बुधवार, 29 जुलाई 2020

शरीर, मन और आत्मा के कायाकल्प के लिए कल्पवास


क्या है कल्पवास ?

माघ मास मोक्ष प्रदान करने वाला माह है  माघकाल में संगम के तट पर निवास कोकल्पवासकहते हैं। कल्पवास शब्द का प्रयोग पौराणिक ग्रन्थों में किया गया है मत्स्यपुराण के अनुसार कल्पवास का अर्थ संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना है  कल्पवास का पौष शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर माघ शुक्ल द्वादशी तक एक माह का विधान है। कुछ लोग पौष पूर्णिमा से आरम्भ कर माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं संकल्प लेकर कल्पवास शुरु करने पर उसे लगातार 12 साल करना पड़ता है बीच में इसे छोड़ा नहीं जाता है कल्पवास 12 साल में पूर्ण होता है

कल्पवास साधक के मन, आत्मा और शरीर का कायाकल्प कर देता है जैसे कल्पवृक्ष के नीचे बैठने से सभी कामनाएं पूरी हो जाती है उसी तरह प्रयागराज में कल्पवास से सभी कामनाएं पूरी हो जाती हैं अर्थात् कोई भौतिक कामना मन में रहती ही नही है

ऐसी मान्यता है कि जो मनुष्य संकल्प कर कल्पवास करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है

कैसे होते हैं कल्पवासी ?

कल्पवासी को शांत मन वाला, सदाचारी, सत्य, अहिंसा का पालन करने वाला, धैर्यवान, भक्तिवान और जितेन्द्रिय होना चाहिए

कल्पवास के लिए वैसे तो उम्र की कोई सीमा नहीं है लेकिन मान्यता यह है कि सारी सांसारिक जिम्मेदारी और मोहमाया से मुक्त व्यक्ति को ही कल्पवास करना चाहिए एक बार कल्पवास शुरु करने पर घर का मोह छोड़ देते हैं, चाहे कोई पैदा हो या मरे इससे उनका कोई वास्ता नहीं होता है

कठिन दिनचर्या

इस दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आया है वह पर्ण कुटी में रहता है आजकल संत-महात्माओं के शिविर में भी कल्पवासी रहते हैं गृहस्थ जीवन जीने वाले कल्पवासी भी यहां आकर संन्यासियों का जीवन जीने लगते हैं कल्पवासियों का पूरा समय हर एक कार्य के लिए निर्धारित होता है रात्रि के तीन बजे मंगल मुहुर्त में जागना होता है भूमि पर सोना, गंगाजल का पान भोजन से पहले दान करना होता है कल्पवासियों की दिनचर्या सुबह गंगा-स्नान के बाद संध्या-वंदन से प्रारम्भ होती है और देर रात तक प्रवचन और भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है।

माघ मास में देवता भी आते हैं संगम में स्नान हेतु

ऐसा माना जाता है कि  ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य, मरुद्गण आदि सभी देवी-देवता माघ मास में प्रयागराज में संगम स्नान को आते हैं  धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध में मारे गए अपने रिश्तेदारों को सद्गति दिलाने हेतु मार्कण्डेय ऋषि के सुझाव पर कल्पवास किया था

माघ मकर गत रवि जब होई
तीरथ पतिहिं आव सब कोई ।। 
देव-दनुज किन्नर नर श्रेनी
सादर मज्जहिं सकल त्रिवेनी ।।
पूजहिं माधव पद जल जाता
परसि अछैवट हरषहिं गाता ।। (रामचरितमानस)

कल्पवास के नियम  : एक बार भोजन तीन बार स्नान

कल्पवास का मौका अत्यन्त विरले लोगों को ही मिलता है इसके अपने नियम हैं जो इस प्रकार है

·         दिन में तीन बारसूर्योदय से पहले, दोपहर और शाम कोगंगास्नान करना होता है प्रात:स्नान का सबसे उत्तम समय तभी माना जाता है जब आकाश में तारागण दिखाई दे रहे हों

·         ब्रह्मचर्य का पालन,

·         दिन में एक बार भोजन करना

·         संतों को खिलाने के बाद ही भोजन करना

·         भोजन सात्विककम तेल मसाले का करते हैं।

·         गंगाजल का पान करना

·         सादा किन्तु शालीनता से वस्त्र धारण करना

·         श्रृंगार आदि से दूर रहना

·         सत्य बोलना, मन में कोई दुर्भाव रखना

·         प्रतिदिन कम-से-कम चार घंटे प्रवचन सुनना

·         खाली समय में धार्मिक पुस्तकें पढ़ना  

·         कल्पवास की अवधि पूरे किए बगैर अपना स्थान नहीं छोड़ना

·         अपने शिविर के बाहर जौ  तुलसी का पौधा लगाना, जाते समय उसे प्रसाद रूप में साथ ले जाना

·         सुख-सुविधाओं का त्याग करके भूमि पर शयन

·         प्रतिदिन दान-पुण्य करना

·         दिन में सोना नहीं चाहिए

·         सोने से पहले जप करना

·         सगे-सम्बन्धियों से दूर रहना

स्वास्थ्य के लिए रामबाण है कल्पवास

कल्पवास से काया शोधन होता है, जिसे कायाकल्प भी कहा जा सकता है संगम तट पर महीने भर का निवास, प्रात:काल का स्नान-ध्यान और दान, सात्विक आहार और धार्मिक वातावरण से साधक की काया निरोगी हो जाती है 45 दिनों के कल्पवास की अवधि मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को बढ़ाती है

मोक्ष प्राप्ति का उत्तम साधन : कल्पवास

संगम तट पर निवास, साधु-संतों के प्रवचन, जप-तप आदि से साधकों को आध्यात्मिक शक्ति मिलती है अकेले माघ के महीने का अनुशासित जीवन वर्ष के ग्यारह महीने धर्म, अर्थ, काम मोक्ष प्रदान करता है

ब्रह्मपुराण के अनुसार प्रयाग में गंगा तट पर हर दिन तीन बार स्नान करने से जो फल मिलता है वह पृथ्वी पर दस हजार अश्वमेध यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है और मनुष्य के शरीर में स्थित समस्त पाप जल कर भस्म हो जाते हैं पद्मपुराण में कहा गया है कि संगम में स्नान करने और गंगा जल पीने से मुक्ति मिलती है

मत्स्यपुराण के अनुसार माघ के महीने में संगम स्नान से दस हजार से अधिक तीर्थों का फल मिलता है

अंजुलि में भर कर उस जल को,
हम अमृत से भर जाएंगे,
है धार-धार उद्धार लिए,
हम पल भर में तर जाएंगे,
बड़े भाग्य से ये पल आता है,
जब पाप-ताप से मुक्ति मिले,
धुल-धुल जाए हर एक जीवन,
और आत्मा को एक शक्ति मिले,
एक अनुभव अद्भुत करने चलें,
चलो संगम चलें, चलो संगम चलें


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