जीवन्मुक्त
जीवन्मुक्त वह है जो कामनाओँ, भय, स्वार्थ, अहङ्कार, ममता, आसक्ति, लोभ तथा घृणा से पूर्णतः मुक्त है । वह शुद्ध प्रेम, करुणा तथा दया से ओतप्रोत है ।
उसने मन तथा इन्द्रियोँ पर अधिकार प्राप्त कर लिया है । वह शरीर के साथ तादात्म्य स्थापित नहीँ करता । वह सदा अपनी अन्तरात्मा मेँ ही निवास करता है । वह सदा सन्तुष्ट तथा सुखी रहता है ।
वह मन, वचन तथा कर्म से किसी को चोट नहीँ पहुँचाता है । वह किसी के व्यङ्ग शब्द, आलोचना, अपमान तथा प्रतारण से रञ्चमात्र भी प्रभावित नहीँ होता । वह स्तुति तथा निन्दा, मान तथा अपमान, सुख तथा दुःख मेँ मन का समत्व बनाये रखता है ।
वह संसार मेँ रहता तो है ; परन्तु वह संसार का नहीँ है । उसमेँ भोक्ता अथवा भोक्तूत्व की भावना नहीँ होती । यह अवस्था अवर्णनीय है । वह स्वयं ही ब्रह्म है ।
वह आध्यात्मिक शक्ति का भण्डार है । उसके समक्ष बैठिए । आपकी शङ्काएँ स्वतः ही दूर हो जायेँगी । उसके समक्ष आप विचित्र सुख तथा शान्ति का अनुभव करेँगे । वह स्वयं तो नहीँ बोलता ; परन्तु साधकोँ को मौन की भाषा से ही उपदेश कर सकता है ।
वह जहाँ भी चाहता है सो लेता है तथा किसी के भी हाथ से कैसा भी भोजन ग्रहण कर लेता है । वह विधि-निषेध के नियमोँ से परे होता है ; फिर भी वह शास्त्रोँ के नियमोँ की अवहेलना नहीँ करता । वह भला-बुरा, धर्म तथा अधर्म से अतीत है । वह दूसरोँ मेँ दोष नहीँ देखता । वह उत्तेजना के बड़े अवसरोँ पर भी कदापि क्रोधित नहीँ होता । वह सदा शान्त तथा नम्र बना रहता है । वह सदा मधुर भाषण करता है । वह कदापि कटु शब्द नहीँ बोलता । वह इस संसार मेँ मन, वचन तथा कर्म से प्राणी मात्र से द्वेष अथवा घृणा नहीँ करता । वह अपने को कष्ट देने वालोँ को भी आशीर्वाद देता है ।
वह थोड़े ही शब्द बोलता है, किन्तु श्रोताओँ के मन पर वे गहरी छाप छोड़ जाते हैँ । जो उसके उपदेश को सुन पाते हैँ, उन सफको थोड़े शब्द ही नवजीबन तथा सुख प्रदान करते हैँ ।
जीवन्मुक्त ने अज्ञान-रूपी शत्रु पर विजय प्राप्त कर ली है । उसने सच्चे सुख के रहस्य को जान लिया है । वह ब्रह्म के अक्षय धाम को पहुँच गया है । वह सदा अपने सच्चिदानन्दस्वरूप मेँ निवास करता है ।
उसने यह साक्षात्कार कर लिया है कि वह तीन शरीरोँ तथा पञ्चकोषोँ से भिन्न है तथा वह तीनोँ अवस्थाओँ का साक्षी है । मैँ, वह तथा तू के विभेद से मुक्त है ।
जिवन्मुक्त ईश्वरीय चैतन्य से अनुप्राणित, अमृत-सुधा के पान से उन्मत्त, असीम आत्मा से परिपूर्ण, समदृष्टि से युक्त तथा समत्व-बुद्धि से विभूषित सर्वत्र आत्मा ही के दर्शन करता हे तथा अपने शुद्ध प्रेम मेँ सबको सन्निहित करता है । ऐसे उद्बुकद्ध और अनुप्राणित महात्माओँ की जय हो ! उनके आशीर्वाद सदा आपको प्राप्त होँ !
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