श्रीजय देवंक वाइशि पाहाच
वाग्देवताचरितचित्रितचित्तशद्मा
पद्मावतीचरणचारणचक्रवर्त्ती |
श्रीवासुदेवरतिकेलिकथाससेत-
मेतं करोति जय देव कविप्रवन्धम् | 1 |
यदि हरिस्मरणे सरसंमनो
यदि विलासकलासु कुतुहलम् |
मधुरकोमलकान्त पदावलीम्
सृणु तदा जय देव सरस्वतीम् | 2 |
¤ दशावतार वन्दना ¤
प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम्
विहित वहित्र-चरित्रमखेदम् |
केशव , धृत मीनशरीर
जय जगदीश हरे | 1 |
क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे
धरणिधारणकिणचक्रगरिष्ठे |
केशव , धृतकच्छपरूप
जय जगदीश हरे | 2 |
वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना
शशिनि कलकंकलेवनिमग्ना |
केशव , धृत शुकररूप ,
जय जगदीश हरे | 3 |
तव करकमलवरे नखमभ्डुतशृग्डंम्
दलितहिरण्यकशिपुतनुभ्डुग्डंम् |
केशव , धृतनरहरिरूप
जय जगदीश हरे | 4 |
छलयसि विक्रमणे वलिमभ्डुतवामन
पदनख-नीर-जनित-जन-पावन |
केशव , धृतवामन रूप
जय जगदीश हरे | 5 |
क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्
स्नपयसि पयसि शमितभवतापम् |
केशव , धृतभृगुपति रूप
जय जगदीश हरे | 6 |
वितरसि दिक्षुरणेदिक् पतिकमनीयम्
दशमुखमौलिवलिँरमणीयम् |
केशव , धृत रामशरीर
जय जगदिश हरे | 7 |
वहसिवपुसिविषदेवशनंदलदाभम्
हलहतीभीतिमिलितयमुनाभम् |
केशव , धृतहलधर रूप
जय जगदीश हरे | 8 |
निन्दसियज्ञधेरहहश्रुतिजातम्
सदयहृदय दर्शितपशुघातम् |
केशव , धृतवुध्दशरीर
जय जगदीश हरे | 9 |
म्लेच्छनिवहनिधनेकलयसिकरवालम्
धूमकेतुमिवकिमपिकरालम् |
केशव , धृतकल् कीशरीर
जय जगदीश हरे | 10 |
श्रीजय देवकवेरिदमुदितमुदायम्
शृणुभुभदंसुखदंभवपारम् |
केशव , धृतदशविधरूप
जय जगदीश हरे | 11 |
¤ मग्डंलाचरण ¤
श्रित कमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल |
कलितललितवनमाल |
जय जय देव हरे | 1 |
दिनमणिमण्डलमण्डनभवखण्डन |
मुनिजनमानसहंस |
जय जय देव हरे | 2 |
कालियविषधरगञ्ज न जनरञ्जन |
जदुकुलनलिनदिनेश |
जय जय देव हरे | 3 |
मधुमुरनरकविनाशन गरुड़ासन |
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे | 4 |
अमलकमलदललोचन भवमोचन |
त्रिभुवनभवननिधान
जय जय देव हरे | 5 |
जनकसुताकृतभुषण जितदूषण |
समरशमितदशकण्ठ |
जय जय देव हरे | 6 |
अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर |
श्रीमुखजन्द्रचकोर |
जय जय देव हरे | 7 |
श्रीजय देव कवेरिदम् कुरुतेमुदम् |
मग्गंलमुज्वलगीतम् |
जय जय देव हरे | 8 |
¤ प्रथम पाहाच ¤
ललितलवग्डंलतापरिशीलनकोमलमलयसमीर |
मधुकरनिकरकरम्वितकोकिलकूजितकुञ्जकुटीरे |
विहरति हरिरिह सरसवसन्ते |
नृत्यति जुवतिजनेन समं सखि विरहिजनस्य दुरन्ते || 1 ||
उन्मदमदनमनोरथपथिकवधूजनजनितविलापे |
अलिकुलसंकुलकुसुमसमूहनिराकुलवकुलकलापे || 2 ||
मृगमदसौरभरभसवशम्वदनवदलमालतमाले |
जुवजनहृदयविदारणमनसिजनखरुचिकिँशुकजाले || 3 ||
मदनमहीपतिकनकदण्डरुचिकेशरकुसुमविकाशे |
मिलित शिलीमुखपाटलिपटलकृतस्मरतूणविलासे || 4 ||
विगलितलज्जितजगदवलोकनतरुणकरुणकृतहासे |
विरहिनिकृन्तनकुन्त मुखाकृतिकेतकिदन्तुरिताशे || 5 ||
माधविकापरिमलललिते नवमालतीजातिसुगन्धौ |
मुनिमनसामपि मोहनकारिणि तरुणाकारणवन्धौ || 6 ||
स्फुरदतिमुक्तलतापरिरम्भणमुकुलातपुलकितचूते |
वृन्दावनविपिने परिसरपरिगतजमुनाजलपूते || 7 ||
श्रीजय देवभणितमिदमुदयति हरिचाणश्मृतिसारम् |
सरसवसन्तसमयवनवर्णनमनुगतमदनविकारम् || 8 ||
¤ द्वितीय पाहाच ¤
चन्दनचर्चितनीलकलेवरपीतवसनवनमाली
केलिचलन्मणिकुण्डलमण्डितगण्डजुगस्मितशली |
हरिरिह मुग्धवधूनिकरे विलासिनि विलसति केलिपरे || 1 ||
पीनपयोधरभारभरेण हरिँ परिरभ्य सरागम् |
गोपवधूरनुगायति काचिदुदञ्चितषञ्चमरागम् || 2 ||
कापि विलासविलोलविलोचनखेलनजनितमनोजम् |
ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदनवदनसरोजम् || 3 ||
कापि कपोलतले मिलिता लपितुंकिमपि श्रुतिमूले |
कापि चुचुम्व नितम्ववती दयितं पुलकैरनुकूले || 4 ||
केलिकेलाकुचुकेन च काचिदमुं जमुनाजलकूले |
मञ्जुलवञ्जुलकुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले || 5 ||
करतलतालतरलवलयावलिकलितकस्वनवंशे |
रासरसे सहानृत्यपरा हरिणा जुवतिः प्रशशंसे || 6 ||
श्लिष्यति कामपि चुम्वति कामपि कामपि रमयति रामाम् |
पश्यति सस्मितचारुतरामपरामनुगच्छति वामाम् || 7 ||
श्रीजय देवकवेरिदमभुतकेशवकेलिरहस्यम् |
वृन्दावनविपिने ललितं नितनोतु शुभानिजशस्यम् || 8 ||
¤ तृतिय चाहाच ¤
सञ्चरदधरसुधामधुरध्वनिमुखरितमोहनवंशम् |
चलित दृगञ्चलचञ्चलमौलिकपोलपोलविलोलवतंसम् |
रासे हरिमिह विहितविलासम्
स्मरति मनो मम कृत परिहासम् || 1 ||
चन्द्रकचारुमयुरशिखण्डलवलयित केशम् |
प्रचुरपुरन्दरधनुरनुरञ्जितमेदुरमुदिरसुवेशम् || 2 ||
गोपकदम्वनितम्ववतीमुखचुम्वनलम्वितलोभ म् |
वन्धुजीवमधुराधरपल्लवमुल्लसितस्मितशोभम् || 3 ||
विपुलपुलकभुजपल्लववलयितवल्लवयुवतीसहस्रम् |
करचरणोरसि मणिगणभुषणकिरणविभिन्नतमिस्रम् || 4 ||
जलदपटलचलदिन्दुविनिन्दकचन्दनतिलकललाटम् |
पीनपयोधरपरिसरमर्द्दननिर्द्दयहृदयकपाटम् || 5 ||
मणिमयमकरमनोहरकुण्डलमण्डितगण्डमुदारम् |
पीतवसनमनुगतमुनिमनुजसुरासुरवरपरिवारम् || 6 ||
विशदकदम्वतले मिलितं कलिकलुषभयं शमयन्तम् |
मामपि किमपि तरग्डंदनग्डंदृशा मनसा रमयन्तम् || 7 ||
श्रीजय देवभणित मति सुन्दर मोहनमधुरिपुरूपम् |
हरिचरणस्मरणं प्रति स्र-ति पूण्यवतामनुरूपम् || 8 ||
¤ चतुर्थ पाहाच ¤
निभुत निकुज्ज़गृहं गतया निशि रहसि निलीय वसन्तम् |
चकित विलोकितसकलदिशा रतिरभसभरेण वसन्तम् |
सखि हे केशिमथनमुदारम्
रमय मया सह मदनमनोरथभावितया सविकारम् || 1 ||
प्रथमसमागमलज्जिताया पटुचाटुशतैरनुकूलम् |
मृदुमधुरस्मितभाषितया शिथिलीकृतजघनदुकूलम् || 2 ||
किसलयशयननिवेशितया चिरमुरसि ममैव शयानम् |
कृतपरिरम्भणचुम्भणचुम्भनया परिरभ्य कृकाधरपानम् || 3 ||
अलसनिमिलितलोचनया पुलकावलिललितकपोलम् |
श्रम जलसिक्तकलेवरया वरमदनमदादतिलोलम् || 4 ||
कोकिलकलरवकूजितया जितमनसिज-तन्त्रविचारम् |
श्लथकुसुमाकुलकुन्तलया नखलिखितघनस्तनभारम् || 5 ||
चरणरणितमणिनूपुरया परिपुरितसुरतवितानम् |
मुखरविशृख्खंलमेखलया शकचग्रहचुम्वनदानम् || 6 ||
रतिसुखशमयरसालसया दरमुकुलातनयनसरोजम् |
निःसहनिपतिततनुलतया मधुसूदनमुदितमनोजम् || 7 ||
श्रीजय देवभणितमिदमतिशयमधुरिपुनिधुवनशीलम् |
सुखमुत् कण्ठित तराधिकाया कथितं वितनोतु सलीलम् || 8 ||
¤ पञ्चम पाहाच ¤
मामायं चलिता विलोक्य वृतं वधूनिचयेन |
सापराधया मयापि निवारातातिभयेन |
हरि हरि
हतादरतया गता सा कुसितेव || 1 ||
किं करष्यति किँ वदिष्यति सा चिरं विरहेण |
किं धनेन जनेन किं मम जीवितेन गृहेण || 2 ||
चिन्तयामि तदाननं कुटिकभ्रुकोपभरेण |
शोणपद्ममिवोपरि भ्रमताकुलं भ्रमरेण || 3 ||
तामहं हृदि संगतामनिशं भुशं चिन्तयामि |
किँ वनेनुसरामि तामिहं किं वृथा विलपामि || 4 ||
तन्वि ! शिन्नमसूयया हृदयं तवाकलयामि |
तन्न वेद्मि कुतो गतासे न तेन तेनुनयामि || 5 ||
दृश्यसे पूरणे गतागतमेव मे विदधाशि |
किँ पुरेव ससम्भ्रमं परिरम्भणं न ददासि || 6 ||
क्षम्यतामपरं कदापि तवेदृशं न करोमि |
देहि सुन्दर रमणं मम मन्मथेन दुनोमि || 7 ||
वर्णितं जय देवकेन हरेरिदं प्रणतेन |
किन्दुविल्वसमुद्रसम्भव रोहिणीरमणेन || 8 ||
¤ षष्ठ पाहाच ¤
निन्दति चन्दनविन्दुकिरणमनुविन्दति खेदमधीरम् |
व्यालनिलयमिलनेन गरलमिव कलयति मलयसमीरम् |
सा विरेहे तव दीना ,
माधव मनसिजविशिखभयादिव भावनया त्वयि लीना || 1 ||
अवियतनिपतित मदनशरादिव भवदननाय विशालम् |
स्वहृदयमर्मणि वर्मकरोति सजलनलिनदलजालम् || 2 ||
कुसुमविशिखशरतल्पमनल्प विलासकलाकमनियम् |
प्रतमिव तव परिरम्भशुखाय करोति कुसुमशयनीयम् || 3 ||
वहति च चलित विलोकन जलधरमननकमलमुदारम् |
विधुमिव विकटविधुन्तुददन्तदलनगलातामृतधारम् || 4 ||
विलिखति रहसि कुरग्डंमदेन भवन्तमसमशरभुतम् |
प्रणमति मकरमधो विनिधाय करे च शरं नवचूतम् || 5 ||
प्रतिपदमिदमपि निगदति माधव ! तव चरणे पतिताहम् |
त्वयि विमुरे मयि सपदि सुधानिधिरपि तनुते तनुदाहम् || 6 ||
ध्यानलयेन पुरः परिकल्प्य भवन्तमतीव दुरापम् |
रोदिति चञ्चति मुञ्चति तापम् || 7 ||
विलपति हसति विषीदति श्रीजय देवभणितमिदमधिकं यदि मनशा नटनीयम् |
हरिविरहाकुलवल्लवयुवतिसखीवचनं पठनीयम् || 8 ||
¤ सप्तम पाहाच ¤
स्तनविनिहितमपि हारमुदारम् |
सा मनुते कृश तनुरिव भारम् |
राधिका तव विरहे केशव || 1 ||
सरसमसृणमपि मकयजपकंम् |
पश्यति विषमिव वपुषि सशकंम् || 2 ||
श्वशितपवनमनुपम परिणाहम् |
मदनदहनमिव वहति सदाहम् || 3 ||
दिशि दिशि किरति सजलकणजालम् |
नयननलिनमिव विपलितनालम् || 4 ||
नयनविषयमपि किशलयतल्पम् |
गणयति विहित हुताश विकल्पम् || 5 ||
त्यचति न पाणिलेन कपोलम् |
वालशशिनमिव सायमलोलम् || 6 ||
हरिरिति हरिरिति जपति सकामम् |
विरह विहितमरणेव निकाम् || 7 ||
श्री जय देव भणितमिति गीतम् |
सुखयतु केशवपदमुपनीतम् || 8 ||
¤ अष्ठम पाहाच ¤
वहति मलयसमीरे मदनमुपनिधाय |
स्फुटति कुसुमनाकरे विरहिहृदयदलनाय |
तव विरहे वनमाली सखि सीदति || 1 ||
दहति शिशिरमयुखे मरणमनुकरोति |
पतति मदनविशिखे विलपति विकलतरोति || 2 ||
ध्वनति मधुपसमूहे श्रवणमपि दधाति |
मनसि वलितविरहे निशि निशिरुजमुपयाति || 3 ||
वसति विपिनविताने त्यजति ललित धाम |
लुठति धरणीशयने वहु पितपति तव नाम || 4 ||
रणति पिक समुदाये प्रतिदिशमनुयाति |
हसति मनुजनिचये विरहमपलपति नेति || 5 ||
स्फुरति कलरवरावे स्मरति भणितमेव |
तव रतिसुखविभवे वहुगणयति गुणमतिव || 6 ||
त्वदभिधशुभदमासं वदति नरिशृणोति |
तमपि जपति सरसं परयुवतिषु नरतिमुपैति || 7 ||
भणति कवि जय देवे विरहविलसितेन |
मनसिरभसविभवे || 8 ||
¤ नवम पाहाच ¤
रतिसुखशारे गतमभिसारे मदन मनोहर वेशम् |
न कुरु नितम्विनि गमनविलम्वनमनुसरतंहृदयेशम् |
धीरसमीर यमुनातीरे वसतिवनेवनमाली |
पीनपयोधरपरिसरमद्दंनचञ्चलकरयुगशाली || 1 ||
नामसमेतं कृत संकेतं वादयते मुदु वेणुचम् |
वहुमनुते ननु ते तनुसग्डंतपवनचलितमपि रेणुम् || 2 ||
पतति पतत्रे विचलितपत्रे शंकितभवदुपयानम् |
रचयति शयनं सचकितनयनं पश्यति तव पन्थानम् || 3 ||
मुखरमधीरं त्यज मञ्जीरं रिपुमिव केलिषु लोलम् |
चल सखि कुञ्जं सतिमिरपुञ्जं शीलय नीलनिचोलम् || 4 ||
उरसि मुखरे रूपहितहारे घन इव तरल वलाके |
तडिदिव पीते रतिविपरिते राजसि सुकृतविपाके || 5 ||
विगलितवसनं परिहृत रसनं घटय जघनमपिधानम् |
कि शलयशयने पंकजजनयने निधिमिव हर्षनिधानम् || 6 ||
हरिरभिमानी रजनिरिदानीमियमपि याति विरामम् |
कुरु मम वचनं सत्वररचनं पूरय मधुरिपुकामम् || 7 ||
श्रीजय देवे कुतहरिशेवे भणति परम रमणीयम् |
प्रमुदितहृदयं हरिमतिसदयं नमत सुकृतकमनियम् || 8 ||
¤ दशम पाहाच ¤
पश्यति दिश दिश रहसि भवन्तम् |
तदधरमधुरमधुनि पिन्तम् |
नाथ हरे सीदति राधा वासगृह || 1 ||
त्वन्दभिसरणरभसेन वन्ती |
पतति पदानि कियन्ति चलन्ती || 2 ||
विहितविशदविसकिशलयवलया |
जीवति परमिह तव रतिकलया || 3 ||
मुहुरवलोकितमण्डनलीला |
मधुरिपुरहमिति भावनशीला || 4 ||
त्वरितमुपैति न कथमभिसारम् |
हरिरिति वदति सखीमनुवारम् || 5 ||
श्लिष्यति चुम्वति जलधरकल्पम् |
हरिरुपगत इति तिमिरमनल्पम् || 6 ||
भवति विलम्विनि विगलितलज्जा |
विलपति रोदिति वासकशज्जा || 7 ||
श्री जय देव कवेरिदमुदितम् |
रसिकजनं तनुतामतिमुदितम् || 8 ||
¤ एकादश पाहाच ¤
कथित समयेपि हरिरहह न ययौ वनम्
मम विफलमिदममलरूप नवयौवनम्
यामि हे कमिह शरणं सखीजनवचनवञ्चिता || 1 ||
यदनुगमनाय निशि गहनमपि शीलातम्
तेन मम हृदयमिदमससशरकीलितम् || 2 ||
मम मरणमेव वरमिति वितथकेतना
किमिह विषहामि विरहानलमचेतना || 3 ||
मामहर विधुरयति मधुरमधुयामिनी
कापि हरिमनुमवति कृतसुकृतकामिनी || 4 ||
अहह कलयामि वलयादिमणिभुषणम्
हरि विरहदहनवहनेन वहुदूषणम् || 5 ||
कुसुमकुसुमारतनुमतनुशरलीलया
स्रगपि हृदि हन्ति मामतिविषमशीलया || 6 ||
अहमिह निवसामि न गणितवनवेतसा
स्मरति मधुसूदनो मामपि न चेतसा || 7 ||
हरिचरण शरण जय देव कवि भारती
वसतु हृदि युवतिरिव कोमलकलावती || 8 ||
¤ द्वादश पाहाच ¤
स्मरसमरोचितविरचितवेशा |
गलितकुसुमदलविलुलातकेश |
कपि चपला मधुरिपुणा
विलसति युवतिरपिकपुणा || 1 ||
हरिपरिरम्भणवलितविकारा
कुचकलसोपरि तरलितहारा || 2 ||
विचलदलक ललिताननचन्द्रा
तदधरपानरभसकृततन्द्रा || 3 ||
चञ्चलकुण्डलदलातकपोला
मुखरातरसना जघनगतिलोला || 4 ||
जयितविलोकितलज्जितहासा
वहुविधकूजितरतिरसरसिता || 5 ||
वापुलपूलकपृथुवेपथुभग्डां
श्वशितनिमिलितविकसदनग्डां || 6 ||
श्रमजलकणभरसुभगशरीरा
परिपतितोरसि रतिरणधीरा || 7 ||
श्री जय देव भणित हरिरमितम्
कलाकलुषं जनयतु परिशमितम् || 8 ||
¤ त्रयोदश पाहाच ¤
समुदितमदने रमणीवदने चुम्वनवलिताधरे
मृगमदतिलकं लिखति सपुलकं मृगमिवरजनीकरे
रमते यमुनापुलिननने विजयी मुरारिरधुना || 1 ||
घनचयरुचिये रचयति चिकुरे तरलिततरुणानने
कुरुवककुसुमं चपलासुषमं रतिपतिमृगकानने || 2 ||
घटयति सुघने कुचयगगने मृगमदरुचिरुषिते
मणिसरममलं तारकपटलं नखपदशशिभूषिते || 3 ||
जितविसकले मृदुभुजयुगले करतलनलिनीदले
मरकतवलयं मधुकरनिचयं वितरति हिमशीतले || 4 ||
रतिगृहजघने विपुलापघने मनसिजकनकासने
मणिमयरसनं तोरणहसनं विकिरति कृतवासने || 5 ||
चरणकिसलये कमलानिलये नखमणिगणपूजिते
वहिरपवरणं यावकहरणं जनयति हृदि योजिते || 6 ||
रमयति सुभृतं कामपि सुदृशं खल हलधरशोदरे
किमफलमवसं चिरमिह विरसं वद सखि विटपोदरे || 7 ||
इह रसभणने कृतहरिगुणने मधुरिपुपदसेवके
कलयुगचरितं न वसतु दुरितं कविनृप जय देवके || 8 ||
¤ चतुर्दश पाहाच ¤
अनिलतरलकुवलयनयनेन
तपति न सा किशलयशयनेन
सखि या रमिता वनमालिना || 1 ||
विकसितसरसिजललितमुखेन
स्फुटति न सा मनसिजविशिखेन || 2 ||
अमृतमधुरमृदुतर वचनेन
ज्वलति न सा मलयजपननेन || 3 ||
स्तलजलरुहरुचिकरचरणेन
लुठति न सा हिमकरकिरणेन || 4 ||
सजलजल समुदयरुचिरेण
दलति न सा हृदि विरहभरेण || 5 ||
कनकनितषरुचिशुचिवसनेन
श्वसिति न सा परिजनहसनेन || 6 ||
सकलभुवनजनवरतरुणेन
वहति न सा रुजमतिकरुणेन || 7 ||
श्री जय देव भणित-वचनेन
प्रविशतु हरियपि हृदयमनेन || 8 ||
¤ पञ्चदश पाहाच ¤
रजनिजनितगुरुजागररागकषायितमलमनिमेषम्
वहति नयनमनुरागमिव स्फुटमुदितरसाभिनिवेशम्
हरि हरि याहि माधव याहि केशव मावद कैतववादम्
तामनुसर सरसीरुहलेचन या तव हरति विषादम् || 1 ||
कज्वलमलिनविलोकनचुम्वनविरचितनीलिमरुपम्
दशनवसनमरुणं तव कृष्ण तनोति तनोरनुरुपम् || 2 ||
वपुरनुहरति तव स्मरसग्डंरखरनखरक्षतरेखम्
मरकतशकलकलितकलधौतलिपेरिव रतिजयलेखम् || 3 ||
चरणकमलगलदलक्तकसिक्तमिदं तव हृदयमुदारम् || 4 ||
दशनपदं भवदधरगतं मम जनयति चेतसि खेदम् || 5 ||
वहिरिव मलिनतरं तव कृष्ण मनोपि भविष्यति नूनम्
कथमथ वञ्चयसे जनमनुगतमसमसरज्वरदूनम् || 6 ||
भ्रमति भवानवलाकवलाय वनेषु किमत्र विचित्रम्
प्रथयति पूतनिकैव वधुवधनिर्द्दयवालचरित्रम् || 7 ||
श्री जय देव भणित रति वञ्चत खण्डितयुवतिविलापम्
शृणुत सुधामधुरं विवुधा विवुधालयतोपि दुरापम् || 8 ||
¤ षोड़श पाहाच ¤
हरिरभिसरति वहति मधुपवने
किमपरमधिकसुखं सखि भुवने
माधवे मा कुरु मानिनि मानयये || 1 ||
तालफलादपि गुरुमतिसरसम्
किं विफलिकुरुषे कुचकलसम् || 2 ||
कति न कथितमिमनुपदमचिरम्
मा परिहर हरिमतिशयरुचिरम् || 3 ||
किमिति विषीदसि रोदिषि विकला
विहसति युवतिसभा तव सकला || 4 ||
मृद नलिनीदल शीतल सयने
हरिमवलोकय सफलय नयने || 5 ||
जनयसि मनसि किमिति गुरुखेदम्
सृणु मम वचन मनीहितभेदम् || 6 ||
हरिरुपयातु वदतु वहु मधुरम्
किमाति करोषि हृदयमतिविधुरम् || 7 ||
श्री जय देव भणितमतिललितम्
सुखयतु रसिकजनं हरिचरितम् || 8 ||
¤ सप्तदश पाहाच ¤
वदसि यदि किञ्चदपि दन्तरुचिकौमुदी हरति दरतिमिरमतिघोरम्
स्फुरदधरसीथवे तव वदनचन्द्रमा रोचयति लोचनचकोरम् |
प्रिये चारुशीले प्रिये चारुशीले मुञ्चमयिमानमनिदानम्
सपदि मदनानलो दिहति मम मानसं देहि मुखकमलमधुदानम् || 1 ||
सत्यमेवासि यदि सुदति मयि कोपिनी
देहि खरनखरशरघातम्
घटय भुजवन्द्दनं जनय रदखण्डनं
येन वा भवति सुखजाम् || 2 ||
त्वससि मम भुषणं त्वमसि मम जिवनं
त्वमसि मम भवजलधिरत्नम्
भवतु भवतिह मयि सततमनुरोधिनी
तत्र मम हृदयमतियत्नम् || 3 ||
निलमलिनाभमपि तन्वि ! तव लोचनं
धारयति कोकनदरूम्
कुसुमशरवाणभावेन यदि रञ्जयसि
कृष्णमिदमेतदनुरुपम् || 4 ||
स्फुरतु कुचकुम्भयोरुपरि मणि मञ्जरी
रञ्जयतु तव हृदयदेशम्
रसतु रसनापि तव घनजधनमण्डले
घोषायतु मन्मथनिशम् || 5 ||
स्थलकमलगञ्जनं मम हृदयरञ्जनं
जनितरतिरग्डंपरभागम्
भण मसृणवाणि करवाणि चरणद्वयं
सरसलसदलक्तकरागम् || 6 ||
स्मरगरलखण्डनं मम सिरसि मण्डनं
देहि पदपल्लवमुदारम्
ज्वलति मयि दारुणो मदनकदनारुण
हरतु तवुपाहितविकारम् || 7 ||
इति चटुलीचाटुपटुचारुमुरवैरिणो
राधिकामधिवचनजातम्
जयति जय देव कवि भारती भुषितं
मानिनीजनजनितशातम् || 8 ||
¤ अष्टादश पाहाच ¤
विरचितचाटुवचनरचनं चरणे यचित प्रणिपातम्
स्र-ति मञ्चुलवञ्जुलसीमनि केलिशयनमनजातम् |
गुग्धे मधुमथनमनुगतसर राधिके || 1 ||
घनजघनस्तनभारभरे दरमन्थरचरणविहारम्
मुखरितमणिमञ्जिरमुपैह विधेहि मरालविकारम् || 2 ||
शृणु रमणीयतरं तरुणीजनमोहनमधुरिपुरावम्
सुमनशरासनशासनवन्दिनि पिकनिकरे मजभावम् || 3 ||
अनिलतरलकिशलयनिकरेण करेण लतानिकुम्भम्
प्ररणमिव करभोरु करोति गतिं प्रतिमुञ्च विलम्वम् || 4 ||
स्फुरतमनग्डंतग्डंवशादिव सूचितहरिपरिरम्भम्
पच्छ मनोहरहारविमलजलधारममुं कुचकुम्भम् || 5 ||
अधिगतमशिल सखीभिरिदं तव वपुरपि रतिरणसज्जम्
चण्डि ! रसितरसनारवडिण्डिममभिसर सरसमलज्जम् || 6||
स्वरशरमुभगनखेन करेण सरीमवलम्व्य सलीलम्
चलवलयक्वणितैरववोधय हरिमपि निजगतिशीलम् || 7 ||
श्री जय देव भणितमधरीकृत हारमुदासितवामम्
हरिविनहितमनसामधितिष्ठतु कण्ठमभिराम् || 8 ||
¤ उनविँश पाहाच ¤
मञ्जुतर कुञ्जतल केलि सदने
विलस रतिरभसहशितवदने |
प्रविश राधे माधव समीपभिह || 1 ||
नवभववशोकदल शयनसारे
विलस कुचकलसतयलहारे || 2 ||
कुसुमचयरचित शुचि वास गेहे
विलस कुसुमसुकुमारदेहे || 3 ||
चलमलयपवन सुरभिशीते
विलस मदनशरनिकरभीते || 4 ||
विततवहुवल्लिनवपलुवघने
विलस चिरमिलितपीनजघने || 5 ||
मधुमुदित मधुपकुलकलितरावे
विलस मदनरससरसभावे || 6 ||
मधुतरपिकनिकर निनदमुखरे
विलस दशनरुचिरुचिरशिखरे || 7 ||
विहित पद्मावती सुख समाजे
भणित जय देव कवि राजराजे || 8 ||
¤ विँशतितम पाहाच ¤
राधावदनविलोकनविकसितविविधविकारविभग्डंम्
जलनिधिमिव विधुमण्डलदर्शन तरलिततग्डंतरग्डंम् |
हरिमेकरसं चिरमभिलसितविलासम् |
सा ददर्श गुरुहर्षवशंवद वदनमनग्डंनिवासम् || 1 ||
हारममलतरतारमुरसि दधतं परिरभ्य विदूरम्
स्फुटतरफेनकदम्वकरम्वितमिव यमुनाजलपुरम् || 2 ||
श्यामलमृदुलकलेवरमण्डलमधिगतगौरदुकुलम्
नीलनलिनभिव पीतपरागपटलभरवलयितमूलम् || 3 ||
तरलदृगञ्चलचलनमनोहरमदनजनितरतिरागम्
स्फुटकमलोदरखैलितखञ्जनयगमिव शरदि तड़ागम् || 4 ||
वदनकमल परिशीलनमिलत मिहिरसमकुण्डलशोभम् || 5 ||
शशिकिरणच्छुरितोदर जलधरसुन्दर सकुसुम केशम्
तिमिरोदितवाधुमण्डलनिर्मलमलयजतिलाकनिदेशम् || 6 ||
विपुलपुलकभरदन्तुरितं रतिकेलिकलाभिरधीरम्
मणिपणकिरणसमुह समुज्वलभूषणसुभगशरीरम् || 7 ||
श्री जय देव भणित विभव द्विगुणीकृत भुषणभारम्
प्रणमत हृदि सुचिरं विनिधाय हरिं सुकृतोदयसारम् || 8 ||
¤ एकविंशतितम पाहाच ¤
किसलयसयनतले कुरु कामिनि चरणनलिनविनिवेशम् |
क्षणमधुना नारायणमनुगतमनुसर मां राधिके || 1 ||
करलमलेन करोमि चरणमहमागतासि विदूरम् |
क्षणमुपकुरु सयनोपरि मामिव नूपुरमनुगतशूरम् || 2 ||
वदनसुधानिगलितममृतमिव रचय वचनमनुकूलम्
प्रिय परिरम्भणरभसवलितमिव पुलकितमतिदूरवापम् || 4 ||
अधरसुधारसमुपनय भाविनि जीवय मृतमिव दासम्
त्वयि विनिहितमनसं विरहानलदग् धवपुषमविलासम् || 5 ||
शशिमुख मुखरय मणि रसनागुणमनुगुणकनिनादम्
श्रुतिपुटयुगले पिकरुतविकले शमय चिरादवसादम् || 6 ||
मामति विफलरुषा विकलीकृतमवलोकितुमधुनेदम्
मीलितलज् जितमिव नयनं तव विरम विसृज रतिखेदम् || 7 ||
श्री जय देव भणितमिदमनुपदनिगदितमधुरिपुमोदम्
जनयतु रसिकजनेषु मनोरमरतिरसभावनिनोदम् || 8 ||
¤ द्वाविँशतितम पाहाच ¤
कुरु यदुनन्दन चन्दनशिशिरतरेण करेण पयोधरे
मृगमदपत्रकमत्र मनोभवमग्डंलकलशसहोदर |
निजगाद सा यदुनन्दने क्रीतति हृदयानन्दने || 1 ||
अलिकुलगञ्जनसञ्जनकं रतिनायकसायकमोचने
त्वदधरचुम्वनलम्वितकज्वलमुज्ज्वलय प्रियलोचने || 2 ||
नयनकुरग्डंतग्डंविलासनिरोधकरे शृतिमण्डले
मनसिजपाशविलासधरे शुभवेश नावेशय कुण्डले || 3 ||
भ्रमरचयं रचयन्तमुपरि रुचिरं सुचिरं मम सम्मुखे
जितकमले विमले परिकर्मय नर्मजने कमलकं मुखे || 4 ||
मृगमदरसवलितं ललितं कुरु तिलकमलिनरजनीकरे
विहितकलक्कंकलं कमलानन विश्रमितश्रमशीकरे || 5 ||
मम रुचिरे चिकुरे कुरु मानद मनसिजध्वजचामरे
रतिचालिते ललिते कुसुमानि शिखण्डिशिखण्डकड़ामरे || 6 ||
सरसघने जघने मम शम्वरदारणवारणकन्दरे
मणिरसनावसनाभरणानि शुभाशय वासय सुन्दरे || 7 ||
श्री जय देव वचसि रुचिरे हृदयं सदयं कुरु मण्डने
हरिचरणस्मरणामृतनिर्मित तलिकलुषज्वरखण्डने || 8 ||
समर्पण
श्री भोज देव प्रभवस्य
वामादेवीसूत श्री जयदेवकस्य
परासरादि प्रियवर्गकण्ठे
प्रवन्धनाचय कवित्वमस्तु ||
[ अलसनिमिलितलोचनया पुलकावलिललितकपोलम् |
श्रमजलसिक्तकलेवरया वरमदनमदादतिलोलम् || 4 ||
स्तनविनिहितमपि हारमुदारम्
सा मनुते कृशतनुरिव भारम् |
राधिका तव विरहे केशव || 1 ||
कथित समयेपि हरिरहह न जजौ वनम्
मम विफलमिदममलरूप नवजौवनम्
जामि हे कमिह शरणं सखीजनवचनवच्ञिता || 1 ||
अनिलतरलकुवलयनयनेन
तपति न सा किशलयशयनेन
सखि जा रमिता वनमालिनी || 1 ||
राधावदनविलोकनविकसितविविधविकारविभग्गंम्
लनिधिमिव विधुमण्डलदर्शन तरलिततुग्डंतरग्गंम् |
हरिमेकरसं चिरमभिलसितविलासम् |
सा ददर्श गुरुहर्षवशंवद वदनमनग्डंनिवासम् || 1 ||

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