मंगलवार, 17 मई 2022

कर्मयोग का सार

 कर्मयोग का सार    


 मानव जाति की निष्काम्य सेवा ही कर्मयोग है । ''अनवरत कम करना ही आपका कर्त्तव्य है, उसके फल की आशा रखना नहीँ''__यही गीता का केन्द्रीय उपदेश है । 


 कार्यालय मेँ काम करते समय भी आप अपने इष्ट-मत्र का मानसिक जप कीजिए । ईश्वर अन्तर्यामी है । वह शरीर, मन तथा इन्द्रियोँ को काम करने के लिए प्रेरित करता है । ईश्वर के हाथोँ मेँ निमित्त-मात्र बनिए । अपने कर्म के बदले मेँ धन्यबाद अथवा प्रशंसा की अपेक्षा न कीजिए । कर्मोँ को अपने कर्त्तव्य के रूप मेँ कीजिए तथा उनको और उनके फलोँ को ईश्वर पर अर्पित कीजिए । आप कर्म के बन्धन से मुक्त हो जायेँगे । कर्म नहीँ वरन्‌ मनुष्य की स्वार्थ-वृत्ति ही ही उसके बन्धन का कारण है । 

 

 कदापि ऐसा न कहिए, ''मैँने उस मनुष्य की सहायता की है ।'' भावना कीजिए तथा सोचिए__''उस मनुष्य ने मुझे सेवा का अवसर प्रदान किया । इस सेवा के द्वारा मुझे अपने चित्त की शुद्धि मेँ सहायता मिली है । अतः मैँ उसका अत्यन्त आभारी हूँ ।'' यदि आप अपने द्वार पर किसी निर्धन व्यक्ति को चिथड़ोँ मेँ देखेँ तो भावना कीजिए कि 'भगवान्‌ ही इस निर्धन व्यक्ति के रूप मेँ मेरे सामने आये हैँ ।' नारायणभाव के साथ उसकी सेवा कीजिए । 


 दूसरोँ की सेवा करते समय कभी भी झुँझलाइए नहीँ । सेवा मेँ सुख का अनुभव कीजिए । सेवा के लिए सुअवसरोँ की ताक मेँ रहिए । एक भी सुअवसर को हाथ से न जाने दीजिए । कर्म ईश्वर की उपासना है ।


 कर्मयोगी का स्वभाव मिलनसार, प्रिय तथा मधुर होना चाहिए । उसमेँ सहानुभूति, यथाव्यवस्था का गुण, आत्मसंयम, सहनशीलता, प्रेम तथा करुणा होनी चाहिए । उसको चाहिए कि वह दूसरोँ के स्वभाव तथा रुचि के अनुसार ही अपने-आपको ढाल ले । उसमेँ अपमान, कटुवचन, आलोचना, सुख-दुःख तथा शीतोष्ण को सहन करने की शक्ति होनी चाहिए । 

 

 आप अपनी क्षमता तथा परिस्थितियोँ के अनुकूल निष्काम्य कर्म कर सकते हैँ । वकील बिना फीस लिये ही गरीबोँ की ओर से वकालत कर सकता है । डाक्टर बिना फीस लिये ही गरीबोँ का इलाज कर सकता है । अध्यापक अथवा प्राध्यापक गरीब लड़कोँ को निःशुल्क पढ़ा सकता है । वह उनके पढ़ने के लिए मुफ्त पुस्तकेँ दे सकता है । अपने पास दवाइयोँ की एक पेटी रखिए जिसमेँ बारह या कुछ एलोपैथिक, आयुर्वेदिक या होमियोपैथिक औषधियाँ रख लीजिए । आत्मभाव के साथ गरीबोँ तथा रोगियोँ की सेवा कीजिए । अपनी आय का दशांश दान मेँ दीजिए । यही सबसे बड़ा योग है ।

 

 निम्न-श्रेणी के कार्य तथा सम्मानपूर्ण कार्य मेँ कोई भी भेद न रखिए । यदि कोई व्यक्ति किसी दर्द से पीड़ित हो तो तुरन्त उस स्थान की मालिश कीजिए । ऐसा अनुभव कीजिए कि उस रोगी के शरीर मेँ आप नारायण की सेवा कर रहे हैँ । अपने इष्ट-मन्त्र का जप भी करते रहिए । यदि आप सड़क पर किसी मनुष्य या जानवर के शरीर से रुधिर निकलता देखते हैँ और आपके पास कोई पट्‌टी नहीँ है तो अपना वस्त्र फाड़ कर उसके घाव पर बाँधने मेँ जरा भी सङ्कोच न कीजिए । रेलवे-स्टेशन पर गरीब कुलियोँ के साथ पैसोँ के लिए झगड़ा न किजिए । विशाल-हृदयी तथा उदार बनिए । अपनी जेब मेँ सदा कुछ पैसे रखिए तथा उनको गरीबोँ तथा लाचारोँ मेँ बाँटिए ।


 कर्मयोग मन को ज्योति तथा ज्ञन के ग्रहण के लिए तैयार करता है । यह हृदय को विस्तृत करता तथा एकता के मार्ग मेँ आने वाली सारी बाधाओँ को दूर करता है । चित्त की शुद्धि के लिए यह एक प्रभावशाली साधन है । अतःसतत निष्काम्य कर्म कीजिए ।



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