मंगलवार, 17 मई 2022

हठयोग

 हठयोग  


 हठयोग क सम्बन्ध आसन, प्राणायाम, बन्ध तथा मुद्रा से है । 'ह' तथा 'ठ' का अर्थ है सूर्य तथा चन्द्र का योग__प्रण तथा अपान वायु का योग । जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये तब तक हठपूर्वक कार्य करते रहना भी 'हठ' है । त्राटक, एक पैर पर खड़े रहना तथा ऐसी ही अन्य मुद्राएँ हठयोग मेँ ही सम्मिलित हैँ । हठयोग को राजयोग से कभी भी अलग नहीँ किया जा सकता है । हठयोग की समाप्ति पर राजयोग का आरम्भ होता है । राजयोग तथा हठयोग एक-दूसरे पर अवलम्बित हैँ । राजयोग तथा हठयोग एक दूसरे के आवश्यक पूरक हैँ । इन दोनोँ योगोँ के अभ्यास तथा ज्ञान के बिना कोई भी व्यत्ति पूर्ण योगी नहीँ बन सकता है । हठयोग साधक को राजयोग के लिए तैयार करता है । 


 हठयोगी प्राण तथा प्राण से अपनी साधना को आरम्भ करता है । राजयोगी मन से तथा ज्ञानयोगी बुद्धि एवं सङ्कल्प से अपनी साधना आर्म्भ करते हैँ ।


 हठयोगी प्राण तथा अपान को संयुक्त कर, उसे सुषुम्ना के षट्‌-चक्रोँ से सहस्रार को ले जाता है । इस तरह से वह सिद्धियाँ प्राप्त करता है । राजयोगी संयम के द्वारा (धारणा, ध्यान तथ समाधि के सम्मिलित अभ्यस के द्वारा) सिद्धियाँ प्राप्त करता है । ज्ञानयोगी सत्सङ्कल्प के द्वारा सिद्धियोँ का प्रदर्शन करता है । भक्त अत्मसमर्पण तथा एतद्‌द्वारा प्राप्त कृपा से सिद्धियोँ को प्राप्त करता है ।


नेति, धौति, नौलि, बस्ति, त्राटक तथा कपालभाति हठयोग का क्रियाएँ हैँ । इनका अभ्यास सभी व्यक्तियोँ के लिए आवस्यक नहीँ हैँ । जिनके शरीय मेँ अधिक कफ है, उनको इन क्रियाओँ का अभ्यास करना चाहिए । किसी निपुण हठयोगी से इनको सीख लीजिए । हठयोग ही लक्ष्य नहीँ है, यह तो लक्ष्य-प्राप्ति का साधनमात्र है । सुन्दर स्वास्थ्य को प्राप्त कर राजयोग का अवलम्बन कीजिए । 


 आसन, कुम्भक-प्राणायाम और मुद्रा कीजिए तथा कुण्डलिनी को उद्‌बुद्ध कर उसे सुषुम्ना के षट्‌-चक्रोँ से हो कर सहस्रार को ले जाइए । हे च्योतिपुत्रो ! क्य आप अमृतत्वप्रदायक सुधा का पान नहीँ करेँगे ?


 प्रिय बन्धु ! सुन्दर स्वास्थ्य प्राप्त कर लीजिए । स्वास्थ्य के बिना आप कैसे जीवन का निर्वाह कर सकेँगे ? स्वास्थ्य के बिना आप जीविकोपार्जन कैसे कर सकेँगे ? स्वास्थ्य के बिना आप योग अथवा किसी भी कार्य मेँ कैसे सफलता प्राप्त कर सकते हैँ ? हठयोग के अभ्यास के द्वारा सुन्दर स्वास्थ्य को प्राप्त कर लिजिए, सहस्रार के अमृत का पान कीजिए तथा शिव के अमर धाम मेँ निवास कीजिए !



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