रविवार, 31 मई 2020

श्रीजय देवंक वाइशि पाहाच


                     

श्रीजय देवंक वाइशि पाहाच

वाग्देवताचरितचित्रितचित्तशद्मा

पद्मावतीचरणचारणचक्रवर्त्ती |

श्रीवासुदेवरतिकेलिकथाससेत-

मेतं करोति जय देव कविप्रवन्धम् | 1 |

 

यदि हरिस्मरणे सरसंमनो

यदि विलासकलासु कुतुहलम् |

मधुरकोमलकान्त पदावलीम्

सृणु तदा जय देव सरस्वतीम् | 2 |

 

¤ दशावतार वन्दना ¤

 

प्रलयपयोधिजले धृतवानसि वेदम्

विहित वहित्र-चरित्रमखेदम् |

केशव , धृत मीनशरीर

जय जगदीश हरे | 1 |

 

क्षितिरतिविपुलतरे तव तिष्ठति पृष्ठे

धरणिधारणकिणचक्रगरिष्ठे |

केशव , धृतकच्छपरूप

जय जगदीश हरे | 2 |

 

वसति दशनशिखरे धरणी तव लग्ना

शशिनि कलकंकलेवनिमग्ना |

केशव , धृत शुकररूप ,

जय जगदीश हरे | 3 |

 

तव करकमलवरे नखमभ्डुतशृग्डंम्

दलितहिरण्यकशिपुतनुभ्डुग्डंम् |

केशव , धृतनरहरिरूप

जय जगदीश हरे | 4 |

 

छलयसि विक्रमणे वलिमभ्डुतवामन

पदनख-नीर-जनित-जन-पावन |

केशव , धृतवामन रूप

जय जगदीश हरे | 5 |

 

क्षत्रियरुधिरमये जगदपगतपापम्

स्नपयसि पयसि शमितभवतापम् |

केशव , धृतभृगुपति रूप

जय जगदीश हरे | 6 |

 

वितरसि दिक्षुरणेदिक् पतिकमनीयम्

दशमुखमौलिवलिँरमणीयम् |

केशव , धृत रामशरीर

जय जगदिश हरे | 7 |

वहसिवपुसिविषदेवशनंदलदाभम्

हलहतीभीतिमिलितयमुनाभम् |

केशव , धृतहलधर रूप

जय जगदीश हरे | 8 |

 

निन्दसियज्ञधेरहहश्रुतिजातम्

सदयहृदय दर्शितपशुघातम् |

केशव , धृतवुध्दशरीर

जय जगदीश हरे | 9 |

म्लेच्छनिवहनिधनेकलयसिकरवालम्

धूमकेतुमिवकिमपिकरालम् |

केशव , धृतकल् कीशरीर

जय जगदीश हरे | 10 |

 

श्रीजय देवकवेरिदमुदितमुदायम्

शृणुभुभदंसुखदंभवपारम् |

केशव , धृतदशविधरूप

जय जगदीश हरे | 11 |

 

¤ मग्डंलाचरण ¤

 

श्रित कमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल |

कलितललितवनमाल |

जय जय देव हरे | 1 |

 

दिनमणिमण्डलमण्डनभवखण्डन |

मुनिजनमानसहंस |

जय जय देव हरे | 2 |

 

कालियविषधरगञ्ज जनरञ्जन |

जदुकुलनलिनदिनेश |

जय जय देव हरे | 3 |

 

मधुमुरनरकविनाशन गरुड़ासन |

सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे | 4 |

 

अमलकमलदललोचन भवमोचन |

त्रिभुवनभवननिधान

जय जय देव हरे | 5 |

 

जनकसुताकृतभुषण जितदूषण |

समरशमितदशकण्ठ |

जय जय देव हरे | 6 |

 

अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर |

श्रीमुखजन्द्रचकोर |

जय जय देव हरे | 7 |

 

श्रीजय देव कवेरिदम् कुरुतेमुदम् |

मग्गंलमुज्वलगीतम् |

जय जय देव हरे | 8 |

 

 

¤ प्रथम पाहाच ¤

 

ललितलवग्डंलतापरिशीलनकोमलमलयसमीर |

मधुकरनिकरकरम्वितकोकिलकूजितकुञ्जकुटीरे |

 

विहरति हरिरिह सरसवसन्ते |

नृत्यति जुवतिजनेन समं सखि विरहिजनस्य दुरन्ते || 1 ||

 

उन्मदमदनमनोरथपथिकवधूजनजनितविलापे |

अलिकुलसंकुलकुसुमसमूहनिराकुलवकुलकलापे || 2 ||

 

मृगमदसौरभरभसवशम्वदनवदलमालतमाले |

जुवजनहृदयविदारणमनसिजनखरुचिकिँशुकजाले || 3 ||

 

मदनमहीपतिकनकदण्डरुचिकेशरकुसुमविकाशे |

मिलित शिलीमुखपाटलिपटलकृतस्मरतूणविलासे || 4 ||

 

विगलितलज्जितजगदवलोकनतरुणकरुणकृतहासे |

विरहिनिकृन्तनकुन्त मुखाकृतिकेतकिदन्तुरिताशे || 5 ||

 

माधविकापरिमलललिते नवमालतीजातिसुगन्धौ |

मुनिमनसामपि मोहनकारिणि तरुणाकारणवन्धौ || 6 ||

 

स्फुरदतिमुक्तलतापरिरम्भणमुकुलातपुलकितचूते |

वृन्दावनविपिने परिसरपरिगतजमुनाजलपूते || 7 ||

श्रीजय देवभणितमिदमुदयति हरिचाणश्मृतिसारम् |

सरसवसन्तसमयवनवर्णनमनुगतमदनविकारम् || 8 ||

 

 

¤ द्वितीय पाहाच ¤

 

चन्दनचर्चितनीलकलेवरपीतवसनवनमाली

 

केलिचलन्मणिकुण्डलमण्डितगण्डजुगस्मितशली |

हरिरिह मुग्धवधूनिकरे विलासिनि विलसति केलिपरे || 1 ||

 

पीनपयोधरभारभरेण हरिँ परिरभ्य सरागम् |

गोपवधूरनुगायति काचिदुदञ्चितषञ्चमरागम् || 2 ||

 

कापि विलासविलोलविलोचनखेलनजनितमनोजम् |

ध्यायति मुग्धवधूरधिकं मधुसूदनवदनसरोजम् || 3 ||

 

कापि कपोलतले मिलिता लपितुंकिमपि श्रुतिमूले |

कापि चुचुम्व नितम्ववती दयितं पुलकैरनुकूले || 4 ||

 

केलिकेलाकुचुकेन काचिदमुं जमुनाजलकूले |

मञ्जुलवञ्जुलकुञ्जगतं विचकर्ष करेण दुकूले || 5 ||

 

करतलतालतरलवलयावलिकलितकस्वनवंशे |

रासरसे सहानृत्यपरा हरिणा जुवतिः प्रशशंसे || 6 ||

 

श्लिष्यति कामपि चुम्वति कामपि कामपि रमयति रामाम् |

पश्यति सस्मितचारुतरामपरामनुगच्छति वामाम् || 7 ||

 

श्रीजय देवकवेरिदमभुतकेशवकेलिरहस्यम् |

वृन्दावनविपिने ललितं नितनोतु शुभानिजशस्यम् || 8 ||

 

 

¤ तृतिय चाहाच ¤

 

सञ्चरदधरसुधामधुरध्वनिमुखरितमोहनवंशम् |

चलित दृगञ्चलचञ्चलमौलिकपोलपोलविलोलवतंसम् |

 

रासे हरिमिह विहितविलासम्

स्मरति मनो मम कृत परिहासम् || 1 ||

 

चन्द्रकचारुमयुरशिखण्डलवलयित केशम् |

प्रचुरपुरन्दरधनुरनुरञ्जितमेदुरमुदिरसुवेशम् || 2 ||

 

गोपकदम्वनितम्ववतीमुखचुम्वनलम्वितलोभ म् |

वन्धुजीवमधुराधरपल्लवमुल्लसितस्मितशोभम् || 3 ||

 

विपुलपुलकभुजपल्लववलयितवल्लवयुवतीसहस्रम् |

करचरणोरसि मणिगणभुषणकिरणविभिन्नतमिस्रम् || 4 ||

 

जलदपटलचलदिन्दुविनिन्दकचन्दनतिलकललाटम् |

पीनपयोधरपरिसरमर्द्दननिर्द्दयहृदयकपाटम् || 5 ||

 

मणिमयमकरमनोहरकुण्डलमण्डितगण्डमुदारम् |

पीतवसनमनुगतमुनिमनुजसुरासुरवरपरिवारम् || 6 ||

 

विशदकदम्वतले मिलितं कलिकलुषभयं शमयन्तम् |

मामपि किमपि तरग्डंदनग्डंदृशा मनसा रमयन्तम् || 7 ||

 

श्रीजय देवभणित मति सुन्दर मोहनमधुरिपुरूपम् |

हरिचरणस्मरणं प्रति स्र-ति पूण्यवतामनुरूपम् || 8 ||

 

¤ चतुर्थ पाहाच ¤

 

निभुत निकुज्ज़गृहं गतया निशि रहसि निलीय वसन्तम् |

चकित विलोकितसकलदिशा रतिरभसभरेण वसन्तम् |

 

सखि हे केशिमथनमुदारम्

रमय मया सह मदनमनोरथभावितया सविकारम् || 1 ||

 

प्रथमसमागमलज्जिताया पटुचाटुशतैरनुकूलम् |

मृदुमधुरस्मितभाषितया शिथिलीकृतजघनदुकूलम् || 2 ||

किसलयशयननिवेशितया चिरमुरसि ममैव शयानम् |

कृतपरिरम्भणचुम्भणचुम्भनया परिरभ्य कृकाधरपानम् || 3 ||

 

अलसनिमिलितलोचनया पुलकावलिललितकपोलम् |

श्रम जलसिक्तकलेवरया वरमदनमदादतिलोलम् || 4 ||

 

कोकिलकलरवकूजितया जितमनसिज-तन्त्रविचारम् |

श्लथकुसुमाकुलकुन्तलया नखलिखितघनस्तनभारम् || 5 ||

 

चरणरणितमणिनूपुरया परिपुरितसुरतवितानम् |

मुखरविशृख्खंलमेखलया शकचग्रहचुम्वनदानम् || 6 ||

 

रतिसुखशमयरसालसया दरमुकुलातनयनसरोजम् |

निःसहनिपतिततनुलतया मधुसूदनमुदितमनोजम् || 7 ||

 

श्रीजय देवभणितमिदमतिशयमधुरिपुनिधुवनशीलम् |

सुखमुत् कण्ठित तराधिकाया कथितं वितनोतु सलीलम् || 8 ||

 

¤ पञ्चम पाहाच ¤

 

मामायं चलिता विलोक्य वृतं वधूनिचयेन |

सापराधया मयापि निवारातातिभयेन |

हरि हरि

हतादरतया गता सा कुसितेव || 1 ||

 

किं करष्यति किँ वदिष्यति सा चिरं विरहेण |

किं धनेन जनेन किं मम जीवितेन गृहेण || 2 ||

 

चिन्तयामि तदाननं कुटिकभ्रुकोपभरेण |

शोणपद्ममिवोपरि भ्रमताकुलं भ्रमरेण || 3 ||

 

तामहं हृदि संगतामनिशं भुशं चिन्तयामि |

किँ वनेनुसरामि तामिहं किं वृथा विलपामि || 4 ||

 

तन्वि ! शिन्नमसूयया हृदयं तवाकलयामि |

तन्न वेद्मि कुतो गतासे तेन तेनुनयामि || 5 ||

 

दृश्यसे पूरणे गतागतमेव मे विदधाशि |

किँ पुरेव ससम्भ्रमं परिरम्भणं ददासि || 6 ||

 

क्षम्यतामपरं कदापि तवेदृशं करोमि |

देहि सुन्दर रमणं मम मन्मथेन दुनोमि || 7 ||

 

वर्णितं जय देवकेन हरेरिदं प्रणतेन |

किन्दुविल्वसमुद्रसम्भव रोहिणीरमणेन || 8 ||

 

¤ षष्ठ पाहाच ¤

 

निन्दति चन्दनविन्दुकिरणमनुविन्दति खेदमधीरम् |

व्यालनिलयमिलनेन गरलमिव कलयति मलयसमीरम् |

 

सा विरेहे तव दीना ,

माधव मनसिजविशिखभयादिव भावनया त्वयि लीना || 1 ||

 

अवियतनिपतित मदनशरादिव भवदननाय विशालम् |

स्वहृदयमर्मणि वर्मकरोति सजलनलिनदलजालम् || 2 ||

 

कुसुमविशिखशरतल्पमनल्प विलासकलाकमनियम् |

प्रतमिव तव परिरम्भशुखाय करोति कुसुमशयनीयम् || 3 ||

 

वहति चलित विलोकन जलधरमननकमलमुदारम् |

विधुमिव विकटविधुन्तुददन्तदलनगलातामृतधारम् || 4 ||

 

विलिखति रहसि कुरग्डंमदेन भवन्तमसमशरभुतम् |

प्रणमति मकरमधो विनिधाय करे शरं नवचूतम् || 5 ||

 

प्रतिपदमिदमपि निगदति माधव ! तव चरणे पतिताहम् |

त्वयि विमुरे मयि सपदि सुधानिधिरपि तनुते तनुदाहम् || 6 ||

 

ध्यानलयेन पुरः परिकल्प्य भवन्तमतीव दुरापम् |

रोदिति चञ्चति मुञ्चति तापम् || 7 ||

 

विलपति हसति विषीदति श्रीजय देवभणितमिदमधिकं यदि मनशा नटनीयम् |

हरिविरहाकुलवल्लवयुवतिसखीवचनं पठनीयम् || 8 ||

 

¤ सप्तम पाहाच ¤

 

स्तनविनिहितमपि हारमुदारम् |

सा मनुते कृश तनुरिव भारम् |

 

राधिका तव विरहे केशव || 1 ||

सरसमसृणमपि मकयजपकंम् |

पश्यति विषमिव वपुषि सशकंम् || 2 ||

 

श्वशितपवनमनुपम परिणाहम् |

मदनदहनमिव वहति सदाहम् || 3 ||

 

दिशि दिशि किरति सजलकणजालम् |

नयननलिनमिव विपलितनालम् || 4 ||

 

नयनविषयमपि किशलयतल्पम् |

गणयति विहित हुताश विकल्पम् || 5 ||

 

त्यचति पाणिलेन कपोलम् |

वालशशिनमिव सायमलोलम् || 6 ||

 

हरिरिति हरिरिति जपति सकामम् |

विरह विहितमरणेव निकाम् || 7 ||

 

श्री जय देव भणितमिति गीतम् |

सुखयतु केशवपदमुपनीतम् || 8 ||

 

¤ अष्ठम पाहाच ¤

 

वहति मलयसमीरे मदनमुपनिधाय |

 

स्फुटति कुसुमनाकरे विरहिहृदयदलनाय |

तव विरहे वनमाली सखि सीदति || 1 ||

 

दहति शिशिरमयुखे मरणमनुकरोति |

पतति मदनविशिखे विलपति विकलतरोति || 2 ||

 

ध्वनति मधुपसमूहे श्रवणमपि दधाति |

मनसि वलितविरहे निशि निशिरुजमुपयाति || 3 ||

 

वसति विपिनविताने त्यजति ललित धाम |

लुठति धरणीशयने वहु पितपति तव नाम || 4 ||

 

रणति पिक समुदाये प्रतिदिशमनुयाति |

हसति मनुजनिचये विरहमपलपति नेति || 5 ||

 

स्फुरति कलरवरावे स्मरति भणितमेव |

तव रतिसुखविभवे वहुगणयति गुणमतिव || 6 ||

 

त्वदभिधशुभदमासं वदति नरिशृणोति |

तमपि जपति सरसं परयुवतिषु नरतिमुपैति || 7 ||

 

भणति कवि जय देवे विरहविलसितेन |

मनसिरभसविभवे || 8 ||

 

¤ नवम पाहाच ¤

 

रतिसुखशारे गतमभिसारे मदन मनोहर वेशम् |

कुरु नितम्विनि गमनविलम्वनमनुसरतंहृदयेशम् |

 

धीरसमीर यमुनातीरे वसतिवनेवनमाली |

पीनपयोधरपरिसरमद्दंनचञ्चलकरयुगशाली || 1 ||

 

नामसमेतं कृत संकेतं वादयते मुदु वेणुचम् |

वहुमनुते ननु ते तनुसग्डंतपवनचलितमपि रेणुम् || 2 ||

 

पतति पतत्रे विचलितपत्रे शंकितभवदुपयानम् |

रचयति शयनं सचकितनयनं पश्यति तव पन्थानम् || 3 ||

 

मुखरमधीरं त्यज मञ्जीरं रिपुमिव केलिषु लोलम् |

चल सखि कुञ्जं सतिमिरपुञ्जं शीलय नीलनिचोलम् || 4 ||

 

उरसि मुखरे रूपहितहारे घन इव तरल वलाके |

तडिदिव पीते रतिविपरिते राजसि सुकृतविपाके || 5 ||

 

विगलितवसनं परिहृत रसनं घटय जघनमपिधानम् |

कि शलयशयने पंकजजनयने निधिमिव हर्षनिधानम् || 6 ||

 

हरिरभिमानी रजनिरिदानीमियमपि याति विरामम् |

कुरु मम वचनं सत्वररचनं पूरय मधुरिपुकामम् || 7 ||

 

श्रीजय देवे कुतहरिशेवे भणति परम रमणीयम् |

प्रमुदितहृदयं हरिमतिसदयं नमत सुकृतकमनियम् || 8 ||

 

¤ दशम पाहाच ¤

 

पश्यति दिश दिश रहसि भवन्तम् |

 

तदधरमधुरमधुनि पिन्तम् |

नाथ हरे सीदति राधा वासगृह || 1 ||

 

त्वन्दभिसरणरभसेन वन्ती |

पतति पदानि कियन्ति चलन्ती || 2 ||

 

विहितविशदविसकिशलयवलया |

जीवति परमिह तव रतिकलया || 3 ||

 

मुहुरवलोकितमण्डनलीला |

मधुरिपुरहमिति भावनशीला || 4 ||

 

त्वरितमुपैति कथमभिसारम् |

हरिरिति वदति सखीमनुवारम् || 5 ||

 

श्लिष्यति चुम्वति जलधरकल्पम् |

हरिरुपगत इति तिमिरमनल्पम् || 6 ||

 

भवति विलम्विनि विगलितलज्जा |

विलपति रोदिति वासकशज्जा || 7 ||

 

श्री जय देव कवेरिदमुदितम् |

रसिकजनं तनुतामतिमुदितम् || 8 ||

 

¤ एकादश पाहाच ¤

 

कथित समयेपि हरिरहह ययौ वनम्

 

मम विफलमिदममलरूप नवयौवनम्

यामि हे कमिह शरणं सखीजनवचनवञ्चिता || 1 ||

 

यदनुगमनाय निशि गहनमपि शीलातम्

तेन मम हृदयमिदमससशरकीलितम् || 2 ||

 

मम मरणमेव वरमिति वितथकेतना

किमिह विषहामि विरहानलमचेतना || 3 ||

 

मामहर विधुरयति मधुरमधुयामिनी

कापि हरिमनुमवति कृतसुकृतकामिनी || 4 ||

 

अहह कलयामि वलयादिमणिभुषणम्

हरि विरहदहनवहनेन वहुदूषणम् || 5 ||

 

कुसुमकुसुमारतनुमतनुशरलीलया

स्रगपि हृदि हन्ति मामतिविषमशीलया || 6 ||

 

अहमिह निवसामि गणितवनवेतसा

स्मरति मधुसूदनो मामपि चेतसा || 7 ||

 

हरिचरण शरण जय देव कवि भारती

वसतु हृदि युवतिरिव कोमलकलावती || 8 ||

 

¤ द्वादश पाहाच ¤

 

स्मरसमरोचितविरचितवेशा |

गलितकुसुमदलविलुलातकेश |

 

कपि चपला मधुरिपुणा

विलसति युवतिरपिकपुणा || 1 ||

 

हरिपरिरम्भणवलितविकारा

कुचकलसोपरि तरलितहारा || 2 ||

 

विचलदलक ललिताननचन्द्रा

तदधरपानरभसकृततन्द्रा || 3 ||

 

चञ्चलकुण्डलदलातकपोला

मुखरातरसना जघनगतिलोला || 4 ||

 

जयितविलोकितलज्जितहासा

वहुविधकूजितरतिरसरसिता || 5 ||

 

वापुलपूलकपृथुवेपथुभग्डां

श्वशितनिमिलितविकसदनग्डां || 6 ||

 

श्रमजलकणभरसुभगशरीरा

परिपतितोरसि रतिरणधीरा || 7 ||

 

श्री जय देव भणित हरिरमितम्

कलाकलुषं जनयतु परिशमितम् || 8 ||

 

¤ त्रयोदश पाहाच ¤

 

समुदितमदने रमणीवदने चुम्वनवलिताधरे

मृगमदतिलकं लिखति सपुलकं मृगमिवरजनीकरे

रमते यमुनापुलिननने विजयी मुरारिरधुना || 1 ||

 

घनचयरुचिये रचयति चिकुरे तरलिततरुणानने

कुरुवककुसुमं चपलासुषमं रतिपतिमृगकानने || 2 ||

 

घटयति सुघने कुचयगगने मृगमदरुचिरुषिते

मणिसरममलं तारकपटलं नखपदशशिभूषिते || 3 ||

 

जितविसकले मृदुभुजयुगले करतलनलिनीदले

मरकतवलयं मधुकरनिचयं वितरति हिमशीतले || 4 ||

 

रतिगृहजघने विपुलापघने मनसिजकनकासने

मणिमयरसनं तोरणहसनं विकिरति कृतवासने || 5 ||

 

चरणकिसलये कमलानिलये नखमणिगणपूजिते

वहिरपवरणं यावकहरणं जनयति हृदि योजिते || 6 ||

 

रमयति सुभृतं कामपि सुदृशं खल हलधरशोदरे

किमफलमवसं चिरमिह विरसं वद सखि विटपोदरे || 7 ||

 

इह रसभणने कृतहरिगुणने मधुरिपुपदसेवके

कलयुगचरितं वसतु दुरितं कविनृप जय देवके || 8 ||

 

¤ चतुर्दश पाहाच ¤

 

अनिलतरलकुवलयनयनेन

तपति सा किशलयशयनेन

सखि या रमिता वनमालिना || 1 ||

 

विकसितसरसिजललितमुखेन

स्फुटति सा मनसिजविशिखेन || 2 ||

 

अमृतमधुरमृदुतर वचनेन

ज्वलति सा मलयजपननेन || 3 ||

 

स्तलजलरुहरुचिकरचरणेन

लुठति सा हिमकरकिरणेन || 4 ||

 

सजलजल समुदयरुचिरेण

दलति सा हृदि विरहभरेण || 5 ||

 

कनकनितषरुचिशुचिवसनेन

श्वसिति सा परिजनहसनेन || 6 ||

 

सकलभुवनजनवरतरुणेन

वहति सा रुजमतिकरुणेन || 7 ||

 

श्री जय देव भणित-वचनेन

प्रविशतु हरियपि हृदयमनेन || 8 ||

 

¤ पञ्चदश पाहाच ¤

 

रजनिजनितगुरुजागररागकषायितमलमनिमेषम्

वहति नयनमनुरागमिव स्फुटमुदितरसाभिनिवेशम्

 

हरि हरि याहि माधव याहि केशव मावद कैतववादम्

तामनुसर सरसीरुहलेचन या तव हरति विषादम् || 1 ||

 

कज्वलमलिनविलोकनचुम्वनविरचितनीलिमरुपम्

दशनवसनमरुणं तव कृष्ण तनोति तनोरनुरुपम् || 2 ||

 

वपुरनुहरति तव स्मरसग्डंरखरनखरक्षतरेखम्

मरकतशकलकलितकलधौतलिपेरिव रतिजयलेखम् || 3 ||

 

चरणकमलगलदलक्तकसिक्तमिदं तव हृदयमुदारम् || 4 ||

दशनपदं भवदधरगतं मम जनयति चेतसि खेदम् || 5 ||

 

वहिरिव मलिनतरं तव कृष्ण मनोपि भविष्यति नूनम्

कथमथ वञ्चयसे जनमनुगतमसमसरज्वरदूनम् || 6 ||

 

भ्रमति भवानवलाकवलाय वनेषु किमत्र विचित्रम्

प्रथयति पूतनिकैव वधुवधनिर्द्दयवालचरित्रम् || 7 ||

 

श्री जय देव भणित रति वञ्चत खण्डितयुवतिविलापम्

शृणुत सुधामधुरं विवुधा विवुधालयतोपि दुरापम् || 8 ||

 

¤ षोड़श पाहाच ¤

 

हरिरभिसरति वहति मधुपवने

किमपरमधिकसुखं सखि भुवने

माधवे मा कुरु मानिनि मानयये || 1 ||

 

तालफलादपि गुरुमतिसरसम्

किं विफलिकुरुषे कुचकलसम् || 2 ||

 

कति कथितमिमनुपदमचिरम्

मा परिहर हरिमतिशयरुचिरम् || 3 ||

 

किमिति विषीदसि रोदिषि विकला

विहसति युवतिसभा तव सकला || 4 ||

 

मृद नलिनीदल शीतल सयने

हरिमवलोकय सफलय नयने || 5 ||

 

जनयसि मनसि किमिति गुरुखेदम्

सृणु मम वचन मनीहितभेदम् || 6 ||

 

हरिरुपयातु वदतु वहु मधुरम्

किमाति करोषि हृदयमतिविधुरम् || 7 ||

 

श्री जय देव भणितमतिललितम्

सुखयतु रसिकजनं हरिचरितम् || 8 ||

 

¤ सप्तदश पाहाच ¤

 

वदसि यदि किञ्चदपि दन्तरुचिकौमुदी हरति दरतिमिरमतिघोरम्

स्फुरदधरसीथवे तव वदनचन्द्रमा रोचयति लोचनचकोरम् |

 

प्रिये चारुशीले प्रिये चारुशीले मुञ्चमयिमानमनिदानम्

सपदि मदनानलो दिहति मम मानसं देहि मुखकमलमधुदानम् || 1 ||

 

सत्यमेवासि यदि सुदति मयि कोपिनी

देहि खरनखरशरघातम्

घटय भुजवन्द्दनं जनय रदखण्डनं

येन वा भवति सुखजाम् || 2 ||

 

त्वससि मम भुषणं त्वमसि मम जिवनं

त्वमसि मम भवजलधिरत्नम्

भवतु भवतिह मयि सततमनुरोधिनी

तत्र मम हृदयमतियत्नम् || 3 ||

 

निलमलिनाभमपि तन्वि ! तव लोचनं

धारयति कोकनदरूम्

कुसुमशरवाणभावेन यदि रञ्जयसि

कृष्णमिदमेतदनुरुपम् || 4 ||

 

स्फुरतु कुचकुम्भयोरुपरि मणि मञ्जरी

रञ्जयतु तव हृदयदेशम्

रसतु रसनापि तव घनजधनमण्डले

घोषायतु मन्मथनिशम् || 5 ||

 

स्थलकमलगञ्जनं मम हृदयरञ्जनं

जनितरतिरग्डंपरभागम्

भण मसृणवाणि करवाणि चरणद्वयं

सरसलसदलक्तकरागम् || 6 ||

 

स्मरगरलखण्डनं मम सिरसि मण्डनं

देहि पदपल्लवमुदारम्

ज्वलति मयि दारुणो मदनकदनारुण

हरतु तवुपाहितविकारम् || 7 ||

 

इति चटुलीचाटुपटुचारुमुरवैरिणो

राधिकामधिवचनजातम्

जयति जय देव कवि भारती भुषितं

मानिनीजनजनितशातम् || 8 ||

 

¤ अष्टादश पाहाच ¤

 

विरचितचाटुवचनरचनं चरणे यचित प्रणिपातम्

 

स्र-ति मञ्चुलवञ्जुलसीमनि केलिशयनमनजातम् |

गुग्धे मधुमथनमनुगतसर राधिके || 1 ||

 

घनजघनस्तनभारभरे दरमन्थरचरणविहारम्

मुखरितमणिमञ्जिरमुपैह विधेहि मरालविकारम् || 2 ||

 

शृणु रमणीयतरं तरुणीजनमोहनमधुरिपुरावम्

सुमनशरासनशासनवन्दिनि पिकनिकरे मजभावम् || 3 ||

 

अनिलतरलकिशलयनिकरेण करेण लतानिकुम्भम्

प्ररणमिव करभोरु करोति गतिं प्रतिमुञ्च विलम्वम् || 4 ||

 

स्फुरतमनग्डंतग्डंवशादिव सूचितहरिपरिरम्भम्

पच्छ मनोहरहारविमलजलधारममुं कुचकुम्भम् || 5 ||

 

अधिगतमशिल सखीभिरिदं तव वपुरपि रतिरणसज्जम्

चण्डि ! रसितरसनारवडिण्डिममभिसर सरसमलज्जम् || 6||

 

स्वरशरमुभगनखेन करेण सरीमवलम्व्य सलीलम्

चलवलयक्वणितैरववोधय हरिमपि निजगतिशीलम् || 7 ||

 

श्री जय देव भणितमधरीकृत हारमुदासितवामम्

हरिविनहितमनसामधितिष्ठतु कण्ठमभिराम् || 8 ||

 

¤ उनविँश पाहाच ¤

 

मञ्जुतर कुञ्जतल केलि सदने

 

विलस रतिरभसहशितवदने |

प्रविश राधे माधव समीपभिह || 1 ||

 

नवभववशोकदल शयनसारे

विलस कुचकलसतयलहारे || 2 ||

 

कुसुमचयरचित शुचि वास गेहे

विलस कुसुमसुकुमारदेहे || 3 ||

 

चलमलयपवन सुरभिशीते

विलस मदनशरनिकरभीते || 4 ||

 

विततवहुवल्लिनवपलुवघने

विलस चिरमिलितपीनजघने || 5 ||

 

मधुमुदित मधुपकुलकलितरावे

विलस मदनरससरसभावे || 6 ||

 

मधुतरपिकनिकर निनदमुखरे

विलस दशनरुचिरुचिरशिखरे || 7 ||

 

विहित पद्मावती सुख समाजे

भणित जय देव कवि राजराजे || 8 ||

 

¤ विँशतितम पाहाच ¤

 

राधावदनविलोकनविकसितविविधविकारविभग्डंम्

जलनिधिमिव विधुमण्डलदर्शन तरलिततग्डंतरग्डंम् |

 

हरिमेकरसं चिरमभिलसितविलासम् |

सा ददर्श गुरुहर्षवशंवद वदनमनग्डंनिवासम् || 1 ||

 

हारममलतरतारमुरसि दधतं परिरभ्य विदूरम्

स्फुटतरफेनकदम्वकरम्वितमिव यमुनाजलपुरम् || 2 ||

 

श्यामलमृदुलकलेवरमण्डलमधिगतगौरदुकुलम्

नीलनलिनभिव पीतपरागपटलभरवलयितमूलम् || 3 ||

 

तरलदृगञ्चलचलनमनोहरमदनजनितरतिरागम्

स्फुटकमलोदरखैलितखञ्जनयगमिव शरदि तड़ागम् || 4 ||

 

वदनकमल परिशीलनमिलत मिहिरसमकुण्डलशोभम् || 5 ||

शशिकिरणच्छुरितोदर जलधरसुन्दर सकुसुम केशम्

तिमिरोदितवाधुमण्डलनिर्मलमलयजतिलाकनिदेशम् || 6 ||

 

विपुलपुलकभरदन्तुरितं रतिकेलिकलाभिरधीरम्

मणिपणकिरणसमुह समुज्वलभूषणसुभगशरीरम् || 7 ||

 

श्री जय देव भणित विभव द्विगुणीकृत भुषणभारम्

प्रणमत हृदि सुचिरं विनिधाय हरिं सुकृतोदयसारम् || 8 ||

 

¤ एकविंशतितम पाहाच ¤

 

किसलयसयनतले कुरु कामिनि चरणनलिनविनिवेशम् |

क्षणमधुना नारायणमनुगतमनुसर मां राधिके || 1 ||

 

करलमलेन करोमि चरणमहमागतासि विदूरम् |

क्षणमुपकुरु सयनोपरि मामिव नूपुरमनुगतशूरम् || 2 ||

 

वदनसुधानिगलितममृतमिव रचय वचनमनुकूलम्

प्रिय परिरम्भणरभसवलितमिव पुलकितमतिदूरवापम् || 4 ||

 

अधरसुधारसमुपनय भाविनि जीवय मृतमिव दासम्

त्वयि विनिहितमनसं विरहानलदग् धवपुषमविलासम् || 5 ||

 

शशिमुख मुखरय मणि रसनागुणमनुगुणकनिनादम्

श्रुतिपुटयुगले पिकरुतविकले शमय चिरादवसादम् || 6 ||

 

मामति विफलरुषा विकलीकृतमवलोकितुमधुनेदम्

मीलितलज् जितमिव नयनं तव विरम विसृज रतिखेदम् || 7 ||

 

श्री जय देव भणितमिदमनुपदनिगदितमधुरिपुमोदम्

जनयतु रसिकजनेषु मनोरमरतिरसभावनिनोदम् || 8 ||

 

¤ द्वाविँशतितम पाहाच ¤

 

कुरु यदुनन्दन चन्दनशिशिरतरेण करेण पयोधरे

 

मृगमदपत्रकमत्र मनोभवमग्डंलकलशसहोदर |

निजगाद सा यदुनन्दने क्रीतति हृदयानन्दने || 1 ||

 

अलिकुलगञ्जनसञ्जनकं रतिनायकसायकमोचने

त्वदधरचुम्वनलम्वितकज्वलमुज्ज्वलय प्रियलोचने || 2 ||

 

नयनकुरग्डंतग्डंविलासनिरोधकरे शृतिमण्डले

मनसिजपाशविलासधरे शुभवेश नावेशय कुण्डले || 3 ||

 

भ्रमरचयं रचयन्तमुपरि रुचिरं सुचिरं मम सम्मुखे

जितकमले विमले परिकर्मय नर्मजने कमलकं मुखे || 4 ||

 

मृगमदरसवलितं ललितं कुरु तिलकमलिनरजनीकरे

विहितकलक्कंकलं कमलानन विश्रमितश्रमशीकरे || 5 ||

 

मम रुचिरे चिकुरे कुरु मानद मनसिजध्वजचामरे

रतिचालिते ललिते कुसुमानि शिखण्डिशिखण्डकड़ामरे || 6 ||

 

सरसघने जघने मम शम्वरदारणवारणकन्दरे

मणिरसनावसनाभरणानि शुभाशय वासय सुन्दरे || 7 ||

 

श्री जय देव वचसि रुचिरे हृदयं सदयं कुरु मण्डने

हरिचरणस्मरणामृतनिर्मित तलिकलुषज्वरखण्डने || 8 ||

 

समर्पण

 

श्री भोज देव प्रभवस्य

वामादेवीसूत श्री जयदेवकस्य

परासरादि प्रियवर्गकण्ठे

प्रवन्धनाचय कवित्वमस्तु ||

 

 

अलसनिमिलितलोचनया पुलकावलिललितकपोलम् |

श्रमजलसिक्तकलेवरया वरमदनमदादतिलोलम् || 4 ||

 

स्तनविनिहितमपि हारमुदारम्

सा मनुते कृशतनुरिव भारम् |

राधिका तव विरहे केशव || 1 ||

 

कथित समयेपि हरिरहह जजौ वनम्

मम विफलमिदममलरूप नवजौवनम्

जामि हे कमिह शरणं सखीजनवचनवच्ञिता || 1 ||

 

अनिलतरलकुवलयनयनेन

तपति सा किशलयशयनेन

सखि जा रमिता वनमालिनी || 1 ||

 

राधावदनविलोकनविकसितविविधविकारविभग्गंम्

लनिधिमिव विधुमण्डलदर्शन तरलिततुग्डंतरग्गंम् |

हरिमेकरसं चिरमभिलसितविलासम् |

सा ददर्श गुरुहर्षवशंवद वदनमनग्डंनिवासम् || 1 ||

 अलिकुलगज्ज़नसज्ज़नकं रतिनायकसायकमोचने   ]




श्रीजय देवंक वाइशि पाहाच 

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