विद्यार्थियोँ के लिए उपदेश
ॐ, मित्रो ! तुम मातृ-भूमि की भावी आशा हो । तुम कल के नागरिक हो । तुमको जीवन के लक्ष्य पर सदा ध्यान रखना चाहिट तथा उस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए ही जीवन व्यतीत करना चाहिए । सभी प्रकार के दुःखोँ से मुक्ति अथवा कैवल्य अथवा जन्म-मृत्यु के चक्र से मोक्ष की प्राप्ति ही जीवन का लक्ष्य है । सुव्यवस्थित नैतिक जीवन-यापन करो । नैतिक शक्ति ही आध्यात्मिक उन्नति की रीढ़ है । चारित्रिक गठन आध्यात्मिक साधन का ही अविभाज्य अङ्ग है ।
ब्रह्मचर्य का पालन करो । ब्रह्मचर्य के पालन से प्राचिन काल मेँ बहुत से ऋषियोँ ने अमरत्व प्राप्त कर लिया था । ब्रह्मचर्य नूतन शक्ति, वीर्य, बल, जीवन मेँ सफलता तथा पारलौकिक नित्य सुख का मूल है । वीर्य के नाश से रोग, दुःख तथा अकाल मृत्यु होती है ; अतः विशेष सावधानी पूर्वक इस वीर्य की रक्षा करो । ब्रह्मचर्य का अभ्यास सुन्दर स्वास्थ्य, आन्तरिक शक्ति, मन की शान्ति तथा दीर्घायु प्रदान करता है । यह मन को सबल बनाता है, स्नायुओँ को सुदृढ़ करता तथा शारीरिक एवं मानसिक शक्ति की सुरक्षा करता है । यह शक्ति एवं साहस का संवर्धन करता है । जीवन के दैनिक संग्राम मेँ कठिनाइयोँ को सहने के लिए यह शक्ति प्रदान करता है । पूर्ण ब्रह्मचारी जगत् को हिला सकता है, वह ज्ञानदेव के समान, प्रकृति तथा पञ्च तत्त्वोँ पर शासन कर सकता है ।
वेदोँ तथा मन्त्रोँ की शक्ति मेँ श्रद्धा रखो । नित्य प्रति ध्यान का अभ्यास करो । सात्त्विक आहार करो । पेट पर भार न डालो । अपनी भूलोँ के लिए पश्चात्ताप करो । अपने दोषोँ को स्वेच्छापूर्वक स्वीकार करो । झूठे बहानोँ के द्वारा अथवा झूठ बोल कर अपने दोषोँ को छिपाने का प्रयत्न न करो । प्रकृति के नियमोँ का पालन करो । नित्य-प्रति पर्यप्त शारीरिक व्यायाम करो । निर्धारित समय पर अपने अर्त्तव्योँ का पालन करो । सरल जीवन तथा उच्च विचार रखो । निचतापूर्ण अनुकरण त्याग दो । कुसङ्गति कारण पड़े हुए अपने कुसंस्कारोँ का परिष्कार करो ।
उपनिषद्, योगवासिष्ठ, गीता, भागवत, ब्रह्मसूत्र, श्रीशङ्कररचित ग्रन्थ तथा आध्यात्मिक ग्रन्थोँ का अध्ययन करो । उनमेँ तुम्हेँ वास्तविक शान्ति तथा सान्त्वना प्राप्त होगी । कुछ पाश्चात्य दार्शनिकोँ ने यह उद्गार प्रकट किया है__"हम जन्म से तथा धर्म से ईसाई हैँ ; परन्तु आत्मा जिस तृप्ति के लिए लालायित है, हम उसे पौर्वात्य ऋषियोँ के उपनिषदोँ से ही प्राप्त कर सकते हैँ ।" सबके साथ मिल कर रहो, सबसे प्रेम करो । सबकी सेवा करो । यथाव्यवस्था तथा निस्स्वार्थ सेवा के गुण का विकास करो और अथक सेवा के द्वारा सबके हृदय मेँ प्रवेश करो । यह वास्तव मेँ अद्वैतिक एकता का साक्षात्कार है ।
001 स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं एल्युमिनियम के बर्तन By Rajiv Dixit Ji
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