गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

एकश्लोकी सुन्दरकाण्डम्

एकश्लोकी सुन्दरकाण्डम्

यस्य श्रीहनुमाननुग्रह बलात्तीर्णाम्बुधिर्लीलया लङ्कां प्राप्य निशाम्य रामदयिताम् भङ्क्त्वा वनं राक्षसान् । अक्षादीन् विनिहत्य वीक्ष्य दशकम् दग्ध्वा पुरीं तां पुनः तीर्णाब्धिः कपिभिर्युतो यमनमत् तम् रामचन्द्रम्भजे ॥ इति राघवेन्द्रस्वामिविरचितं एकश्लोकी सुन्दरकाण्डं सम्पूर्णम् ।

 

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