#महाकुंभ_में_आ_रहे_लोगों_के_लिए_सूचनार्थ
🔴 पहुंचे कैसे?
अगर आप प्रयागराज आ रहे हैं तो कुछ स्थान जिनके नाम आपको पता होने चाहिए।
#चुंगी 😗 यह आखिरी स्थान है जहां तक ऑटो जा सकती है। मेला क्षेत्र यहां से लगभग 3 km है। शाही स्नान के दिन ऑटो यहां तक नहीं आती।
#बैंक_रोड 😗 यह प्रयाग जंक्शन के सबसे पास की जगह है। यहां से आपको कानपुर, लखनऊ, बलिया, गोरखपुर, आदि की बसें भी मिलेंगी। शाही स्नान के दिन यहां से आगे ऑटो जाने की अनुमति नहीं है।
#सिविल_लाइंस 😗 यहां से आपको रोडवेज बसें मिलेंगी सभी स्थानों के लिए।
#बालसन_चौराहा 😗 इसके पास ही भरद्वाज पार्क और आश्रम है, सिविल लाइंस की तरफ से आपको यहां तक कि ऑटो मिल सकती है।
आपके लिए 5 मुख्य रेलवे स्टेशन हैं जहां आपको उतारा जाएगा।
- प्रयागराज जंक्शन
यहां उतरने के बाद आप सिविल लाइंस जा सकते हैं और वहां से आपको बालसन चौराहे तक की ऑटो मिल सकती है। आपको सरकारी बस भी मिल सकती है लेकिन फ्री होने के कारण उसमें भीड़ अधिक रहेगी।
-प्रयागराज संगम
यह मेला क्षेत्र के सबसे नजदीक का स्टेशन है, यहां से मेला क्षेत्र मात्र 1km से थोड़ा अधिक पड़ेगा। ध्यान रहे शाही स्नान और कुछ विशेष दिनों पर यह स्टेशन बंद रहेगा।
-प्रयाग जंक्शन
यह स्टेशन लगभग 5km है अगर आप यहां उतरते हैं तो यहां से आपको पैदल ही मेला क्षेत्र तक जाना पड़ेगा, रात्रि के समय आपको ऑटो मिल सकती है।
- फाफामऊ
यह स्टेशन प्रयाग जंक्शन से पहले पड़ता है, यहां से उतरकर आप बैंक रोड जा सकते हैं और फिर वहां से मेला क्षेत्र में पैदल जाना पड़ेगा।
-प्रयागराज छिवकी
यहां से आपको बालसन चौराहे की तरफ आना पड़ेगा। बाहर निकलते ही ऑटो मिल जाएगा।
आप बैंक रोड से सीधा पैदल जा सकते हैं या फिर सिविल लाइंस से ऑटो पकड़ कर चुंगी या बैंक रोड जा सकते हैं।
🔴रहने की व्यवस्था:
आपको स्टेशन के बाहर बहुत सारे होटल और लॉज मिल जाएंगे, इनका किराया थोड़ा ज्यादा होगा अगर आपका बजट कम है तो आपको डोरमेट्री मिल जाएगी, जिसका किराया आपको 300-1000 तक रहेगा। कई सारे रैन बसेरा भी हैं जो अलग अलग संस्थाओं द्वारा लगाए गए हैं। ये सब आपको मेला क्षेत्र में ही मिलेंगे।
🔴 खाने की व्यवस्था:
प्रयाग आने के बाद आपको खाने के लिए नहीं सोचना पड़ेगा, आप बैंक रोड से या बालसन चौराहे से आगे निकलेंगे तो हर 500 मीटर पर एक भंडारा मिलेगा। कई जगह कचौड़ी सब्जी, छोला चावल, खिचड़ी आदि आपको मिलेंगी।
इसके अतिरिक्त आप @Swiggy और @zomato से भी ऑर्डर कर सकते हैं। (No paid promotion) लेकिन इनकी डेलिवरी चुंगी क्षेत्र के उस तरफ नहीं होगी।
अगर आप फाफामऊ उतरते हैं तो आप गंगा जी के किनारे बनी रोड से भी मेले में जा सकते हैं। इसपर भीड़ कम रहेगी लेकिन ये रास्ता थोड़ा लंबा पड़ेगा। इसके किनारे तीन प्रमुख मंदिर हैं। इसी रास्ते पर आपको नारायणी आश्रम और नागवासुकी मंदिर भी मिलेंगे।
🔴 इन बातों का विशेष ध्यान रखें।
- बहुत छोटे बच्चों को लेकर न आएं।
- आपको पैदल चलना पड़ेगा इसलिए बहुत ज्यादा सामान लेकर न आएं।
- अपने फोन और पर्स का विशेष ध्यान रखें।
- सभी लोगों को एक फोन नंबर लिख कर अवश्य दें।
- आपके आस पास कई पुलिस वाले रहेंगे। अगर कोई खो जाता है तो जाकर अनाउंसमेंट करवाएं। इसमें पुलिस वाले आपकी सहायता करेंगे।
- मेला क्षेत्र में एक हॉस्पिटल भी बनाया गया है, यदि आवश्यकता हो तो किसी पुलिस वाले से संपर्क करें।
- नहाते वक्त फोन अपने सामान का विशेष ध्यान रखें क्योंकि उस समय संगम के किनारे भीड़ अधिक हो जाती है और इसलिए दिक्कत हो सकती है।
यहां आप रास्ता नहीं भटकेंगे बस भीड़ जिस तरफ जा रही हो आप भी उसी तरफ चलते रहें।
बाकी भगवान पर भरोसा रखिए, प्रयागराज पहुंचिए, कुंभ नहाइए।
जय गंगा मैया
हर हर महादेव
गुरुवार, 23 जनवरी 2025
महाकुंभ में आ रहे लोगों के लिए सूचनार्थ
बुधवार, 22 जनवरी 2025
हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य?
❤️हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य?
🙏स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। 😱हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है।स्वस्तिक को ऋग्वेद की ऋचा में सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्तसार नामक ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।
मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं।
स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है। इसमें जो 4 बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ दिशाओं का प्रतीक : स्वस्तिक सभी दिशाओं के महत्व को इंगित करता है। इसका चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं- अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है।
चार वेद, पुरुषार्थ और मार्ग का प्रतीक : हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण 4 सिद्धांत धर्म, अर्थ काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है। चार वेद का प्रतीक- ऋग्, यजु, साम और अथर्व। चार मार्ग ज्ञान, कर्म, योग और भक्ति का भी यह प्रतीक है। जीवन चक्र और आश्रमों का प्रतीक : यह मानव जीवन चक्र और समय का प्रतीक भी है। जीवन चक्र में जन्म, जवानी, बुढ़ापा और मृत्य यथाक्रम में बालपन, किशोरावस्था, जवानी और बुढ़ापा शामिल है। यही 4 आश्रमों का क्रम भी है- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास।
युग, समय और गति का प्रतीक : स्वस्तिक की 4 भुजाएं 4 गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं वहीं समय चक्र में मौसम और काल शामिल है। यही 4 युग का भी प्रतीक है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। स्वास्तिक हमेशा लाल रंग का ही बनाया जाता है, पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है। वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है। धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्टी देता हैद्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है।
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महाकुंभ 2025
🚩महाकुंभ 2025🚩
महाकुंभ में कल्पवास की क्या है प्रक्रिया-महत्व, जानिए एक माह में कितने वर्षों का मिलता है पुण्य
सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होता है एक मास का कल्पवास, इसकी अवधि भी अलग-अलग
महाकुंभ में कल्पवास का महत्व.
महाकुंभ में कल्पवास का महत्व
प्रयागराज: क्या है संगम पर कल्पवास की कहानी? क्यों रखते हैं यह व्रत? बिना कुंभ के भी हर वर्ष संगम नगरी में लाखों श्रद्धालु कैसे करते हैं कल्पवास? क्या है इसकी विधि और क्या करना और क्या नहीं करना होता है इसमें? कल्पवासियों और इसके विषय में बताती ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट...एक माह में ही मिल जाता है करोड़ों वर्षों का पुण्य:ऐसा माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है, जितना पुण्य प्राप्त होता है. मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का माध्यम है. संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को ही कल्पवास कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिल जाती है. महाभारत के अनुसार 100 साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल के बराबर ही माघ मास में कल्पवास करने से पुण्य प्राप्त हो जाता है. कल्पवास के समय साफ-सुथरे सफेद या पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं. शास्त्रों की मान्यता के मुताबिक कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है, वहीं तीन रात्रि, तीन माह, छह माह, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है. महाकुंभ की अवधि में कल्पवास का महत्व और ज्यादा हो जाता है. इसका जिक्र वेदों और पुराणों में भी है.
महाकुंभ में कल्पवास का महत्व.आसान नहीं है कल्पवास की प्रक्रिया:कल्पवास की प्रक्रिया आसान बिल्कुल भी नहीं है. जाहिर है मोक्षदायनी की ये विधि एक बेहद कठिन साधना है. इसमें पूरे नियंत्रण और संयम की जरूरत होती है. पद्म पुराण में इसका जिक्र करते हुए महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के नियमों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है. 45 दिन तक कल्पवास करने वाले को 21 नियमों का पालन करना होता है. पहला नियम सत्यवचन, दूसरा अहिंसा, तीसरा इन्द्रियों पर नियंत्रण, चौथा सभी प्राणियों पर दयाभाव, पांचवां ब्रह्मचर्य का पालन, छठा व्यसनों का त्याग, सातवां ब्रह्म मुहूर्त में जागना, आठवां नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान, नवां त्रिकाल संध्या, दसवां पितरों का पिण्डदान, 11वां दान, बारहवां अन्तर्मुखी जप, तेरहवां सत्संग, चौदहवां संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, पंद्रहवां किसी की भी निंदा न करना, सोलहवां साधु सन्यासियों की सेवा, सत्रहवां जप और संकीर्तन, अठाहरवां एक समय भोजन, उन्नीसवां भूमि शयन, बीसवां अग्नि सेवन न कराना, इक्कीसवां देव पूजन. इनमें सबसे अधिक महत्व ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान का माना गया है.क्या करते हैं कल्पवास करने वाले:कल्पवास के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया जाता है. कल्पवास करने वाला अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपता है. जब ये अवधि पूरी हो जाती है तो वे इस पौधे को अपने साथ ले जाते हैं, जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. पुराणों में बताया गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करें. महाभारत के एक प्रसंग में जिक्र है कि मार्कंडेय ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है. एक महीना कोई भी इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, वह स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है.क्या कहते हैं संत सुभाषदास :प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचे अयोध्या तपस्वी छावनी के संत सुभाष दास का कल्पवास को लेकर कहना है कि पहले ये जानिए कि कल्पवास का अर्थ होता है. एक कल्प होता है चार अरब 32 करोड़ वर्ष का. तो जो एक महीना प्रयागराज में रहकर और अपना खाकर सत्यता के साथ हर दिन कुछ दान करे, छल कपट को त्याग दे, निश्छल मन से यहां पर वास करे, एक माह लगातार स्नान करेगा, उसको चार अरब 32 करोड़ वर्ष का पुण्य मिल जाएगा. यह सिर्फ एक महीने में ही संभव हो जाएगा.
देवलोक में भी होता है महाकुंभ:सुभाष दास इसके पीछे पौराणिक कथा बताते हैं. कहते है-राक्षसों और देवताओं में जब अमृत को लेकर मंथन हुआ और खूब झगड़ा हुआ तब विष्णु भगवान विश्व मोहिनी के रूप में अमृत लेकर आए. राक्षस विश्व मोहिनी मूरत पर ही रीझ गए. इसके बाद राक्षसों ने सोचा कि यह सुंदरी मिल जाए. तब तक माताजी ने देवताओं को अमृत परोस दिया. राहु केतु समझ गए और उन्होंने कहा कि यह छल किया गया है. उसके बाद जयंत राक्षस अमृत लेकर भागा था तो देवताओं ने उसका पीछा किया और छीनाझपटी में भारत में चार जगह अमृत गिरा. आखिर 12 वर्ष बाद कुंभ क्यूं होता है, इसकी वजह है कि राक्षसों और देवताओं में 12 दिन का युद्ध चला और 12 दिन के युद्ध का अर्थ हो जाता है कि पृथ्वी का 12 बरस, इसलिए 12 वर्ष में महाकुंभ होता है. चार जगह यहां और आठ जगह देवलोक में भी हैं, वहां भी महाकुंभ आयोजित होता है.कल से 10 लाख श्रद्धालु करेंगे संगम तट पर कल्पवास, लगे 1.6 लाख टेंटत्रिवेणी संगम तट पर सनातन आस्था के महापर्व महाकुम्भ का कल से शुभारंभ हो रहा है. 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में अमृत स्नान करेंगे. इसके साथ ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम तट पर महाकुम्भ की प्राचीन परंपरा कल्पवास का निर्वहन करेंगे. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालु एक माह तक नियमपूर्वक संगम तट पर कल्पवास करेंगे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने विशेष इंतजाम किए हैं. कल्पवास पौष पूर्णिमा से शुरू होगा. महाकुम्भ 2025 में लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं के कल्पवास करने का अनुमान है. शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक कल्पवास, पौष पूर्णिमा की तिथि से शुरू हो कर माघ पूर्णिमा की तिथि तक पूरे एक माह तक किया जाता है. इस महाकुम्भ में कल्पवास 13 जनवरी से शुरू होकर 12 फरवरी तक संगम तट पर किया जाएगा. शास्त्रों के मुताबिक कल्पवास में श्रद्धालु नियमपूर्वक, संकल्पपूर्वक एक माह तक संगम तट पर निवास करते हैं. कल्पवास के दौरान श्रद्धालु तीनों काल गंगा स्नान कर, जप, तप, ध्यान, पूजन और सत्संग करते हैं.मेला प्राधिकरण ने कल्पवासियों के लिए किए विशेष इंतजाम :कल्पवास का निर्वहन करने के लिए प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने सभी जरूरी इंतजाम किए हैं. मेला क्षेत्र में गंगा तट पर झूंसी से लेकर फाफामऊ तक लगभग 1.6 लाख टेंट कल्पवासियों के लिए लगवाए गए हैं. इन सभी कल्पवासियों के टेंटों के लिए बिजली, पानी के कनेक्शन के साथ शौचालयों का निर्माण करवाया गया है. कल्पवासियों को अपने टेंट तक आसानी से पहुंचने के लिए चेकर्ड प्लेटस् की लगभग 650 किलोमीटर की अस्थाई सड़कों और 30 पांटून पुलों का निर्माण किया गया है. कल्पवासियों को महाकुम्भ में सस्ती दर पर राशन और सिलेंडर भी उपल्ब्ध करवाया जाएगा. गंगा स्नान के लिए घाटों का निर्माण किया गया है. सुरक्षा के लिए जल पुलिस और गंगा नदी में बैरीकेड़िंग भी की गई है. ठंड से बचाव के लिए अलाव और स्वास्थ संबंधी समस्या दूर करने के लिए मेला क्षेत्र में अस्पतालों का भी निर्माण किया गया है।
एक खतरनाक साजिश की सच्चाई
🔸“संयुक्त परिवार को तोड़कर उपभोक्ता बनाया गया भारत: एक खतरनाक साजिश की सच्चाई* ⚡“जब परिवार टूटते हैं, तभी बाजार फलते हैं” — ये सिर्फ विच...
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सङ्कीर्त्तनयोग SANKIRTAN YOG भाव, प्रेम तथा श्रद्धा के साथ भगवान् के नाम का गायन करना सङ्कीर्त्तन है । सङ्कीर्त्तन मेँ लोग एकसाथ मिल कर ...
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हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक बच्चों के बारे में बताया गया है जिन्होंने कम उम्र में ही कुछ ऐसे काम किए, जिन्हें करना किसी के बस में नहीं थ...
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बिजली का बिल ज्यादा क्यों आता है, जबकि आपने ज्यादा कुछ इस्तेमाल नहीं किया ये है इसके 7 छुपे कारण कई बार हम महीने भर सोचते हैं कि हमने पंखा,...
