पारमार्थिक सत्य तथा दृष्य जगत्
आत्मा या चैतन्य __ ब्रह्म-
|
अपरोक्षानुभव __ लोक
|
बुद्धिशक्ति
|
मन
|
प्राण __ सापेक्ष दृश्य जगत्
|
भूत
.
भूतपदार्थ, प्राण तथा मन - ये ब्रह्म की तीन सापेक्ष अभिव्यक्तियाँ हैँ । प्राण वास्तव मेँ मन का ही विकार अथवा अभिव्यक्ति है । प्राण क्रियाशक्ति है । प्राण से ही भौतिक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्राण मन से उत्पन्न होता है । भौतिक पदार्थ प्राण से निम्न है । प्राण पदार्थ से ऊपर तथा मन से नीचे है । प्राण पदार्थ के लिए धनात्मक तथा मन के लिए ऋणात्मक है । मन प्राण तथा पदार्थ दोनोँ के लिए धनात्मक है ; परन्तु वह बुद्धिशक्ति की अपेक्षा ऋणात्मक है । बुद्धिशक्ति अहङ्कार का केन्द्र है । बुद्धिशक्ति सेनापति है जो मन तथा प्राण को शरीर के सारे भागोँ मेँ तथा सभी दिशायोँ मेँ प्रेरित करती है । अपरोक्षानुभव बुद्धि से परे है तथा मनुष्य एवं चैतन्य के बीच का माध्यम है । स्वतः सङ्केत द्वारा बुद्धिशक्ति का विकास ही राजयोग अथवा वेदान्त का मौलिक सिद्धान्त है । अतिचेतन मन जीवन का धाम अथवा आत्मा है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें