अमृत-सन्देश
हे अमृत-पुत्र !
क्य आप सदा शान्तिमय हैँ ? क्या आपमेँ भद्रता है ? क्या आपमेँ आत्म-संयम है ? क्या आप दिव्य गुणोँ से सम्पन्न हैँ ? क्या आप अज्ञा से मुक्त हैँ ? क्या आपमेँ आत्म-ज्ञान है ? क्या आपको आलोक प्राप्त है ? क्य आपने अमर शुद्ध आत्मा का साक्षात्कार किया हैँ ? इन प्रश्नोँ के समक्ष आप किस प्रकार टिकते हैँ ? यदि आपको ये वस्तुएँ प्राप्त नहीँ हैँ तो आइए, बैठिए तथा ध्यान लगा कर सुनिए । यह आप सबके लिए अमृत-सन्देश है । यदि आप इसके एक अंश का भी अभ्यास करेँगे तो आप मृत्यु, शोक तथा दुःख से परे जा सकते हैँ ।
सदा ध्यान कीजिए : "मैँ शुद्ध चैतन्य हूँ । मैँ सच्चिदानन्द ब्रह्म हूँ । मैँ कूटस्थ, स्वयं-प्रकाश, अमर आत्मा हूँ । मैँ तीनोँ अवस्थाओँ__जाग्रत, स्वप्न तथा सुषुप्ति का साक्षी हूँ । मैँ शरीर, मन, प्राण तथा इन्द्रियोँ से भिन्न हूँ । मैँ पञ्चकोषोँ से भिन्न हूँ ।" आप शीघ्र आत्मसाक्षात्कार कर लेँगे । आप ब्रह्म-ज्ञान प्राप्त कर लेँगे ।
जब आप अपने पुत्र, पत्नी, सम्पत्ति तथा शरीर मेँ आसक्त हैँ, जब आप शरीर को ही शुद्ध आत्मा मान बैठते हैँ तो यह एक प्रकार का बन्धन है । जब आप इस संसार की किसी भी वस्तु मेँ आसक्त नहीँ हैँ, जब आप शुद्ध अमर आत्मा के साथ अपनी एकता स्थापित करते हैँ तो यह मुक्ति है ।
जहाँ काम है वहाँ राम नहीँ ; जहाँ राम है वहाँ काम नहीँ । जहाँ कामना है वहाँ संसार है । अतः विवेक तथा वैराग्य का अर्जन कर, ब्रह्म अथवा परमात्मा पर ध्यान के द्वारा कामना से परे चले जाइए तथा सुखी हो जाइए ।
अहन्ता, ममता तथा असक्ति से रहित हो कर जीवन व्यतीत कीजिए । इन्द्रियोँ का दमन कीजिए । सदाचार के नियमोँ का पालन कीजिए । हृदय मेँ शुद्धता लाइए । सत्य को श्रवण कीजिए, आत्मा मेँ निवास कीजिए और सुखी हो जाइए ।
ज्योँ-ही आपको यह अनुभव हो कि आप यह शरीर नहीँ हैँ त्योँ-ही आप शोक तथा मृत्यु से मुक्त हो जायेँगे । आप कर्म के बन्धन तथा कामनाओँ की ग्रन्थि से, सांसारिक जिवन की मृगतृष्णा तथा उससे उत्पन्न बुराइयोँ से मुक्त हो जायेँगे ।
आत्मा या परमात्मा या ब्रह्म वह शाश्वत, नित्य, अव्यय सत्ता है जो इस जगत् का अधिष्ठान है, जो अखण्ड, स्वयंप्रकाश, कूटस्थ तथा सर्वव्यापक है ; जो तीनोँ अवस्थाओँ__जाग्रत, स्वप्न तथा सुषुप्ति का साक्षी है । आत्मज्ञानी अमृतत्व प्राप्त कर लेता है । वह आनन्द तथा अमृत के धाम मेँ प्रवेश करता है ।
ब्रह्म सत्य तथा नित्य है । यह शरीर असत्य तथा अनित्य है । आत्मा-अनात्मा के विवेक से अमृतत्व-मन्दाकिनी प्रवाहित होती है । यही औपनिषदिक ऋषियोँ का प्राचीन ज्ञान है ।
आत्मा अमृतत्व अथवा मनुष्य का स्वरूप है । आत्मा विचार, कामना तथा तर्कोँ का मूल है । आत्मा मन तथा पदार्थ से परे आध्यात्मिक तत्त्व है । आध्यात्मिक होने के कारण आत्मा अमर है । यह देश, काल तथा वस्तु-परिच्छेद से रहित है । यह अनादि, अनन्त, कारण-रहित तथा असीम है ।
यदि आप अपने हृदय तथा इन सभी रूपोँ मेँ गुप्त इस अमर आत्मा का साक्षात्कार कर लेँ ; यदि अविद्या, काम तथा कर्म की ग्रन्थियोँ का भेदन हो जाये ; यदि अज्ञान श्रृङ्खला__अविद्या, अविवेक, अभिमान, राग-द्वेष, कर्म तथा शरीर__टूट जाये तो आप जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो कर अमृत-धाम मेँ प्रवेश कर लेँगे ।
अज्ञानी मनुष्य ही विस-पदार्थोँ के पीछे दौड़ता है तथा मरणशील शरीर को प्राप्त करता है । वह अज्ञानान्धकार मेँ भटकता है । वह बारम्बार यमराज के पाश मेँ जा फँसता है । उसे मोक्ष-मार्ग का ज्ञान नहीँ । वह जगत् के विषय-सुखोँ से मोहित हो जाता है ; परन्तु धीर, विवेक तथा वैराग्य से युक्त परमात्मा पर ध्यान के द्वारा नित्य सुख तथा अमृतत्व प्राप्त कर लेते हैँ ।
मोक्ष ही जीवन का परम लक्ष्य है । मोक्ष ही जीवन के उद्देश्य की परिपूर्त्ति करता है । मोक्ष प्राप्त कर लेने पर पार्थिव लोक मेँ जीवन की परिसमाप्ति हो जाती है ; मनुष्य जन्म-मृत्यु से मुक्त हो जाता है । आपके अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य का साक्षात्कार ही मोक्ष है । मोक्ष आपको अक्ष्य सुख तथा शाश्वत आनन्द का नित्य जीवन प्रदान करता है । मोक्ष विनाश नहीँ है । मोक्ष इस क्षुद्र अहङ्कार का ही विनाश है । मोक्ष जीवात्मा तथा परमात्मा की एकता का साक्षात्कार है । इस क्षुद्र अहङ्कार को विनष्ट कर आप सार्वभौमिक जीवन प्राप्त कर लेते हैँ । आप नित्य परिपूर्ण जीवन प्राप्त कर लेते हैँ ।
यदि आपमेँ मन की शुद्धता तथा धारणा-शक्ति है तो आप मन मेँ किसी भी भाव को बना सकते हैँ । यदि आप करुणा पर ध्यान करेँगे तो आप करुणा से ओत-प्रोत हो जायेँगे । यदि शान्ति का विचार करेँगे तो आप शान्ति से भर जायेँगेँ ।
निश्यय ही आध्यत्मिक मार्ग मेँ बहुत-सी कठिनाइयाँ हैँ । यह छुरे का पथ है । छुरे की धार पर चलने के समान ही इस मार्ग पर चलना है । आप कई बार गिर जायेँगे ; परन्तु आपको शीध्र उठ कर अधिक उत्साह, विरता तथा प्रसन्नता पूर्वक पुनः आगे बढ़ना होगा । प्रत्येक विफलता सफलता की सीढ़ी बन जायेगी । हर विफलता से आपको विशेष ऊँचाई पर चढ़ जायेँगे । अन्तर्यामी प्रभु आपका पथ-प्रदर्शन करेँगे तथा आपको आगे बढ़ायेँगे । समस्त सन्त तथा ज्ञानी, सारे पैगम्वर तथा ऋषियोँ को भी उग्र संग्रामोँ से गुजरना पड़ा था ; तभी वे लक्ष्य कत पहुँच सके थे । हे सौम्य ! वीरता पूर्वक बढ़ते जाइए । लक्ष्य को प्राप्त कीजिए ।
यह सत्य नहीँ कि एक व्यक्ति ने ही मोक्ष प्राप्त किया तथा अन्य व्यक्ति उसे प्राप्त नहीँ कर सकते । इतिहास इसका साक्षी है इस जगत् मेँ बहुत-से शङ्कर आये । यदि भूतकाल मेँ शङ्कर हुए तो भविष्य मेँ क्योँ नहीँ होँगे ? यह प्रकृति का अविचल नियम है कि एक ने जिसे प्राप्त किया है, दूसरे भी उसे प्राप्त कर सकते हैँ । जो कोई बृहदारण्यक के याज्ञवल्क्य तथा छान्दोग्य उपनिषद् के उद्दालक की भाँति आत्मज्ञान प्राप्त करेगा, वह भी अमृतत्व प्राप्त कर लेगा ।
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