सोमवार, 22 जून 2020

नवग्रह : मन्त्र और व्रत-विधि


ग्रहाधीनं जगत्सर्वं ग्रहाधीना: नरावरा:

यह सम्पूर्ण संसार ग्रहों के अधीन है ग्रह ही कर्मों का फल देने वाले हैं सौरमण्डल में स्थित सात ग्रह और दो छाया ग्रह राहु-केतु मनुष्य के जीवन पर शुभ-अशुभ प्रभाव डालते हैं जन्मकुण्डली में ग्रहों के प्रतिकूल होने पर मनुष्य जो भी कर्म करता है, वह सभी निष्फल हो जाता है और दु: और कष्ट के अतिरिक्त कुछ मिलता नहीं क्योंकि सुख-दु:, हानि-लाभ सब ग्रहों के ही अधीन हैं इसलिए जन्मकुण्डली के प्रतिकूल ग्रहों को अनुकूल करना बहुत आवश्यक है इसके लिए शास्त्रों में नवग्रह उपासना का विधान बताया है जिसमें रत्न और यंत्र धारण करना, व्रत और जप करना विभिन्न औषधियों के स्नान आदि उपाय बताए गए हैं नवग्रहों की पीड़ा निवारण में व्रत-नियम शीघ्र ही फल देने वाले हैं इसलिए यहां नवग्रहों के व्रत-नियम विधि को दिया जा रहा है

नवग्रहों के व्रत सम्बन्धी नियम

1.   सभी व्रतों के दिन प्रात:स्नान कर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए

2.   व्रत के दिन जो विचार मन में आते हैं, उनकी एक छाप मस्तिष्क पर पड़ जाती है इसलिए व्रत में मन की पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखना चाहिए

3.   व्रत के दिन एक समय भोजन करना चाहिए

4.   व्रत के दिन जो वस्तु खाएं वह दान अवश्य करें

5.   व्रत एक निश्चित अवधि तक अवश्य करना चाहिए

6.   व्रत की समाप्ति पर ब्राह्मणों को भोजन कराकर ग्रह की प्रिय वस्तु का दान अवश्य करें

नवग्रहों के मन्त्र व्रत की विधि

तेज, ओज आरोग्य के लिए सूर्य (आदित्यवार) व्रत

सूर्य का व्रत चैत्र, पौष और अधिक मास छोड़कर किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले रविवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रव्रत के दिन रविवार को लाल रंग के वस्त्र धारण कर  ह्रां ह्रीं ह्रौं : सूर्याय नम:’ मन्त्र की १२, या (जितनी हो सकें) माला का जाप करें जप के बाद शुद्ध जल में लाल चंदन (या रोली), चावल, लाल पुष्प और दूर्वा डालकर सूर्य को अर्घ्य दें

भोजनभोजन में गेंहूं की रोटी, गुड़ में बना दलिया, दूध, दही, चीनी आदि से बने पदार्थ सूर्यास्त से पहले खाएं नमक तेलरहित भोजन करे

व्रत का फलइस व्रत के प्रभाव से सूर्य की अशुभ दशा शुभ फलदायी होकर मनुष्य के तेज को बढ़ाती है नेत्र, चर्मसम्बन्धी, कुष्ठरोग अन्य सभी रोग दूर हो जाते हैं साथ ही यश वृद्धि राज्य लाभ होता है

अवधिसूर्य व्रत एक वर्ष या १२ रविवार या ३० रविवारों तक करना चाहिए जब व्रत का अन्तिम रविवार हो तो सूर्य मन्त्र से हवन करके ब्राह्मण को भोजन कराएं

मानसिक शान्ति कार्यसिद्धि के लिए चन्द्रमा का व्रत

यह व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के पहले सोमवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रइस व्रत के लिए सोमवार के दिन सफेद वस्त्र धारण कर  श्रां श्रीं श्रौं : चन्द्राय नम:’ मन्त्र की ११, , (जितनी हो सकें) माला का जाप करें भोजन से पहले चन्द्रमा को जल में सफेद पुष्प सफेद चंदन डालकर अर्घ्य दें

भोजनभोजन में सफेद वस्तुएं दही, दूध, चावल, चीनी घी से बनी चीजें, खीर आदि भगवान का भोग लगाकर और कुछ अंश बांटकर ही खाएं, नमक खाएं

व्रत का फलइस व्रत के करने से व्यापार में लाभ कार्यसिद्धि होती है साथ ही मानसिक कष्टों की शान्ति होती है

अवधिचन्द्रमा का व्रत ५४ या १० सोमवारों तक अवश्य करें जब व्रत का अन्तिम सोमवार हो तो चन्द्र मन्त्र से हवन करके ब्राह्मण को दूध से बनी खीर आदि का भोजन करा कर चन्द्रमा की वस्तुओं का दान दें

ऋण-मुक्ति संतान-सुख के लिए मंगल व्रत

यह व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रमंगलवार के दिन लाल वस्त्र धारण कर  क्रां क्रीं क्रौं : भौमाय नम:’ मन्त्र की , , (जितनी हो सकें) माला का जाप करें

भोजनभोजन में गुड़ का प्रयोग करें नमक नहीं खाना चाहिए

व्रत का फलइस व्रत को करने से ऋण से छुटकारा मिलता है और संतान से सुख प्राप्त होता है

अवधिमंगल का व्रत ४५ या २१ मंगलवारों तक या इससे ज्यादा समय तक भी किया जा सकता है जब व्रत का अन्तिम मंगलवार हो तो मंगल मन्त्र से हवन करके पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण को मीठा भोजन करा कर दान दें

विद्या, धन स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए बुधवार व्रत

यह व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम बुधवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रबुधवार के दिन हरे रंग के वस्त्र धारण कर  ब्रां ब्रीं ब्रौं : बुधाय नम:’ मन्त्र की १७, , (जितनी हो सकें) माला का जाप करें

भोजनभोजन में बिना नमक की चीजें विशेषकर मूंग से बने व्यंजन हलवा, पंजीरी, लड्डू आदि खाने चाहिए विशेष फल के लिए तुलसी के तीन पत्ते भगवान के चरणामृत या गंगाजल के साथ खाकर तब भोजन करना चाहिए

व्रत का फलइस व्रत को करने से विद्या की प्राप्ति, धन-लाभ, व्यापार में उन्नति आरोग्य की प्राप्ति होती है

अवधिबुध का व्रत ४५ या २१ या १७ बुधवारों तक करना चाहिए जब व्रत का अन्तिम बुधवार हो तो बुध मन्त्र से हवन करके पूर्णाहुति के बाद ब्राह्मण को भोजन कराएं दान दें

यश, स्थिर लक्ष्मी विवाह के लिए बृहस्पतिवार का व्रत

यह व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम गुरुवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रबृहस्पतिवार के दिन पीले वस्त्र धारण कर मस्तक पर हल्दी या केसर तिलक लगाकर  ग्रां ग्रीं ग्रौं : गुरवे नम:’ मन्त्र की १६, , (जितनी हो सकें) माला का जाप करें

भोजनइस व्रत में बेसन, घी, चीनी आदि से बना भोजन किया जाता है विशेष रूप से बेसन के लड्डू या हल्दी से बनाए पीले चावलों का भगवान को भोग लगाकर तब स्वयं ग्रहण करना चाहिए नमक पूर्णत: वर्जित है

व्रत का फलयह व्रत गुरु ग्रह के अशुभ प्रभाव दूरकर विद्यार्थियों को विद्या, धनार्थी को धन यश की कामना करने वालों को यश प्रदान करता है अविवाहितों द्वारा व्रत करने से उनका शीघ्र विवाह हो जाता है

अवधिबृहस्पति का व्रत वर्ष या वर्ष या १६ बृहस्पतिवारों तक करना चाहिए जब व्रत का अन्तिम गुरुवार हो तो गुरु मन्त्र से हवन करके ब्राह्मण को भोजन कराएं दान दें

सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य देने वाला शुक्रवार व्रत

यह व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम शुक्रवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रशुक्रवार के दिन श्वेत वस्त्र धारणकर  द्रां द्रीं द्रौं : शुक्राय नम:’ मन्त्र की २१, ११ या (जितनी हो सकें) माला का जाप करें

भोजनभोजन में चावल, चीनी, दूध, दही और घी से बनी वस्तुओं खीर आदि का भोजन करें नमक नहीं खाएं

व्रत का फलइस व्रत को करने से सुख-सौभाग्य और ऐश्वर्य की वृद्धि होती है अविवाहितों का विवाह कराकर स्त्री सुख मिलता है

अवधिशुक्रवार का व्रत ३१ या २१ शुक्रवारों तक करना चाहिए जब व्रत का अन्तिम शुक्रवार हो तो शुक्र मन्त्र से हवन करके ब्राह्मण को भोजन कराएं शुक्र ग्रह सम्बन्धी वस्तुओं का दान दें

सांसारिक झंझटों में विजय और व्यापार में उन्नति के लिए शनिवार का व्रत

यह व्रत किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार से आरम्भ करना चाहिए

मन्त्रशनिवार के दिन काले वस्त्र धारण कर  प्रां प्रीं प्रौं : शनये नम:’ मन्त्र की १९, ११ या (जितनी हो सकें) माला का जाप करें जप करते समय एक लोटे में शुद्ध जल, काला तिल, लोंग,  दूध, चीनी गंगाजल डालकर रखें और जप के बाद पीपल की जड़ में पश्चिम की तरफ मुख करके चढ़ा दें

भोजनइस व्रत में उदड़ की दाल तेल से बने बड़ा, चीला, पकौड़ी केला खाएं

व्रत का फलइस व्रत को करने से शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते हैं सभी प्रकार की सांसारिक परेशानियों से मुक्ति मिलती है लोहे, मशीनरी फैक्टरी वालों के व्यापार में उन्नति के लिए यह व्रत बहुत लाभदायक है

अवधिशनिवार का व्रत ५१ या १९ शनिवारों तक करना चाहिए जब व्रत का अन्तिम शनिवार हो तो शनि मन्त्र से हवन करके भिखारियों को शनि वस्तुओं का दान दें

शत्रु-भय के नाश मुकदमे में जीत के लिए राहु और केतु का व्रत

राहु और केतु का व्रत शनिवार को अथवा राहु और केतु जिस ग्रह के घर में हों, उस ग्रह के वार में करना चाहिए

मन्त्रराहु और केतु दोनों ही व्रतों में शनिवार के दिन काले वस्त्र धारण करें राहु के व्रत में   भ्रां भ्रीं भ्रौं : राहवे नम:’ मन्त्र की और केतु के व्रत में  स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं : केतवे नम:’ मन्त्र की १८, ११ या (जितनी हो सकें) माला का जाप करें जप के समय एक लोटे में जल, दूर्वा, और कुशा डालें और जप के बाद पीपल की जड़ में चढ़ा दें रात में घी का दीपक पीपल की जड़ में रख दें

भोजनभोजन में मीठा चूरमा, मीठी रोटी, रेवड़ी और काले तिल से बने पदार्थ खाएं

व्रत का फलइस व्रत को करने से शत्रु-भय और मुकदमे में जीत मिलती है

अवधिराहु-केतु का व्रत १८ शनिवारों तक करना चाहिए जब व्रत का अन्तिम शनिवार हो तो ग्रह-मन्त्र से हवन करके ब्राह्मण को भोजन कराएं दान दें।

इस प्रकार वैदिक ऋषियों ने सात वारों में ही नवग्रहों का व्रत-पूजन विधान कर दिया और एक ही मन्त्र से सब ग्रहों को अनुकूल करने का महामन्त्र भी दे दिया

ब्रह्मा मुरारिस्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च  
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: सर्वे ग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु ।।

 


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