दीपावली का सन्देश
दीपावली दीपोँ का त्योहार है । भारत के प्रायः सभी भागोँ मेँ यह पर्व बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है । हिन्दुओँ के लिए यह समय पूजा तथा आनन्द मनाने के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है तथा दो दिन मनाया जाता है । लक्ष्मी देवी के सम्मान मेँ हिन्दू व्यावसायिक वर्ष के प्रथम दिवस को यह त्योहार मनाया जाता है ।
इसी दिन श्रीराम रावण को पराजित कर अयोध्या लौटे थे । इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का संहार किया था ।
दक्षिण भारत मेँ इस दिन प्रातःकाल सभी तैल-स्नान करते हैँ तथा नये वस्त्र धारण करते हैँ । इस त्योहार के दिन उत्तर भारत के व्यवसायीजन अपने नये बहीखाते आरम्भ करते हैँ तथा आगामी वर्ष मेँ सफलता एवं सम्पत्ति के लिए प्रार्थना करते हैँ । हिन्दुओँ के घर दिन मेँ साफ-सुथरे किये तथा सजाये जाते हैँ और रात्रि को मिट्टी के दीपक जलाये जाते हैँ । मुम्बई तथा अमृतसर मेँ दीपोँ की सजावट सबसे अच्छी होती है । अमृतसर का विख्यात स्वर्ण-मन्दिर हजारोँ प्रदीपोँ से, जो कि विशाल सरोवर के चारोँ ओर की सभी सीढ़ियोँ पर रखे जाते हैँ, सन्ध्या को जगमगा उठता है । अयोध्या के गंगा किनारे 25 लाख प्रदीपोँ से सुशोभित किया गया है । वैष्णवजन गोवर्द्धन-पूजा करते हैँ तथा बहुत बड़े पैमाने पर अन्नकूट अथवा समष्टि भण्डारा कराते हैँ ।
हे राम ! आपके हृदय के प्रकोष्ठ मेँ ज्योतियोँ की ज्योति, स्वयं-प्रकाश आन्तरिक आत्म-ज्योति सदा स्थिर गति से प्रदीप्त है । शान्त बैठ जाईए । आँखे बन्द कर लीजिए । इन्द्रियोँ को समेट लीजिए । मन को इस परम ज्योति पर स्थिर कीजिए तथा आत्मिक ज्योति की प्राप्ति द्वारा वास्तविक दीपावली का आनन्द लूठिए ।
अहङ्कार ही वास्तविक नरकासुर है । इस अहङ्कार को आत्मज्ञान के खड्ग द्वारा मारिए । इस जगत् की परम ज्योति श्रीकृष्ण मेँ विलीन हो जाइए तथा आन्तरिक ज्योतिर्मय आध्यात्मिक दीपावली का आनन्द लूटिए ।
जो स्वयं सबको देखता है, जिसको कोई देखता नहीँ, जो बुद्धि, सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्रोँ एवं समस्त जगत् को आलोकित करता है ; परन्तु जिसे ये सब आलोकित नहीँ कर पाते :-वही ब्रह्म है । वही आत्मा है । ब्रह्म मेँ जीवन यापन कर तथा नित्य आत्म-सुख को प्राप्त कर वास्तविक दिपावली मनाइए ।
वहाँ सूय्य प्रकाशित नहीँ होता और न चन्द्रमा अथवा नक्षत्र ही विभासित होते हैँ, न वहाँ ये विद्युत ही कैँधती है, फिर इस अग्नि की बिसात ही क्या ? आत्मा की आन्तरिक ज्योति की एक किरण से संसार की सारी ज्योतियोँ की भी तुलना नहीँ की जा सकती । इस ज्योतियोँ की ज्योति मेँ विलीन हो कर परम दीपावली का लाभ उठाइए ।
बहुत से दिपावली के त्योहार आये तथा जले गये ; फिर भी अधिकांश मनुष्योँ के हृदय मेँ अमा का अन्धार ही जाया हुआ है । गृह तो ज्योतियोँ से प्रदीप्त होता है ; परन्तु हृदय अज्ञान के अन्धकार से पूर्ण रहता है । हे मानव ! अज्ञान की निद्रा से जग जा । ध्यान तथा विचार के द्वारा आत्मा की उस नित्य निरन्तर ज्योति का साक्षात्कार कर ले जिसका उदय तथा अस्त नहीँ होता और अज्ञान की तमिस्रा निवारण कर ।
आप सभी पूर्ण आन्तरिक ज्योति को प्राप्त करेँ । वह ज्योतियोँ की ज्योति आपकी बुद्धि को आलोकित करे ! आप सभी आत्मा के अक्षय आध्यात्मिक धन को प्राप्त करेँ ! आप सभी भौतिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र मेँ पूर्ण उन्नति प्राप्त तरेँ !
ଜଗତ ଜନନୀ ଜଗଦମ୍ବାଙ୍କ ଆରତୀ
https://youtu.be/VEortGAysCs?feature=shared
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जय जय श्री जगन्नाथ
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* परमेश्वर हम सब पर अपनी दया दृष्टि, कृपा दृष्टि, करुणा दृष्टि, सदा सदा बनाए रखें और हम सबको बेशुमार दौलत, बेशुमार शोहरत, बेशुमार इज्जत और बेशुमार खुशियां दे।*
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କ୍ଲୀଂ କୃଷ୍ଣାୟ ଗୋବିନ୍ଦାୟ ଗୋପୀଜନ ବହ୍ଲବାୟ ଶ୍ରୀ ଜଗନ୍ନାଥାୟ ନମୋ ନମଃ
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