बुधवार, 10 दिसंबर 2025

एक खतरनाक साजिश की सच्चाई

 

🔸“संयुक्त परिवार को तोड़कर उपभोक्ता बनाया गया भारत: एक खतरनाक साजिश की सच्चाई*

⚡“जब परिवार टूटते हैं, तभी बाजार फलते हैं” — ये सिर्फ विचार नहीं, पूरी रणनीति है l*

🌍भारत की सबसे मजबूत चीज क्या थी?*

*भारत पर मुग़ल आए, अंग्रेज़ आए, और कई हमलावर आए — लेकिन एक चीज़ कभी नहीं टूटी:-*

👉 हमारा संयुक्त परिवार।*
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🔅3 पीढ़ियाँ एक छत के नीचे
🔅 बुज़ुर्गों का अनुभव
🔅बच्चों में संस्कार
🔅खर्च में सामूहिकता
🔅त्यौहारों में गर्माहट

" यह हमारी असली “Social Security” थी। कोई पेंशन की ज़रूरत नहीं थी, कोई अकेलापन नहीं, कोई Mental Health Crisis नहीं।*

💣 पश्चिम को यह चीज़ क्यों खटकने लगी?*

*पश्चिमी देश उपनिवेशवादी रहे हैं — उनके लिए बाज़ार सबसे बड़ा धर्म है।*

*लेकिन भारत जैसा देश, जहाँ लोग साझा करते हैं, कम खर्च करते हैं, और सामूहिक सोच रखते हैं — वहां वे अपने उत्पाद बेच ही नहीं पा रहे थे।*

❇️इसलिए एक शातिर रणनीति बनाई गई:-*

*“इनके परिवार ही तोड़ दो, हर कोई अकेला हो जाएगा, और हर कोई ग्राहक बन जाएगा।”*

🚩कैसे हुआ ये हमला?*

📺 1. मीडिया के ज़रिए*

*संयुक्त परिवार को “झगड़ों का अड्डा”, “बोझ” और “रुकावट” के रूप में दिखाया गया।*
*न्यूक्लियर परिवार को “फ्रीडम”, “मॉर्डन”, “Self-made” बताकर  ग्लैमराइज किया गया।*
*याद कीजिए: टीवी पर कितने शो हैं जहां बहू-सास की लड़ाई दिखती है, और सॉल्यूशन होता है – “अलग हो जाओ!”*
*🛍️ 2. उपभोक्तावाद के ज़रिए*
*जब हर जोड़ा अलग रहने लगा:-*
🔅 *1 परिवार = अब 4 घर*
🔅  *1 टीवी = अब 4 टीवी*
🔅 *1 रसोई = अब 4 किचन सेट*
🔅 *1 कार = अब 4 स्कूटर + 2 कार*
*बाजार में बूम आ गया – और समाज में टूटन।*
*भारत में क्या हुआ इस “सोचलेवा हमले” के बाद?*

*📉 सामाजिक पतन:-*
*🔹बुज़ुर्ग अब बोझ हैं*
*🔹बच्चे अकेले हैं (और स्क्रीन में गुम)*
*🔹 रिश्तेदार “उपलब्ध नहीं” हैं*
*🔹संस्कारों की जगह “Influencers” ने ले ली*
*🤯 मानसिक स्वास्थ्य संकट:-*
*🔹पहले जो बात नानी-दादी से होती थी, अब काउंसलर से होती है*
*🔹अकेलापन अब इलाज़ मांगता है, पहले प्यार से दूर होता था*
*📦 बाजार का फायदे:-*
🔅 *हर समस्या का एक उत्पाद*
🔅 *हर भावना का एक ऐप*
🔅 *हर उत्सव का एक* “ *ऑनलाइन ऑर्डर* ”*
*“संस्कार की जगह सब्सक्रिप्शन ने ले ली है”*
*🚩आज का सवाल — हम क्या बनते जा रहे हैं?*
*हमने “आधुनिकता” की दौड़ में:-*
*🔸संयुक्तता को “Outdated” कहा*
*🔸माता-पिता को “Obstacles” कहा*
*🔸परिवार को “फालतू भावना” कहा*
*🔸रिश्तों को “Unfollow” कर दिया*
*🚩लेकिन क्या आपने सोचा?*
*🤔Amazon का फायदा तभी है जब आप Diwali पर अकेले हों — और Shopping करें, परिवार के साथ न बैठें।*
*🤔Zomato तभी कमाता है जब कोई माँ का खाना नहीं खा रहा।*
*🤔Netflix तभी देखेगा जब कोई दादी की कहानी नहीं सुन रहा।*
*🧭 समाधान: हम अभी भी वापसी कर सकते हैं*
*✔️संयुक्त परिवार को पुनः “संपत्ति” मानें, बोझ नहीं।*
*✔️बच्चों को उपभोक्ता नहीं, संस्कारी इंसान बनाएं।*
*✔️बुज़ुर्गों को घर से बाहर न करें — उनके अनुभव हर Google Search से ऊपर हैं।*
*✔️ त्यौहार मनाएं, सामान नहीं।*
*✔️अकेलापन कम करने के लिए App नहीं, अपनापन बढ़ाइए।*
*🔚 निष्कर्ष:-*
*“पश्चिम ने व्यापार के लिए परिवार तोड़े,और हम ‘आधुनिक’ बनने के लिए अपना वजूद बेच आए।”*
*अब समय है रुकने का, सोचने का, और अपने संस्कारों को फिर से अपनाने का — नहीं तो अगली पीढ़ी को ‘संयुक्त परिवार’ शब्द का अर्थ बताने के लिए भी शायद Google की ज़रूरत पड़ेगी।



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शुक्रवार, 9 मई 2025

बिजली का बिल ज्यादा क्यों आता है, जबकि आपने ज्यादा कुछ इस्तेमाल नहीं किया ये है इसके 7 छुपे कारण

 बिजली का बिल ज्यादा क्यों आता है, जबकि आपने ज्यादा कुछ इस्तेमाल नहीं किया ये है इसके 7 छुपे कारण


कई बार हम महीने भर सोचते हैं कि हमने पंखा, AC या वॉशिंग मशीन बहुत कम इस्तेमाल की लेकिन जब बिजली का बिल आता है, तो आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। तो ऐसा क्यों होता है? क्या मीटर तेज़ चलता है? या कुछ और गड़बड़ी है?


चलिए जानते हैं उन छुपे कारणों को, जो बिना जाने ही बिजली का बिल बढ़ा देते हैं


1. बंद होने के बाद भी बिजली खपत करने वाले उपकरण


क्या आप जानते हैं कि TV, मोबाइल चार्जर, वाई-फाई राउटर, माइक्रोवेव जैसे कई उपकरण ऑफ होने के बाद भी बिजली खाते रहते हैं? इन्हें “phantom load” या “standby power” कहते हैं।


example: टीवी का रिमोट सेंसर चार्जर प्लग में लगे रहना सेट टॉप बॉक्स ऑन न होने पर भी इनसे हर महीने 30-100 यूनिट तक बिजली खर्च हो सकती है।


2. पुराना मीटर या तेज़ चलता स्मार्ट मीटर


अगर आपके घर में पुराना या नया स्मार्ट मीटर है, तो ध्यान दें कभी-कभी मीटर की कैलिब्रेशन बिगड़ जाती है। स्मार्ट मीटर में रियल टाइम रीडिंग होती है, जिससे छुपी हुई खपत सामने आ जाती है जरूरी है कि आप एक बार मीटर को डिस्कनेक्ट करके चेक करें कि वह बिना लोड के भी घूम तो नहीं रहा।


3. रात भर चलने वाले उपकरण


इनवर्टर, वाई-फाई राउटर, मोबाइल चार्जर फ़्रिज, डीप फ़्रीज़र पानी की मोटर अगर ऑटोमैटिक नहीं है ये उपकरण दिन-रात चलते हैं और आपको लगता है कि आपने ज्यादा कुछ चलाया नहीं, लेकिन 24x7 का असर बिल में दिखता है।


4. इनवर्टर और बैटरी भी खपत करते हैं बिजली


अगर आपके घर में इनवर्टर लगा है, तो उसकी बैटरी चार्जिंग भी हर दिन 1–2 यूनिट ले लेती है।

और अगर लाइट बार-बार जाती है, तो इनवर्टर उतना ही ज़्यादा रिचार्ज होता है यानि ज़्यादा बिल।


5. छिपी हुई लीकेज (Earth leakage)


पुरानी वायरिंग या ख़राब सर्किट में Earth Leakage होती है  यानि बिजली बिना आपकी जानकारी के ज़मीन में चली जाती है और मीटर उसे भी गिनता है। इसका पता Earth Leakage Circuit Breaker (ELCB) से लगाया जा सकता है।


6. Sub-meter वाले फ्लैट्स या PGs में गड़बड़ी


अगर आप अपार्टमेंट, फ्लैट या रेंट पर हैं और आपके पास सब-मीटर है, तो कभी-कभी बिल अन्य घरों की खपत से जोड़कर बनाया जाता है।

जरूरी है कि आप मीटर की रीडिंग हर हफ्ते नोट करें।


7. AC, हीटर, गीज़र जैसी चीजें कुछ घंटे में ही बहुत बिजली खा जाती हैं


आपको लगता है कि "सिर्फ 2 घंटे AC चलाया" पर जान लीजिए कि एक 1.5 टन का AC हर घंटे 1.5 यूनिट खपत करता है। यानि 2 घंटे = 3 यूनिट = महीने में 90 यूनिट!


समाधान क्या है?


हर हफ्ते मीटर की रीडिंग नोट करें बिना इस्तेमाल वाले उपकरणों को प्लग से निकालें Smart plug या energy monitor लगाएं Electrician से लीकेज चेक कराएं बिल में दर्ज यूनिट और मीटर की रीडिंग मिलाएं।





गुरुवार, 23 जनवरी 2025

महाकुंभ में आ रहे लोगों के लिए सूचनार्थ

 #महाकुंभ_में_आ_रहे_लोगों_के_लिए_सूचनार्थ


🔴 पहुंचे कैसे?

अगर आप प्रयागराज आ रहे हैं तो कुछ स्थान जिनके नाम आपको पता होने चाहिए।


#चुंगी 😗 यह आखिरी स्थान है जहां तक ऑटो जा सकती है। मेला क्षेत्र यहां से लगभग 3 km है। शाही स्नान के दिन ऑटो यहां तक नहीं आती।


#बैंक_रोड 😗 यह प्रयाग जंक्शन के सबसे पास की जगह है। यहां से आपको कानपुर, लखनऊ, बलिया, गोरखपुर, आदि की बसें भी मिलेंगी। शाही स्नान के दिन यहां से आगे ऑटो जाने की अनुमति नहीं है।


#सिविल_लाइंस 😗 यहां से आपको रोडवेज बसें मिलेंगी सभी स्थानों के लिए। 


#बालसन_चौराहा 😗 इसके पास ही भरद्वाज पार्क और आश्रम है, सिविल लाइंस की तरफ से आपको यहां तक कि ऑटो मिल सकती है।


आपके लिए 5 मुख्य रेलवे स्टेशन हैं जहां आपको उतारा जाएगा।


- प्रयागराज जंक्शन

यहां उतरने के बाद आप सिविल लाइंस जा सकते हैं और वहां से आपको बालसन चौराहे तक की ऑटो मिल सकती है। आपको सरकारी बस भी मिल सकती है लेकिन फ्री होने के कारण उसमें भीड़ अधिक रहेगी।


-प्रयागराज संगम

यह मेला क्षेत्र के सबसे नजदीक का स्टेशन है, यहां से मेला क्षेत्र मात्र 1km से थोड़ा अधिक पड़ेगा। ध्यान रहे शाही स्नान और कुछ विशेष दिनों पर यह स्टेशन बंद रहेगा।


-प्रयाग जंक्शन 

यह स्टेशन लगभग 5km है अगर आप यहां उतरते हैं तो यहां से आपको पैदल ही मेला क्षेत्र तक जाना पड़ेगा, रात्रि के समय आपको ऑटो मिल सकती है। 


- फाफामऊ 

यह स्टेशन प्रयाग जंक्शन से पहले पड़ता है, यहां से उतरकर आप बैंक रोड जा सकते हैं और फिर वहां से मेला क्षेत्र में पैदल जाना पड़ेगा।


-प्रयागराज छिवकी

यहां से आपको बालसन चौराहे की तरफ आना पड़ेगा। बाहर निकलते ही ऑटो मिल जाएगा।


आप बैंक रोड से सीधा पैदल जा सकते हैं या फिर सिविल लाइंस से ऑटो पकड़ कर चुंगी या बैंक रोड जा सकते हैं।


🔴रहने की व्यवस्था:


आपको स्टेशन के बाहर बहुत सारे होटल और लॉज मिल जाएंगे, इनका किराया थोड़ा ज्यादा होगा अगर आपका बजट कम है तो आपको डोरमेट्री मिल जाएगी, जिसका किराया आपको 300-1000 तक रहेगा। कई सारे रैन बसेरा भी हैं जो अलग अलग संस्थाओं द्वारा लगाए गए हैं। ये सब आपको मेला क्षेत्र में ही मिलेंगे।


🔴 खाने की व्यवस्था:


प्रयाग आने के बाद आपको खाने के लिए नहीं सोचना पड़ेगा, आप बैंक रोड से या बालसन चौराहे से आगे निकलेंगे तो हर 500 मीटर पर एक भंडारा मिलेगा। कई जगह कचौड़ी सब्जी, छोला चावल, खिचड़ी आदि आपको मिलेंगी।

इसके अतिरिक्त आप @Swiggy और @zomato से भी ऑर्डर कर सकते हैं। (No paid promotion) लेकिन इनकी डेलिवरी चुंगी क्षेत्र के उस तरफ नहीं होगी।


अगर आप फाफामऊ उतरते हैं तो आप गंगा जी के किनारे बनी रोड से भी मेले में जा सकते हैं। इसपर भीड़ कम रहेगी लेकिन ये रास्ता थोड़ा लंबा पड़ेगा। इसके किनारे तीन प्रमुख मंदिर हैं। इसी रास्ते पर आपको नारायणी आश्रम और नागवासुकी मंदिर भी मिलेंगे।


🔴 इन बातों का विशेष ध्यान रखें।


- बहुत छोटे बच्चों को लेकर न आएं। 

- आपको पैदल चलना पड़ेगा इसलिए बहुत ज्यादा सामान लेकर न आएं।

- अपने फोन और पर्स का विशेष ध्यान रखें। 

- सभी लोगों को एक फोन नंबर लिख कर अवश्य दें।

- आपके आस पास कई पुलिस वाले रहेंगे। अगर कोई खो जाता है तो जाकर अनाउंसमेंट करवाएं। इसमें पुलिस वाले आपकी सहायता करेंगे।

- मेला क्षेत्र में एक हॉस्पिटल भी बनाया गया है, यदि आवश्यकता हो तो किसी पुलिस वाले से संपर्क करें।

- नहाते वक्त फोन अपने सामान का विशेष ध्यान रखें क्योंकि उस समय संगम के किनारे भीड़ अधिक हो जाती है और इसलिए दिक्कत हो सकती है।


यहां आप रास्ता नहीं भटकेंगे बस भीड़ जिस तरफ जा रही हो आप भी उसी तरफ चलते रहें।

बाकी भगवान पर भरोसा रखिए, प्रयागराज पहुंचिए, कुंभ नहाइए।



जय गंगा मैया

हर हर महादेव 


https://ganja-upasana.blogspot.com/2025/02/blog-post.html

बुधवार, 22 जनवरी 2025

हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य?

 ❤️हर शुभ कार्य से पहले क्यों बनाया जाता है स्वास्तिक, जानिए इसका कारण और रहस्य? 


🙏स्वस्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल और शुभता का प्रतीक माना जाता रहा है। 😱हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक का चिन्ह अवश्य बनाया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु+अस+क शब्दों से मिलकर बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा या शुभ, 'अस' का अर्थ 'सत्ता' या 'अस्तित्व' और 'क' का अर्थ 'कर्त्ता' या करने वाले से है। इस प्रकार 'स्वस्तिक' शब्द में किसी व्यक्ति या जाति विशेष का नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना निहित है। 'स्वस्तिक' अर्थात् 'कुशलक्षेम या कल्याण का प्रतीक ही स्वस्तिक है। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वस्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वस्तिक, जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे 'स्वस्तिक' कहते हैं। यही शुभ चिह्न है, जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है।स्वस्तिक को ऋग्वेद की ऋचा में सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। सिद्धान्तसार नामक ग्रन्थ में उसे विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है। अन्य ग्रन्थों में चार युग, चार वर्ण, चार आश्रम एवं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के चार प्रतिफल प्राप्त करने वाली समाज व्यवस्था एवं वैयक्तिक आस्था को जीवन्त रखने वाले संकेतों को स्वस्तिक में ओत-प्रोत बताया गया है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोडऩे के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।


मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं।


स्वस्तिक में भगवान गणेश और नारद की शक्तियां निहित हैं। स्वस्तिक को भगवान विष्णु और सूर्य का आसन माना जाता है। स्वस्तिक का बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान 'गं' बीज मंत्र होता है। इसमें जो 4 बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। इस मंगल-प्रतीक का गणेश की उपासना, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ दिशाओं का प्रतीक : स्वस्तिक सभी दिशाओं के महत्व को इंगित करता है। इसका चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं- अग्नि, इन्द्र, वरुण एवं सोम की पूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है।


चार वेद, पुरुषार्थ और मार्ग का प्रतीक : हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण 4 सिद्धांत धर्म, अर्थ काम और मोक्ष का प्रतीक भी माना जाता है। चार वेद का प्रतीक- ऋग्, यजु, साम और अथर्व। चार मार्ग ज्ञान, कर्म, योग और भक्ति का भी यह प्रतीक है। जीवन चक्र और आश्रमों का प्रतीक : यह मानव जीवन चक्र और समय का प्रतीक भी है। जीवन चक्र में जन्म, जवानी, बुढ़ापा और मृत्य यथाक्रम में बालपन, किशोरावस्था, जवानी और बुढ़ापा शामिल है। यही 4 आश्रमों का क्रम भी है- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास। 

युग, समय और गति का प्रतीक : स्वस्तिक की 4 भुजाएं 4 गतियों- नरक, त्रियंच, मनुष्य एवं देव गति की द्योतक हैं वहीं समय चक्र में मौसम और काल शामिल है। यही 4 युग का भी प्रतीक है- सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग। स्वास्तिक हमेशा लाल रंग का ही बनाया जाता है, पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है। वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है। धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता हैद्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है।


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महाकुंभ 2025

 🚩महाकुंभ 2025🚩


महाकुंभ में कल्पवास की क्या है प्रक्रिया-महत्व, जानिए एक माह में कितने वर्षों का मिलता है पुण्य 

सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होता है एक मास का कल्पवास, इसकी अवधि भी अलग-अलग


महाकुंभ में कल्पवास का महत्व.

महाकुंभ में कल्पवास का महत्व 


प्रयागराज: क्या है संगम पर कल्पवास की कहानी? क्यों रखते हैं यह व्रत? बिना कुंभ के भी हर वर्ष संगम नगरी में लाखों श्रद्धालु कैसे करते हैं कल्पवास? क्या है इसकी विधि और क्या करना और क्या नहीं करना होता है इसमें? कल्पवासियों और इसके विषय में बताती ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट...एक माह में ही मिल जाता है करोड़ों वर्षों का पुण्य:ऐसा माना जाता है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ शुरू होने वाले एक मास के कल्पवास से एक कल्प जो ब्रह्मा के एक दिन के बराबर होता है, जितना पुण्य प्राप्त होता है. मान्यता के अनुसार कल्पवास मनुष्य के लिए आध्यात्मिक विकास का माध्यम है. संगम पर माघ के पूरे महीने निवास कर पुण्य फल प्राप्त करने की इस साधना को ही कल्पवास कहते हैं. ऐसी मान्यता है कि कल्पवास करने वाले को इच्छित फल प्राप्त होने के साथ जन्म जन्मांतर के बंधनों से मुक्ति भी मिल जाती है. महाभारत के अनुसार 100 साल तक बिना अन्न ग्रहण किए तपस्या करने के फल के बराबर ही माघ मास में कल्पवास करने से पुण्य प्राप्त हो जाता है. कल्पवास के समय साफ-सुथरे सफेद या पीले रंग के वस्त्र धारण किए जाते हैं. शास्त्रों की मान्यता के मुताबिक कल्पवास की न्यूनतम अवधि एक रात्रि हो सकती है, वहीं तीन रात्रि, तीन माह, छह माह, छह वर्ष, 12 वर्ष या जीवनभर भी कल्पवास किया जा सकता है. महाकुंभ की अवधि में कल्पवास का महत्व और ज्यादा हो जाता है. इसका जिक्र वेदों और पुराणों में भी है.


महाकुंभ में कल्पवास का महत्व.आसान नहीं है कल्पवास की प्रक्रिया:कल्पवास की प्रक्रिया आसान बिल्कुल भी नहीं है. जाहिर है मोक्षदायनी की ये विधि एक बेहद कठिन साधना है. इसमें पूरे नियंत्रण और संयम की जरूरत होती है. पद्म पुराण में इसका जिक्र करते हुए महर्षि दत्तात्रेय ने कल्पवास के नियमों के बारे में विस्तार से वर्णन किया है. 45 दिन तक कल्पवास करने वाले को 21 नियमों का पालन करना होता है. पहला नियम सत्यवचन, दूसरा अहिंसा, तीसरा इन्द्रियों पर नियंत्रण, चौथा सभी प्राणियों पर दयाभाव, पांचवां ब्रह्मचर्य का पालन, छठा व्यसनों का त्याग, सातवां ब्रह्म मुहूर्त में जागना, आठवां नित्य तीन बार पवित्र नदी में स्नान, नवां त्रिकाल संध्या, दसवां पितरों का पिण्डदान, 11वां दान, बारहवां अन्तर्मुखी जप, तेरहवां सत्संग, चौदहवां संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, पंद्रहवां किसी की भी निंदा न करना, सोलहवां साधु सन्यासियों की सेवा, सत्रहवां जप और संकीर्तन, अठाहरवां एक समय भोजन, उन्नीसवां भूमि शयन, बीसवां अग्नि सेवन न कराना, इक्कीसवां देव पूजन. इनमें सबसे अधिक महत्व ब्रह्मचर्य, व्रत, उपवास, देव पूजन, सत्संग और दान का माना गया है.क्या करते हैं कल्पवास करने वाले:कल्पवास के पहले दिन तुलसी और शालिग्राम की स्थापना और पूजन किया जाता है. कल्पवास करने वाला अपने रहने के स्थान के पास जौ के बीज रोपता है. जब ये अवधि पूरी हो जाती है तो वे इस पौधे को अपने साथ ले जाते हैं, जबकि तुलसी को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. पुराणों में बताया गया है कि देवता भी मनुष्य का दुर्लभ जन्म लेकर प्रयाग में कल्पवास करें. महाभारत के एक प्रसंग में जिक्र है कि मार्कंडेय ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा कि प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है. एक महीना कोई भी इंद्रियों को वश में करके यहां पर स्नान, ध्यान और कल्पवास करता है, वह स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने का अधिकारी हो जाता है.क्या कहते हैं संत सुभाषदास :प्रयागराज महाकुंभ में पहुंचे अयोध्या तपस्वी छावनी के संत सुभाष दास का कल्पवास को लेकर कहना है कि पहले ये जानिए कि कल्पवास का अर्थ होता है. एक कल्प होता है चार अरब 32 करोड़ वर्ष का. तो जो एक महीना प्रयागराज में रहकर और अपना खाकर सत्यता के साथ हर दिन कुछ दान करे, छल कपट को त्याग दे, निश्छल मन से यहां पर वास करे, एक माह लगातार स्नान करेगा, उसको चार अरब 32 करोड़ वर्ष का पुण्य मिल जाएगा. यह सिर्फ एक महीने में ही संभव हो जाएगा.

देवलोक में भी होता है महाकुंभ:सुभाष दास इसके पीछे पौराणिक कथा बताते हैं. कहते है-राक्षसों और देवताओं में जब अमृत को लेकर मंथन हुआ और खूब झगड़ा हुआ तब विष्णु भगवान विश्व मोहिनी के रूप में अमृत लेकर आए. राक्षस विश्व मोहिनी मूरत पर ही रीझ गए. इसके बाद राक्षसों ने सोचा कि यह सुंदरी मिल जाए. तब तक माताजी ने देवताओं को अमृत परोस दिया. राहु केतु समझ गए और उन्होंने कहा कि यह छल किया गया है. उसके बाद जयंत राक्षस अमृत लेकर भागा था तो देवताओं ने उसका पीछा किया और छीनाझपटी में भारत में चार जगह अमृत गिरा. आखिर 12 वर्ष बाद कुंभ क्यूं होता है, इसकी वजह है कि राक्षसों और देवताओं में 12 दिन का युद्ध चला और 12 दिन के युद्ध का अर्थ हो जाता है कि पृथ्वी का 12 बरस, इसलिए 12 वर्ष में महाकुंभ होता है. चार जगह यहां और आठ जगह देवलोक में भी हैं, वहां भी महाकुंभ आयोजित होता है.कल से 10 लाख श्रद्धालु करेंगे संगम तट पर कल्पवास, लगे 1.6 लाख टेंटत्रिवेणी संगम तट पर सनातन आस्था के महापर्व महाकुम्भ का कल से शुभारंभ हो रहा है. 40 से 45 करोड़ श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में अमृत स्नान करेंगे. इसके साथ ही लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम तट पर महाकुम्भ की प्राचीन परंपरा कल्पवास का निर्वहन करेंगे. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रद्धालु एक माह तक नियमपूर्वक संगम तट पर कल्पवास करेंगे. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने विशेष इंतजाम किए हैं. कल्पवास पौष पूर्णिमा से शुरू होगा. महाकुम्भ 2025 में लगभग 10 लाख श्रद्धालुओं के कल्पवास करने का अनुमान है. शास्त्रीय मान्यता के मुताबिक कल्पवास, पौष पूर्णिमा की तिथि से शुरू हो कर माघ पूर्णिमा की तिथि तक पूरे एक माह तक किया जाता है. इस महाकुम्भ में कल्पवास 13 जनवरी से शुरू होकर 12 फरवरी तक संगम तट पर किया जाएगा. शास्त्रों के मुताबिक कल्पवास में श्रद्धालु नियमपूर्वक, संकल्पपूर्वक एक माह तक संगम तट पर निवास करते हैं. कल्पवास के दौरान श्रद्धालु तीनों काल गंगा स्नान कर, जप, तप, ध्यान, पूजन और सत्संग करते हैं.मेला प्राधिकरण ने कल्पवासियों के लिए किए विशेष इंतजाम :कल्पवास का निर्वहन करने के लिए प्रयागराज मेला प्राधिकरण ने सभी जरूरी इंतजाम किए हैं. मेला क्षेत्र में गंगा तट पर झूंसी से लेकर फाफामऊ तक लगभग 1.6 लाख टेंट कल्पवासियों के लिए लगवाए गए हैं. इन सभी कल्पवासियों के टेंटों के लिए बिजली, पानी के कनेक्शन के साथ शौचालयों का निर्माण करवाया गया है. कल्पवासियों को अपने टेंट तक आसानी से पहुंचने के लिए चेकर्ड प्लेटस् की लगभग 650 किलोमीटर की अस्थाई सड़कों और 30 पांटून पुलों का निर्माण किया गया है. कल्पवासियों को महाकुम्भ में सस्ती दर पर राशन और सिलेंडर भी उपल्ब्ध करवाया जाएगा. गंगा स्नान के लिए घाटों का निर्माण किया गया है. सुरक्षा के लिए जल पुलिस और गंगा नदी में बैरीकेड़िंग भी की गई है. ठंड से बचाव के लिए अलाव और स्वास्थ संबंधी समस्या दूर करने के लिए मेला क्षेत्र में अस्पतालों का भी निर्माण किया गया है।


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सोमवार, 4 नवंबर 2024

रुद्राष्टकम्

 रुद्राष्टकम भगवान शिव की अभिव्यक्ति को समर्पित एक अष्टकम या अष्टक (आठ छंदों वाली प्रार्थना) है. इस महान मंत्र की रचना स्वामी तुलसीदास द्वारा 15वीं शताब्दी में की गई थी. रुद्र को भगवान शिव की भयावह अभिव्यक्ति के रूप में पूजा जाता है, जिनसे हमेशा भयभीत रहना चाहिए. भगवान महाकाल को प्रसन्न करने के लिए स्तुति का यह आठ गुना भजन गाया गया था. जो भी इसका पाठ करेगा, उस पर भगवान शिव अति प्रसन्न होंगे.


मानस के अनुसार भगवान श्रीराम ने रावण जैसे भयंकर शत्रु पर विजय पाने के लिए रामेशवरम में शिवलिंग की स्थापना कर रूद्राष्टकम स्तुति का श्रद्धापूर्वक पाठ किया था। इस पाठ के कारण ही उन्हें शिवजी की कृपा प्राप्त होकर युद्ध में विजयी मिली थी।


रुद्राष्टकम् 


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1॥


हे ईशान ! मैं मुक्तिस्वरूप, समर्थ, सर्वव्यापक, ब्रह्म, वेदस्वरूप, निज स्वरूप में स्थित, निर्गुण, निर्विकल्प, निरीह, अनन्त ज्ञानमय और आकाश के समान सर्वत्र व्याप्त प्रभु को प्रणाम करता हूँ ॥1॥


निराकारमोंकारमूलं तुरीयं

गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं ।

करालं महाकाल कालं कृपालं

गुणागार संसारपारं नतोऽहं ॥2॥


जो निराकार हैं, ओंकाररूप आदिकारण हैं, तुरीय हैं, वाणी, बुद्धि और इन्द्रियों के पथ से परे हैं, कैलासनाथ हैं, विकराल और महाकाल के भी काल, कृपाल, गुणों के आगार और संसार से तारने वाले हैं, उन भगवान को मैं नमस्कार करता हूँ ॥2॥


तुषाराद्रि सङ्काश गौरं गभीरं

मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा

लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ॥3॥


जो हिमालय के समान श्वेतवर्ण, गम्भीर और करोड़ों कामदेवों के समान कान्तिमान शरीर वाले हैं, जिनके मस्तक पर मनोहर गंगाजी लहरा रही हैं, भाल पर बाल-चन्द्रमा सुशोभित होते हैं और गले में सर्पों की माला शोभा देती है ॥3॥


चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं

प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं ।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुंडमालं

प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥


जिनके कानों में कुण्डल हिल रहे हैं, जिनके नेत्र एवं भृकुटि सुन्दर और विशाल हैं, जिनका मुख प्रसन्न और कण्ठ नीला है, जो बड़े ही दयालु हैं, जो बाघ के चर्म का वस्त्र और मुण्डों की माला पहनते हैं, उन सर्वाधीश्वर प्रियतम शिव का मैं भजन करता हूँ ॥4॥


प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं

अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥


जो प्रचण्ड, सर्वश्रेष्ठ, प्रगल्भ, परमेश्वर, पूर्ण, अजन्मा, कोटि सूर्य के समान प्रकाशमान, त्रिभुवन के शूलनाशक और हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले हैं, उन भावगम्य भवानीपति का मैं भजन करता हूँ ॥5॥


कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।

चिदानंद संदोह मोहापहारी

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥


हे प्रभो ! आप कलारहित, कल्याणकारी और कल्प का अंत करने वाले हैं। आप सर्वदा सत्पुरुषों को आनन्द देते हैं, आपने त्रिपुरासुर का नाश किया था, आप मोहनाशक और ज्ञानानन्दघन परमेश्वर हैं, कामदेव के शत्रु हैं, आप मुझ पर प्रसन्न हों, प्रसन्न हों ॥6॥


न यावद् उमानाथ पादारविन्दं

भजंतीह लोके परे वा नराणां ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥


मनुष्य जब तक उमाकान्त महादेव जी के चरणारविन्दों का भजन नहीं करते, उन्हें इहलोक या परलोक में कभी सुख तथा शान्ति की प्राप्ति नहीं होती और न उनका सन्ताप ही दूर होता है। हे समस्त भूतों के निवास स्थान भगवान शिव ! आप मुझ पर प्रसन्न हों ॥7॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजां

नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥


हे प्रभो ! हे शम्भो ! हे ईश ! मैं योग, जप और पूजा कुछ भी नहीं जानता, हे शम्भो ! मैं सदा-सर्वदा आपको नमस्कार करता हूँ। जरा, जन्म और दुःख समूह से सन्तप्त होते हुए मुझ दुःखी की दुःख से रक्षा कीजिये ॥8॥


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥


जो मनुष्य भगवान शंकर की तुष्टि के लिये ब्राह्मण द्वारा कहे हुए इस रुद्राष्टक का भक्तिपूर्वक पाठ करते हैं, उन पर शंकर जी प्रसन्न होते हैं ॥9॥


नम: शिवाय ।





रुद्राष्टकम् 


नमामीशमीशान निर्वाणरूपं

विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं ।

निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं

चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहं ॥1॥


निराकारमोंकारमूलं तुरीयं

गिरा ग्यान गोतीतमीशं गिरीशं ।

करालं महाकाल कालं कृपालं

गुणागार संसारपारं नतोऽहं ॥2॥


तुषाराद्रि सङ्काश गौरं गभीरं

मनोभूत कोटि प्रभा श्रीशरीरं ।

स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारु गंगा

लसद्भालबालेन्दु कंठे भुजंगा ॥3॥


चलत्कुंडलं भ्रू सुनेत्रं विशालं

प्रसन्नाननं नीलकंठं दयालं ।

मृगाधीशचर्माम्बरं मुंडमालं

प्रियं शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥4॥


प्रचंडं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं

अखंडं अजं भानुकोटिप्रकाशं ।

त्रयः शूल निर्मूलनं शूलपाणिं

भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यं ॥5॥


कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी

सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी ।

चिदानंद संदोह मोहापहारी

प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥6॥


न यावद् उमानाथ पादारविन्दं

भजंतीह लोके परे वा नराणां ।

न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं

प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं ॥7॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजां

नतोऽहं सदा सर्वदा शंभु तुभ्यं ।

जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं

प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो ॥8॥


रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये ।

ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति ॥9॥



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शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

16 सिद्धियाँ विवरण

 16 सिद्धियाँ विवरण

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1. वाक् सिद्धि : - 👇


जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं..


 2. दिव्य दृष्टि सिद्धि:-👇


 दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता हैं.


3. प्रज्ञा सिद्धि : -👇


प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें! जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से सम्बंधित ज्ञान के साथ-साथ भीतर एक चेतनापुंज जाग्रत रहता हें.


 4. दूरश्रवण सिद्धि :-👇


 इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता.


 5. जलगमन सिद्धि:-👇


 यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर गमन कर रहा हो.


 6. वायुगमन  सिद्धि :-👇


इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं.


 7. अदृश्यकरण सिद्धि:-👇


 अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना! जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं.


 8. विषोका सिद्धि :-👇


 इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना! एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं.


 9. देवक्रियानुदर्शन सिद्धि :-👇


 इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं! उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं.


10. कायाकल्प सिद्धि:-👇


 कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन! समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव रोगमुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं.


11. सम्मोहन सिद्धि :-👇


 सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया! इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं.


 12. गुरुत्व सिद्धि:-👇


 गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान! जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं! और भगवन कृष्ण को तो जगद्गुरु कहा गया हैं.


 13. पूर्ण पुरुषत्व सिद्धि:-👇


 इसका तात्पर्य हैं अद्वितीय पराक्रम और निडर, एवं बलवान होना! श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था! जिस के कारन से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया! तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की.


 14. सर्वगुण संपन्न सिद्धि:-👇


  जितने भी संसार में उदात्त गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, प्रखरता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि! इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम व अद्वितीय मन जाता हैं, और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं.


 15. इच्छा मृत्यु सिद्धि :-👇


 इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं.


16. अनुर्मि सिद्धि:-👇


 अनुर्मि का अर्थ हैं. जिस पर भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव न हो.

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