बुधवार, 14 अप्रैल 2021

एकश्लोकी

 

एकश्लोकी

किं ज्योतिस्तवभानुमानहनि मे रात्रौ प्रदीपादिकं स्यादेवं रविदीपदर्शनविधौ किं ज्योतिराख्याहि मे । चक्षुस्तस्य निमीलनादिसमये किं धीर्धियो दर्शने किं तत्राहमतो भवान्परमकं ज्योतिस्तदस्मि प्रभो ॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ एकश्लोकी सम्पूर्णा ॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

एक खतरनाक साजिश की सच्चाई

  🔸“संयुक्त परिवार को तोड़कर उपभोक्ता बनाया गया भारत: एक खतरनाक साजिश की सच्चाई* ⚡“जब परिवार टूटते हैं, तभी बाजार फलते हैं” — ये सिर्फ विच...