ, परिवार तथा नौकरोँ के साथ बैठ जाइए । एक या दो घण्टे कीर्त्तन कीजिए । अभ्यास मेँ नियमित बनिए । आप महान् शान्ति तथा बल प्राप्त करेँगे ।
अपने हृदय के अन्तरतम से भगवन्नाम का गायन कीजिए । उसके प्रति पूर्ण तथा अनन्य भाव रखिए । ईश्वर-साक्षात्कार मेँ विलम्ब करना बड़ा ही दुःखद है । उनमेँ विलीन हो जाइए । उन्हीँ मेँ निवास कीजिए । उनमेँ स्थित हो जाइए ।
आप सभी शान्ति तथा समृद्धि प्राप्त करेँ !
लोकाः समस्ता सुखिनो भवन्तु !
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