ज्ञान का सन्देश
जिसका मन शुद्ध है, जो कामनाओँ से मुक्त है, जो इस जन्म के तथा पूर्वजन्मोँ के प्रतिबन्धक कर्मो से मुक्त हो चुका है तथा फलस्वरूप जो बाह्य क्षणभङ्गुर विषय-पदार्थेँ से विरक्त हो जला है, उसी व्यक्ति मेँ ब्रह्म-जिज्ञासा उत्पन्न होती है ।
जिनका हृदय दोषोँ तथा मलिनताओँ से मुक्त नहीँ हुआ, वे ब्रह्म के विषय मेँ उपदिष्ट होने पर भी उस पर विश्वास नहीँ करते आथवा गलत ही समझ लेते हैँ, जैसा कि इन्द्र तथा विरोचन के मामलोँ मेँ हुआ था । अतः प्रशिक्षित ज्ञान का उदय उसी व्यक्ति मेँ होता है जिसने इस जन्म मेँ अथवा पूर्व-जन्मोँ मेँ स्वयं को तप इत्यादि के द्वारा शुद्ध बना लिया है । श्रुति कहती है__"उसी महात्मा पुरुष को, जिसमेँ गुरु के प्रति उतनी ही भक्ति है जितनी ईश्वर के प्रति, इस उपनिषद् के रहस्योँ का प्रकटीकरण होता है ।"
जिस तरह रङ्गीन जल शुद्ध-श्वेत वस्त्र मेँ मुक्त रूप से अच्छी तरह प्रवेश कर जाता है, उसी तरह ज्ञानी के उपदेश उन साधकोँ के हृदय मेँ ही प्रवेश पा कर टिक सकते हैँ जिनका हृदय स्थिर हो, मन शान्त हो, उसमेँ विस-पदार्थोँ के लिए कामना न हो तथा चित्त के मल विनष्ट हो गये होँ ।
"हे राम जी ! अपने तथा दूसरे ज्ञानी महात्माओँ के अपरोक्षानुभव के आधार पर मैँ आपको निश्चय दिलाता हूँ कि मनुष्य के द्वारा सत्य का साक्षात्कार किया जा सकता है ; परन्तु जिसे सत्य का ज्ञान है, वह साधनोँ के अभाव से उसे दूसरोँ को बतला नहीं सकता ।" :-(महर्षि वसिष्ठ
सबमेँ सामान्य रूप से फायी जाने वाली पञ्च-इन्द्रियोँ से प्राप्त ज्ञान को भी हम दूसरोँ मेँ प्रवेश नहीँ करा सकते । आप उस व्यक्ति को मक्खन का स्वाद नहीँ बतला सकते जिसने कभी भी उसका आस्वादन नहीँ किया अथवा एक जन्मान्ध को आप रङ्ग के विषय मेँ नहीँ समझा सकते ।
गुरु इतना ही कर सकता है कि वह शिष्य को सत्य के साक्षात्कार के लिए विधि बतला दे अथवा प्रातिभज्ञान की क्षमता के उद्घाटन का मार्ग प्रदर्शित कर दे ।
श्रद्धा का देदीप्यमान दीप रखिए । शान्ति के अनुपम झण्डे को ऊपर फहराइए । वैराग्य की सुदृढ़ ढाल लीजिए । विवेक के अद्भुत कवच को धारण कीजिए । 'सोऽहम्' के अमर सङ्गीत का गान कीजिए । प्रणव__ॐॐॐ__ की पताका लिये हुए धीरतापूर्वक आगे बढ़िए । साहस का शङ्ख फूँकिए । शङ्का, अज्ञान, काम तथा अभिमान__इन शत्रुओँ को मार कर आत्मा के असीम साम्राज्य मेँ प्रवेश कीजिए । आत्मा के अक्षय धन को ग्रहण कीजिए । दिव्य अमृत-रस का आस्वादन कीजिए । अमृत-सुधा का पान कीजिए ।
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