मंगलवार, 17 मई 2022

भले-बुरे कर्म का विचार कैसे हो ?

 भले-बुरे कर्म का विचार कैसे हो ?  


 सद्विचार कीजिए । अपनी सहज बुद्धि तथा विवेक का प्रयोग कीजिए । शास्त्रोँ के उपदेश का पालन कीजिए । जहाँकहीँ शङ्का हो तो मनु अथवा याज्ञवल्क्य की स्मृति देखिए । आपको पता लग जायेगा कि आप ठीक कर रहे हैँ अथवा गलत । यदि आप कहते हैँ__'शास्त्र तो अनन्त हैँ । वे सागर के समान हैँ । मैँ तो उनके सत्योँ को समझ भी नहीँ सकता । मैँ उनकी गहराई माप नहीँ सकता । उनमेँ बहुत विरोधाभास भी हैँ । मैँ तो भ्रमित तथा किङ्कर्त्तव्यविमूढ़ हो जाता हूँ ।' तब जिनके प्रति आपमेँ पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास है, उन अपने गुरु के शब्दोँ का अक्षरशः पालन कीजिए । तीसरी विधि यह है कि ईश्वर का भय रखिए । अपने अन्तःकरण से पूछिए । अन्तःकरण की तीखी वाणी आपका मार्ग-प्रदर्शन करेगी वाणी सुनते ही एक क्षण भी विलम्ब न कीजिए । बिना किसी से राय पूछे श्रमपूर्वक कर्म करना प्रारम्भ कर दीजिए । चार बजे प्रातः आन्तलिक वाणी सुनने का अभ्यास कीजिए । यदि भय, लज्जा, शङ्का तथा अन्तःकरण मेँ खेद का अनुभव हो तो जान लीजिए कि कर्म बुरा है । यदि आनन्द, अनुभव हर्ष तथा तृप्ति हो तो जान लीजिए कि कर्म भला है ।


 


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